कुंडली का नवम भाव भाग्य का होता है.शनि का नवे भाव मे किसी जातक की कुंडली मे बैठना शुभ-अशुभ दोनो तरह के फल दे सकता है निर्भर करेगा शनि की स्थिति वहाँ कैसी है?नवे भाव मे बैठा बलवान और शुभ शनि भाग्य को बहुत बलवान बना देगा क्योंकि शनि जिस भाव मे बेठता है उस भाव के फल को लंबा खिंचता है या उस भाव के फलों में काफी गहराई दे देता है साथ ही स्थान वृद्धि करना शनि का स्वभाव है तो जब यह नवे भाव मे शुभ और बलवान होकर बैठता है तब भाग्य को बहुत ज्यादा बलवान बना देता है, और ऐसे जातकों को हमेशा भाग्य का साथ मिलता है.नवे भाव मे शनि कारक,योगकारक होकर बलवान होकर बैठा हो तब जातक को भाग्य का धनी बना देता है मतलब भाग्य जातक का एक तरह से गुलाम होता है क्योंकि शनि का भाग्य और कर्म से विशेष संबंध है हाथ मे बनी भाग्य रेखा को भी इसीलिए शनि रेखा भी कहते है क्योंकि भाग्य रेखा शनि पर्वत तक ही जाती है.. अब इस भाव मे शनि कमजोर या अशुभ होकर बैठता है तब भाग्य का साथ तो दूर की बात जातक को किसी काम मे मेहनत करने पर भी सफलता आसानी से नही देता क्योंकि जब यह भाग्य भाव मे अपने नीच-शत्रु राशि जैसे कि मेष, कर्क, सिंह,वृश्चिक में होता है तब कमजोर होता है साथ ही अगर किसी शत्रु ग्रह जैसे कि सूर्य चन्द्र मंगल के साथ नवे भाव मे हो तब भाग्य पर जातक के रोक सा देता है, क्योंकि शत्रु राशि या शत्रु ग्रहो के साथ यह कमजोर और संघर्षशील हो जाता है तब भाग्य को भी वैसा ही बना देता है.इस कारण भाग्य भाव मे शनि शुभ होकर बैठना जरूरी है,वृष,मिथुन ,कन्या, धनु, मीन राशि का शनि यहाँ शुभ रहता है इसके अलावा तुला, मकर, कुम्भ राशि मे सबसे शानदार होता है.जितना ज्यादा शनि इस भाव मे अपनी शुभ,मित्र, स्वराशि,उच्च राशि और अशुभ ग्रहों के प्रभाव से बचा होगा उतना ही भाग्य को बलवान करेगा और हमेशा भाग्य का साथ दिलाएगा अपने मित्र शुक्र बुध के साथ और अपने सम ग्रह गुरु के साथ नवे भाव मे इसको खास सहयोग भाग्योन्नति में रहता है इन तीनो के साथ शनि का संबंध अच्छा रहता है..
नवे भाव भाव मे शुभ और भाग्यशाली बनाने वाला शनि
मकर लग्न के जन्मकुंडली में शनि लग्नेश होता है अब यहाँ नवे भाव मे यह बैठे तो अपने मित्र बुध की राशि मे होगा ऐसी स्थिति में शनि यहाँ जातक को कई तरह से भाग्यशाली बनाएगा और शुभ फल देगा, साथ ही बुध की स्थिति भी बढ़िया हुई जैसे माना बुध लग्न में हो शनि की राशि मे इन दोनों ग्रहो में राशि परिवर्तन हो या बुध अन्य तरह से बलवान हुआ हो तब शनि ऐसे जातक को प्रबल भाग्यशाली बनायेगा और जो असम्भव होगा वह भी ऐसे जातक के लिए मामले या काम आदि सम्भव होंगे.ऐसे शनि की महादशा या अंतर्दशा(महादशा ग्रह के साथ संबंध अनुसार) शानदार फल देगी..
शनि का भाग्य में रुकावट और संघर्ष
धनु लग्न के जन्मकुंडली में नवे भाव का शनि अपने परम शत्रु सूर्य की राशि मे होगा ऐसी स्थिति में यह कमजोर होगा और भाग्य को भी कमजोर करेगा साथ ही यहाँ यह मारक भी होता है अगर अपने किसी शत्रु ग्रह के साथ हुआ या अस्त आदि हुआ तब भाग्य में अंधकार कर देता है इंसान मेहनत करता रहेगा लेकिन जीवन से संघर्ष कम नही होता और भाग्य का साथ नही मिलता एक तरह से जीवन संघर्षशील बन जाता है.ऐसी स्थिति में शनि अगर शनि पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो या शुभ ग्रह नवे भाव मे इसके साथ हो या नवमांश कुंडली मे यह उच्च या वर्गोत्तम होकर बैठ गया है साथ ही अशुभ प्रभाव से बचा हुआ है और नवमेश बलवान है तब भाग्य में उन्नति नही देगा, चमक नही देगा तो संघर्षशील भी नही करेगा.. इस तरह से नवे भाव का शनि किसी भी जातक के जीवन मे अहम भूमिका निभाता है क्योंकि भाग्य जिसका साथ हर जातक को जरूरी होता है, शनि की गति भी धीमी है अगर यह कमजोर या अशुभ है तो भाग्य की गति को ही रोक देता है मतलब भाग्य का साथ ही नसीब नही होने देता पर अगर यह बलवान और शुभ है,कोई राजयोग बना रहा है तब किस्मत को चमका कर हमेशा भाग्य का साथ कई तरह से दिलाता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-खुद की कुंडली के अनुसार हो वास्तु
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