प्रयागराज. तथ्य छिपाकर याचिका दर्ज करना बेहद गलत बात है और इसे लेकर शुक्रवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई. हाईकोर्ट ने एक याचिका 10 हजार जुर्माने के साथ खारिज कर दी. यह आदेश जस्टिस अश्वनी कुमार मिश्र और जस्टिस विक्रम डी चौहान की खंडपीठ ने गोरखपुर के राम जतन सहित 83 अन्य की याचिका पर दिया.
दरअसल नगर निगम गोरखपुर की तरफ से अधिवक्ता विभु राय ने याचिका पर प्रतिवाद किया. याचिका में कहा गया था कि याचियों की जमीन बिना अधिग्रहीत किए जबरन ली जा रही है. नगर निगम उनकी जमीन पर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट बनाना चाहता है, जबकि याची इसके लिए कतई तैयार नहीं है. याचियों का आरोप है कि उन्हें जमीन बेचने के लिए बाध्य किया जा रहा है.
इस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए जिलाधिकारी से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा था. जिलाधिकारी ने हलफनामा दाखिल कर कोर्ट को बताया कि प्लांट सुथनी गांव के 108 किसानों की जमीन पर बन रहा है. सभी ने अपनी मर्जी से जमीन बेची है और पैसा इनके खाते में जमा कर दिया गया है. इस पर कोर्ट ने कहा कि यह समझ से परे है कि जबरन जमीन लिया जा रहा है और याचिका में इसका जिक्र नहीं कि बैनामा हो चुका है.
कोर्ट ने कहा कि साफ हृदय से कोर्ट आने वाले को ही राहत दी जा सकती है. तथ्य छिपाकर दाखिल याचिका पर कोई राहत नहीं दी जा सकती. संरक्षण नहीं दिया जा सकता. ऐसा करने वालों के कारण कई बार सही लोगों को न्याय मिलने में देरी हो जाती है. साथ ही कोर्ट का समय भी खराब होता है. कोर्ट ने हर्जाना राशि जिला विधिक सेवा प्राधिकरण गोरखपुर में जमा करने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने याचिका की सुनवाई पूरी होने के बाद 10,000 हर्जाने के साथ याचिका खारिज कर दी है.
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