झारखंड का प्रतापुर गांव जहां ग्रामीण आज भी बाबा आदम के जमाने में जीने को मजबूर हैं. नदी पर पुल न होने की वजह से उन्हें अपनी जान जोखिम में डालकर पार करना होता है. नदी पार करने के लिये ग्रामीणों ने देसी सिस्टम बना रखी है. यहां के लोग डेगची और ट्रक के ट्यूब अपने पास रखते हैं, ताकि उसके सहारे रेगड़ो नदी पार किया जा सके. नदी पार करने के लिये ग्रामीणों ने देसी सिस्टम बना रखी है. यहां के लोग डेगची और ट्रक के ट्यूब अपने पास रखते हैं, ताकि उसके सहारे रेगड़ो नदी पार किया जा सके.
बहरागोडा का प्रतापुर गांव जहां 27 घर है. इस गांव के ग्रामीणों को मुख्य सड़क तक जाने के लिए रेगड़ो नदी को पार करना होता है. ग्रामीण बताते हैं कि नदी के उस पार मालकुंदा और पाटपुर गांव है, जहां से जरूरी समान की खरीदारी की जाती है. ग्रामीण हर साल रेगड़ो नदी में पानी भरने और तीन तरफ धान के खेत पानी में डूबने से अन्य गांव से कट जाते हैं. काला पानी की तरह इस गांव के ग्रामीण बरसात के मौसम में जीवन व्यतीत करते हैं.
ग्रामीण बताते हैं कि 1964 से वे इस टापू सरीखे गांव में रहते आ रहे हैं. इस गांव के अधिकतर घर मिट्टी से बने हैं. लगातार बारिश से चारों तरफ पानी का जमाव हो जाता है, जिससे वे गांव से बाहर जाना बेहद मुश्किल हो जाता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-झारखंड: बस और कार की टक्कर में लगी आग, बिहार के 5 लोग जिंदा जले
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