मुख्यमंत्री बनने से पहले तक योगी आदित्यनाथ को पूर्वी उत्तर प्रदेश का कद्दावर नेता माना जाता था. वहीं, पश्चिमी क्षेत्र में संगीत सिंह सोम की भी अच्छी खासी पकड़ है. दोनों में कुछ समानताएं हैं. दोनों नेताओं को कट्टर हिंदुत्व वाली छवि के लिए जाना जाता है. इसके अलावा दोनों ही राजपूत हैं. हालांकि, सोम से भगवा पार्टी को इस चुनाव में कुछ खास फायदे की उम्मीद नहीं है. इसका कारण यह है कि इस विधानसभा चुनाव में धर्म से अधिक जाति का मुद्दा हावी है. मेरठ जिले की सरधना विधानसभा सीट से दो बार के विधायक रहे सोम 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद सुर्खियों में आए थे. सरधना निर्वाचन क्षेत्र में मुसलमानों की संख्या लगभग 20 प्रतिशत है. यहां दलित करीब 16 प्रतिशत हैं. इन दो समुदायों के अलावा इस क्षेत्र में राजपूत, गुर्जर, जाट, ब्राह्मण और अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग भी हैं. सोम को अपनी जीत बरकरार रखने के लिए दलित वोट को साधना होगा.
सपा कैंडिडेट से है संगीत सोम की लड़ाई
संगीत सोम अतुल प्रधान के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे, जिन्हें समाजवादी पार्टी-राष्ट्रीय लोक दल गठबंधन का समर्थन प्राप्त है. वहीं, बहुजन समाज पार्टी ने संजीव धामा और कांग्रेस ने सैयद रेहानुद्दीन ने मैदान में उतारा है. प्रधान गुर्जर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और वह पिछले दो चुनावों में सोम के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं और हार गए हैं.
दलितों का क्या है मूड?
दलित बहुल मेरठ से करीब 25 किलोमीटर दूर सरधना तहसील के अलीपुर गांव का मिजाज कुछ जवाब दे सकता है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकांश ग्रामीणों का मानना है कि दलित समुदाय के एक वर्ग ने पिछले चुनावों में सोम को वोट दिया और वोटों के बंटवारे के कारण बसपा प्रमुख मायावती की राजनीतिक स्थिति कम हो गई. उन्हें लगता है कि यह उनके समुदाय के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है. बसपा प्रत्याशी धामा जाट समुदाय से हैं. गांव के एक दलित पंचायत सदस्य ने कहा, ''उम्मीदवार ज्यादा मायने नहीं रखता, हमें इस बार बसपा का वोट प्रतिशत बढ़ाना है.'' पंचायत सदस्य ने कहा कि निर्वाचन क्षेत्र की अधिकांश आबादी जाटव समुदाय की है जो मायावती के कट्टर समर्थक माने जाते हैं. दलितों के अन्य समूहों जैसे खटीक, पासी और वाल्मीकि की संख्या कम है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-सीएम योगी ने पेश किया पांच साल का रिपोर्ट कार्ड, बोले- कोरोना प्रबंधन में यूपी बना मिसाल
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