प्रदीप द्विवेदी. जब से बीजेपी का अटल-युग विदा हुआ है, उकसाने की राजनीति जोर पकड़ती जा रही है, नतीजा यह है कि विरोधी को अपमानित करने के चक्कर में अपनों का भी खासा अपमान करवा रहे हैं?
खबर है कि भारत की स्वतंत्रता के 75वें साल के जश्न के लिए जारी पोस्टरों में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तस्वीर को कथित तौर पर शामिल नहीं किया गया, जिसे लेकर आलोचना का सामना कर रहे आईसीएचआर.... भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद ने सफाई दी है?
खबरों पर भरोसा करें तो आईसीएचआर का कहना है कि इस मुद्दे पर विवाद ‘गैर जरूरी’ है और आने वाले दिनों में जारी होने वाले पोस्टरों में नेहरू की तस्वीर होगी. आईसीएचआर के एक शीर्ष अधिकारी का इस मुद्दे पर आलोचना को खारिज करते हुए कहना है कि हम आजादी की लड़ाई में किसी की भूमिका को कमतर करने का प्रयास नहीं कर रहे हैं. जिस पोस्टर को लेकर विवाद हुआ है वह आजादी का अमृत महोत्सव जश्न के तहत जारी होने वाले कई पोस्टरों में से एक है!
खैर, बेहद मासूम जवाब आ गया है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि नेहरू और वीर सावरकर को आमने-सामने क्यों खड़ा किया गया?
इसकी वजह से वीर सावरकर पर भी टिप्पणियां हो रही हैं, इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
याद रहे, वर्ष 1970 में पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने सावरकर पर डाक टिकट जारी करते हुए कहा था कि- हम सावरकर के खिलाफ नहीं हैं. वे जीवन भर जिस हिंदुत्ववादी विचार का समर्थन करते रहे, हम उसके जरूर खिलाफ हैं!
उल्लेखनीय है कि कुछ समय पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कर दिया था?
इस ऐलान ने देश के दो महान बेटों का एकसाथ अपमान भी किया, जैसा कि कुछ साल पहले राजस्थान में हुआ था, जब राजीव गांधी सेवा केंद्र का नाम बदल कर अटल सेवा केंद्र कर दिया गया था, जिसे राजस्थान हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया, मतलब.... नाम बदल कर राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी, दोनों को अपमानित किया गया!
बेशर्मी की हद तो यह है कि जिन सरदार पटेल का नाम लेकर मोदी सत्ता में आए, उनके नाम के स्टेडियम का नाम भी बदल दिया गया और कीर्तिमान यह है कि अब इसका नाम जिंदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर है?
साहेब! नाम का इतना ही लालच है, तो कुछ नया, कुछ और अच्छा करो, इतिहास को तो काला मत करो?
नेहरू को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का नजरिया शेयर करते हुए कांग्रेस नेता श्रीनिवास बीवी ने ट्वीट किया- कम से कम अपने पूर्वजों से राजधर्म सीख लेते मोदी जी..
प्रसिद्ध पत्रकार रविंद्र गौतम @RavindraGautam_ ने निशाना साधा- तरस आता है ऐसी ‘फकीरी’ मानसिकता पर!
यही नहीं, वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर @shakeelNBT ने तो जमकर व्यंग्यबाण चलाए- हम नेहरू का नाम हटाने का समर्थन करते हैं. ये गति और तेज होना चाहिए.
जैसे हरियाणा की खट्टर सरकार ने गोरखधंधा शब्द के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी, ऐसे ही नेहरू के नाम पर लगा देना चाहिए.
केवल देश में नहीं पूरी दुनिया में हम विश्व गुरु हैं. आज्ञा देकर बताना चाहिए.
विज्ञापन देना चाहिए कि नेहरू का भारत से कोई संबंध नहीं. उनके किसी काम के उत्तरदायी हम नहीं.
जो बनाया था, सब बेच रहे हैं. नाम मिटा रहे हैं.
और अगर इससे भी काम न चले तो चौराहों, थानों पर पोस्टर लगाए जा सकते हैं कि सावधान! खतरनाक आदमी.... लोगों के दिल और दिमाग में घुसा हुआ है.
आगे बढ़ने, तरक्की की बातें करता है. नफरत, विभाजन के बदले प्यार, एकता की बातें सिखाता है.
अंध विश्वास का साथ नहीं देता. वैज्ञानिक मिजाज बनाने की बात करता है.
ये सब देश विरोधी विचार हैं, नेहरू के फैलाए. उन्हें रोक कर नफरत, विभाजन फैलाकर नेहरू को खत्म करने में सहयोग कीजिए!
देश के प्रमुुख पत्रकार आशुतोष ने लिखा- जिन्हें नेहरू से डर लगता है वहीं उनकी तस्वीर नहीं लगाते!
इसी तरह वरिष्ठ पत्रकार अजीत अंजुम ने आईना दिखाया- आजादी की लड़ाई में करीब दस साल तक जेल में रहने वाले नेहरु, 17 साल तक पहले पीएम के रुप में देश को दिशा देने वाले नेहरु, देश को आईआईटी से लेकर आईआईएम और सिंदरी से लेकर बरौनी खाद कारखाना तक देने वाले नेहरु को इतिहास से मिटाने की नाकाम कोशिशों का एक और नमूना?
देखना दिलचस्प होगा कि आगे और कैसे-कैसे बदलाव आते हैं!
https://twitter.com/srinivasiyc/status/1431669298511048706
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-कम से कम अपने पूर्वजों से
— Srinivas BV (@srinivasiyc) August 28, 2021
'राजधर्म' सीख लेते मोदी जी..#Nehru pic.twitter.com/hdcHfk2yb9
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