तण वाटे सम्मान- सितंबर 2021, सूर्यकरण गांधी को, एक अकेला चलता रहा!

तण वाटे सम्मान- सितंबर 2021, सूर्यकरण गांधी को, एक अकेला चलता रहा!

प्रेषित समय :21:14:24 PM / Thu, Sep 30th, 2021

जयपुर. पहली वागड़ी फिल्म के सम्मान में प्रतिमाह पुरस्कार- तणवाटे सम्मान प्रारंभ किया गया है, जो वागड़ और वागड़ी के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान प्रदान करनेवाले मीडिया कर्मियों और वागड़ी फिल्म के लिए महत्वपूर्ण प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग प्रदान करने वालों को प्रदान किया जा रहा है, जिसमें सम्मान राशि और अभिनंदन पत्र प्रदान किया जा रहा है.

पहली वागड़ी फिल्म तण वाटे को सरकारी मान्यता में सहयोग प्रदान करने में कांग्रेस के प्रमुख नेता सूर्यकरण गांधी की महत्वपूर्ण भूमिका रही, उन्हें तण वाटे सम्मान- सितंबर 2021 प्रदान किया जा रहा है.

पहली वागड़ी फिल्म- तण वाटे फिल्म पूरी होने के बाद 15 अगस्त को फिल्म के निर्देशक- प्रदीप द्विवेदी को तत्कालीन बांसवाड़ा कलेक्टर भरतराम मीणा ने प्रशंसा-पत्र प्रदान कर इसे मान्यता प्रदान की थी.

इस फिल्म के निर्माण में प्रमुख कलाकार- जगन्नाथ तेली, भंवर पंचाल, कैलाश जोशी, फिल्मकार सालेह सईद, कुतुबुद्दीन, संगीत निर्देशक- डॉ शाहिद मीर खान, अनिल जैन, हेमंत त्रिवेदी सहित जनसंपर्क विभाग के वरिष्ठ अधिकारी रहे गोपेन्द्र नाथ भट्ट, प्रमुख कवि हरीश आचार्य, नागेंद्र डिंडोर, घनश्याम नूर, हिम्मत लाल हिम्मत, रामनारायण शुक्ला, सूर्यकरण गांधी, कुंजबिहारी चौबीसा, सतीश आचार्य सहित सैकड़ों वागड़वासियों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष उल्लेखनीय योगदान रहा.

बांसवाड़ा के आजाद चौक में इस फिल्म के मुहूर्त में प्रमुख अतिथि- तत्कालीन जिला प्रमुख पवनकुमार रोकड़िया, राजस्थान स्वायत्त शासन के तत्कालीन उपाध्यक्ष दिनेश जोशी, माही परियोजना के तत्कालीन मुख्य अभियंता डीएम सिंघवी सहित प्रसिद्ध लेखक- ईश्वरलाल वैश्य, विष्णु मेहता, पद्माकर काले, आदित्य काले और हजारों वागड़वासी इस भव्य शुरूआत के साक्षी बने.

अब तो फिल्म बनाना आसान हो गया है, लेकिन तब पहले 8 एमएम के कैमरे से फिल्मांकन ही संभव हो पा रहा था, यही नहीं, मद्रास अब चेन्नई के प्रसाद लैब के पास भी 8 एमएम से 35 एमएम में फिल्म कन्वर्ट करने की सुविधा नहीं थी. उस समय फिल्म बनाना इतना महंगा था कि अनेक फिल्में 16 एमएम पर बना कर 35 एमएम पर कन्वर्ट होती थी और उसके बाद रिलीज होती थी.

अस्सी के दशक में बांसवाड़ा में जो पहला फिल्मांकन किया गया था, वह 16 एमएम पर था और उसे देखने के लिए पूर्व महारावल सूर्यवीर सिंह के महल जाना पड़ा था, क्योंकि उन्हीं के पास प्रोजेक्टर था. इस प्रायोगिक फिल्म का फिल्मांकन तो अच्छा था, परन्तु डबिंग, एडिटिंग और 8 एमएम से 35 एमएम में फिल्म कन्वर्ट करने की सुविधा के अभाव में काम रुक गया.

इस बीच, 1985 में बांसवाड़ा मूल के प्रसिद्ध फोटोग्राफर सालेह सईद विदेश से यहां आ गए. उनके साथ बांसवाड़ा में फिल्मांकन की नई तकनीक भी आ गई. पहली वागड़ी फिल्म के लिए तो एक नई दिशा मिल गई.

अस्सी के दशक में बेरोजगारी की समस्या शुरू हो गई थी, पहली वागड़ी फिल्म- तण वाटे बेरोजगारी की समस्या पर आधारित फिल्म ही है. बेरोजगारों के सामने तीन ही रास्ते हैं....

एक- बेईमानी,
दो- ईमानदारी और
तीन- अर्ध ईमानदारी, मतलब.... स्वयं ईमानदार रहे, लेकिन दूसरों की बेईमानी पर ध्यान नहीं दें!

फिल्म तीन दोस्तों की कहानी है, जो अपनी-अपनी सोच के हिसाब से अपना रास्ता चुनते हैं.

इसमें में भंवर पंचाल, जगन्नाथ तेली, कैलाश जोशी और नागेंद्र डिंडोर प्रमुख कलाकार थे. इस फिल्म में अभियंता भंवर पंचाल ने ईमानदार डॉक्टर की भूमिका निभाई थी, तो जगन्नाथ तेली ने बेईमान बेरोजगार का रोल किया था.

इस फिल्म का संगीत डॉ. शाहिद मीर खान ने दिया था और इसका लोकप्रिय गीत- काम मले तो काम करं ने, ने मले तो हूं करं... भंवर, जगन्नाथ और नागेंद्र डिंडोर पर फिल्माया गया था.

यह फिल्म ऋषभदेव में राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के तत्कालीन अध्यक्ष वेदव्यास को प्रसिद्ध लेखक और दूरदर्शन के वरिष्ठ अधिकारी रहे दिवंगत शैलेन्द्र उपाध्याय ने भेंट की थी, जिसका पहला भव्य प्रदर्शन प्रसिद्ध कवि हरीश आचार्य के प्रयासों से खड़गदा में हुआ था. इस फिल्म के लिए पुरस्कार भी मिला, जिसने इसे पहली वागड़ी फिल्म होने की मान्यता प्रदान कर दी.

सूर्यकरण गांधी ऐसे राजनेता हैं, जो सत्ता के बजाए सेवा और कांग्रेस संगठन के लिए ज्यादा सक्रिय रहे हैं और यही वजह भी रही है कि जनहित में कई बार वे कांग्रेस की सत्ता के सामने भी बागी तेवर में नजर आते रहे हैं, इतना ही नहीं, इसी कारण से उन्हें कई बार उनकी अपनी पार्टी के लोग के विरोध का भी सामना करना पड़ा है!

एक अकेला चलता रहा में लिखते हैं.... 

देश की आजादी से पूर्व जन्मे सूर्यकरण गांधी में आजादी की ललक रही जो आजादी के बाद विद्रोही के रूप मे जगी रही.

एक उम्र के बाद जैन साधु- साध्वी बने माता- पिता की संतान गांधी मे वैराग्य कम रहा पर व्यवस्था के छेदों को भरने की चाहत ज्यादा थी, जिसके प्रभाव में ही नैतिकता और आदर्श रहे. छात्र राजनीति के बाद पार्टी पालिटिक्स से जुड़े.

जीवन भर संघर्षरत रहने से समाज में मुकाम हासिल किया और 1 मार्च को जीवन के 75 वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं.

जीविकोपार्जन के लिए स्वयं का व्यवसाय करने वाले , चार भाई-बहिन में सबसे छोटे गांधी कांग्रेस में कई पदों पर रहे पर कभी अहंकार नहीं आया, शहरी के साथ ही ग्रामीण जन की सेवा मे हमेशा तत्पर रहे. जनजीवन को सरल करने के लिए गांधी लगातार  मुख्यमंत्री,  मंत्री,  अधिकारियों से मिलते रहे और आज भी सक्रिय रहते हैं.

गरीब, वंचितों के लिए, अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए व्यस्त रहने वाले, पेट भरने के लिए पलायन करने वाले, स्वास्थ्य, शिक्षा की व्यवस्था होते हुए भी इन सुविधाओं से दूर रहने वाले लोगों के लिए आवाज़ उठाना और मांगों को, जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करने वाले सूर्यकरण गांधी के जीवन का लक्ष्य गरीबों को कुछ सुख देना था, इसके लिए सत्य-अहिंसा का मार्ग अपनाया!
तण वाटे का मुहूर्त...

https://www.youtube.com/watch?v=y3Zh0czv4r4

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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