नजरिया. बिहार की राजनीति में कोई स्थाई सियासी दोस्त या दुश्मन नहीं है और यही वजह है कि यहां पांच साल तक सियासी समीकरण लगातार बदलता ही रहता है?
बिहार में विधानसभा चुनाव हुए और बहुत समय गुजर गया है, लेकिन सरकार चलने की खबरें कम और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सियासी जोड़-तोड़ की खबरें ज्यादा आती रही हैं.
दिलचस्प बात यह है कि बिहार में सीएम नीतीश कुमार भी चुनाव में जेडीयू में आई दरारों को भरने और सियासी झटके से उबरने में ही ज्यादा व्यस्त हैं.
खबर है कि ललन सिंह को जेडीयू का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया है, कारण? उन्होंने कई बार नीतीश कुमार की जेडीयू के उलझे सियासी समीकरण को सुलझाया है!
हालांकि, नीतीश कुमार के विश्वस्त ललन सिंह ने वर्ष 2009 में पार्टी छोड़ दी थी, परन्तु फिर लौट आए.
इस बार सियासी जोड़-तोड़ में भी ललन सिंह का राजनीतिक पराक्रम उल्लेखनीय रहा है. पिछले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को सबसे तगड़ा झटका चिराग पासवान ने ही दिया था, जो सीट तो एक जीते, लेकिन उनकी वजह से करीब ढाई दर्जन सीटें नीतीश कुमार की पार्टी के हाथ से निकल गई.
चिराग पासवान की पार्टी से इकलौते राजकुमार सिंह ही चुनाव जीते और उन्हें भी ललन सिंह ने जेडीयू में शामिल करवा दिया. यही नहीं, खबरों में, एलजेपी के पांच सांसदों को चिराग पासवान से दूर करने में भी उनकी भूमिका की सियासी चर्चाएं रहीं.
इससे पहले एलजेपी के डेढ़ दर्जन जिलाध्यक्ष और आधा दर्जन प्रदेश महासचिवों सहित दो सौ से ज्यादा नेताओं को जेडीयू में शामिल करवाने में भी ललन सिंह की बड़ी भूमिका रही.
जाहिर है, नीतीश कुमार की, पार्टी पर मजबूत पकड़ बनाए रखने की गरज से भी ललन सिंह को अध्यक्ष बनाना सही निर्णय है.
वैसे भी केंद्र में जिस तरह का सियासी समीकरण बन रहा है, उसके मद्देनजर भी ललन सिंह पार्टी से दूर नहीं हो जाएं, इसके लिए जरूरी था कि उन्हें खास महत्व दिया जाए.
याद रहे, ललन सिंह को मोदी मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने की चर्चा थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ?
बिहार का बहुत सारा समय बाढ़ जैसी आपदाएं बर्बाद कर देती हैं और शेष समय सियासी जोड़-तोड़ में गुजर जाता है, बिहार के विकास के लिए समय कहां है?
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-बिहार के मधेपुरा में 65000 रुपए में डॉक्टर ने किया नवजात का सौदा, भेष बदलकर आए DM ने पकड़ा
बिहार: भागलपुर मे कोसी नदी में बड़ा नाव हादसा, चार लोग डूबे, तलाश जारी
Leave a Reply