चेन्नई. मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने कहा कि जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए तमिलनाडु राज्य को आर्थिक रूप से और प्रतिनिधित्व के आधार पर सताया नहीं जाना चाहिए. अदालत ने इसके साथ ही कुछ सवाल उठाये और राज्य एवं केंद्र सरकारों से उपचारात्मक उपायों का आह्वान किया. जस्टिस एन किरुबाकरण और जस्टिस बी पुगलेंधी की एक खंडपीठ ने ये सवाल एक जनहित याचिका के रूप में 2020 में दायर एक रिट याचिका को खारिज करते हुए उठाये.
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई की तारीख चार सप्ताह बाद तय करते हुए कहा, ‘चूंकि रिट याचिका जनहित याचिका के रूप में दायर की गई है, अनुरोध को नकारते हुए यह अदालत जनता के हित में निम्नलिखित प्रश्न उठाती है…’ मामले की प्रभावी सुनवाई के लिए पीठ ने द्रमुक, अन्नाद्रमुक, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और भाजपा सहित राज्य के सभी 10 राजनीतिक दलों को पक्ष-प्रतिवादी बनाया.
पीठ द्वारा उठाया गया पहला सवाल यह था कि क्या तमिलनाडु और इसी तरह के राज्यों के अधिकारों का उल्लंघन राज्य से चुने जा सकने वाले संसद सदस्यों की संख्या में कमी करके किया जा सकता है, जिन्होंने जन्म नियंत्रण कार्यक्रमों को सफलतापूर्वक लागू किया है और ऐसा करके राज्य की जनसंख्या को कम किया है.
अदालत ने यह भी जानना चाहा कि क्यों न केंद्र सरकार 5,600 करोड़ रुपये की राशि का भुगतान करें क्योंकि 1962 के बाद से तमिलनाडु के 14 चुनावों में 28 जनप्रतिनिधि कम हो गए, क्यों न प्राधिकारी राज्य को 41 सांसद सीटों को बहाल करें जो 1962 के आम चुनाव तक थी, क्योंकि जनसंख्या नियंत्रण के कारण दो सांसद सीटें कम हो गई थीं.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-यूपी में दो बच्चे वालों को मिलेगा सरकारी योजनाओं का फायदा, जनसंख्या ड्राफ्ट बिल तैयार
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