शास्त्रों में भी स्वस्थ शरीर को साधना के लिए अत्यावश्यक बताया गया है किंतु जीवन में यदा-कदा यह शरीर रोग से घिर जाता है और कभी-कभी रोग की भयावहता इतनी तीव्र होती है कि रोगी के जीवन को संकट उत्पन्न हो जाता है
ज्योतिष शास्त्र में रोग की पहचान, रोग का समय, उसकी तीव्रता एवं उससे होने वाली प्राणहानि के जोखिम का संकेत रोगी की जन्मपत्रिका देखकर किया जा सकता है सामान्य जातकों के लिए यह भी ज्योतिष शास्त्र ऐसे खतरों से सावधान रहने की व्यवस्था देता है. आज हम ऐसे ही दो कारकों मारकेश व षष्ठेश का लग्नानुसार वर्णन करेंगे जिनकी महादशा, अंतर्दशा व प्रत्यंतर दशा में रोग होने व प्राणहानि का जोखिम अधिक होता है.
*1. 'मारकेश' देता है मृत्युतुल्य कष्ट-*
संसार में जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु होना अवश्यंभावी है लेकिन यह मृत्यु कब होगी इसका स्पष्ट संकेत भी ज्योतिष शास्त्र से मिल सकता है.
जन्मपत्रिका के द्वितीयेष, सप्तमेष व द्वादशेष मारकेश ग्रह माने गए हैं इनमें द्वितीयेष व सप्तमेष को प्रबल मारकेश माना गया है. ज्योतिष में 'मारकेश' मृत्यु देने वाला ग्रह होता है यदि मारकेश शनि, मंगल, सूर्य, जैसे क्रूर ग्रह हों या 'मारकेश' ग्रह राहु-केतु से संयुक्त हों तो यह अधिक हानिकारक हो जाते हैं मारकेश की महादशा या अंतर्दशा में जातक मृत्युतुल्य कष्ट पाता है और यदि आयु पूर्ण हो चुकी हो तो ऐसे में जातक की इन दशाओं में मृत्यु होना भी संभव है.पं.संजय शास्त्री
*2. 'षष्ठेश' रोग का कारक है-*
ज्योतिष शास्त्र में कुंडली के छठे भाव को रोग का भाव माना गया है एवं इसके अधिपति ग्रह जिसे 'षष्ठेश' कहा जाता है, रोग का अधिपति ग्रह माना गया है यदि किसी जातक पर 'षष्ठेश' की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो तो वह निश्चित ही किसी ना किसी रोग से पीड़ित होगा जन्मपत्रिका में 'षष्ठेश' रोग का पक्का कारक होता है. अत: यदि कोई जातक जन्मपत्रिका के अनुसार 'षष्ठेश' की महादशा या अंतर्दशा भोग रहा है तो वह अवश्य ही रोग से पीड़ित हो जाएगा. यदि 'षष्ठेश' जन्मपत्रिका के किसी शुभ या लाभ भाव में स्थित हो तो ऐसे में रोगग्रस्त होने की संभावना बढ़ जाती है ऐसा जातक शीघ्र ही रोग से मुक्त नहीं होता.
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