जानकी जयंती का त्योहार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन मनाया जाता है. इस दिन माता सीता की विशेष रूप से पूजा की जाती है. इस बार यह त्योहार 24 फरवरी को है. जानकी जयंती को सीता अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है. यह दिन सुहागन स्त्रियों के लिए अत्यंत ही विशेष होता है. जानकी जयंती के दिन सुहागन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र के लिए माता सीता की पूजा-अर्चना करती है.
इस जयंती को खासकर माता सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. कहा जाता है कि जानकी जयंती पर माता सीता का व्रत रखने से घर में मंगलमय होता है और घर में चारों ओर सुख शांति का माहौल रहता है जिसके कारण हर त्योहार की तरह जानकी जयंती मनाना भी हमारे हिन्दू धर्म की एक परंपरा है.
जानकी जयंती लगभग पूरे देश में बड़े ही धूमधाम से खुशियों के साथ मनाई जाती है. जानकी जयंती एक ऐसा त्योहार है जो अन्य त्योहारों की तरह भारत के कोने कोने में मनाया जाता है. जानकी जयंती के दिन माता सीता के भक्तगण उनके मंदिर में जाकर भगवान राम और माता सीता की पूजा अर्चना करते है, भजन करते है, उन्हें फूल चढ़ाते है, उन्हें पूजते है और कई प्रकार के कार्यक्रम आयोजित कर माता सीता के जन्मोत्सव को मनाते है.
जानकी जयंती क्यों मनाई जाती
जानकी जयंती क्यों मनाई जाती है इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य यही है कि इस दिन माता सीता का जन्म हुआ था. इसलिए लोग माता सीता का जन्मोत्सव मनाने के लिए जानकी जयंती मनाते है. मान्यता है कि इस जयंती पर कुंवारी महिलाएँ माता सीता की पूजा करती है और एक अच्छे वर प्राप्ति की कामना करती है, विवाहित महिलाओं के लिए तो यह जयंती बहुत खास होती क्योंकि जानकी जयंती ज्यादातर विवाहित महिलाएं ही मनाती क्योंकि इस दिन विवाहित महिलाएँ अपनी पति की आयु में वृद्धि हो ऐसी माता सीता से कामना करती है और उनके प्रति अपनी इच्छाए प्रकट करती है.
जानकी जयंती के दिन श्री जानकी या सीता की पूजा हमेशा गणेश जी, मां अंबिका और मां लक्ष्मी पूजा के साथ शुरू की जाती है. क्योंकि मां लक्ष्मी को भी माता सीता का ही रूप माना जाता है. इस दिन गणेश जी, अंबिका और लक्ष्मी पूजन के बाद माता सीता की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है. माता सीता के साथ-साथ भगवान श्रीराम का भी पूजन किया जाता है. इस पूजा में माता सीता के भक्तगण उन्हें फूल, वस्त्र, श्रंगार चढ़ा कर पीले व्यंजनो का भोग लगाते है. इस पूजा को करने से वैवाहिक जीवन में सुख समृद्धि होती है, विवाह जीवन में आने वाली सभी अड़चने दूर हो जाती हैं, जीवन साथी की आयु लम्बी होती है और घर सभी प्रकार के कष्टों से छुटकारा मिलता है.
जानकी जयंती का महत्व
जानकी जयंती हमारे हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है. जिस प्रकार भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी की पूजा, आराधना की जाती है ठीक उसी प्रकार भगवान श्रीराम के साथ माता सीता की पूजा की जाती है. जानकी जयंती को सबसे ज्यादा महत्व हमारे हिन्दू धर्म में दिया जाता है. जानकी जयंती त्योहार को अनेक नामो से जाना जाता है क्योंकि माता सीता का एक नाम नहीं अपितु अनेक नाम थे, जैसे भूमिपुत्री, भूसुता, जनकात्मज, जनकसुता, मैथिली आदि. जानकी जयंती को सीता जन्मोत्सव भी कहते हैं.
जानकी जयंती उत्सव
जानकी जयंती का उत्सव पूरे देश में हर साल लाजवाब रहता है. खासकर महिलाओं को इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है. महिलाएं यह जयंती आने से पूर्व ही तैयारियां करने लगती है. जानकी जयंती के सुअवसर पर कुंवारी महिलाएँ और विवाहित महिलाएँ दोनों अपने पति के लिए सीता माता का व्रत रखती है. इस उत्सव पर मंदिरों में भगवान श्रीराम और माता सीता की पूजा की जाती है. लोग यह भी कहते हैं कि इस पूजा को श्रद्धा भाव से करने से हमारे पाप धुल जाते है और हर कोई इस पूजा से कोई न कोई फल की प्राप्ति जरूर करता है.
जानकी जयंती मनाने के पीछे का रहस्य, पटकथा
जानकी जयंती मनाने के पीछे सबके अलग-अलग मत है लेकिन आज हम जानकी जयंती मनाने की सबसे सटीक और वास्तविक कहानी से आपको रूबरू करवाने वाले है. पौराणिक मान्यताओं और रामायण के अनुसार: एक मिथिला नामक राज्य था, जहाँ पर कई सालों तक वर्षा नहीं हुई और उस क्षेत्र में अकाल पड़ गया था. उस वहां के राजा माता सीता के पिता जनक थे. अकाल के चलते उस क्षेत्र की स्थिति इतनी खराब हो गई जिससे राजा जनक काफी परेशान हुए. तब इस समस्या को हल करने के लिए ऋषियों ने राजा जनक को एक उपाय बताया कि आप स्वयं यज्ञ करके खेत में हल चलाओ यह सुनकर राजा जनक ठीक वैसा ही किया जैसे ऋषियों ने उन्हें बताया था.
जब राजा जनक खेत में हल जोतने गए तब उनका हल खेत की मिट्टी में फंस गया. राजा जनक ने उस हल को बहार निकलने के लिए काफी प्रयास किए लेकिन जनक उस हल को निकाल नहीं पाए. फिर राजा जनक ने हल के चारों ओर जमी मिट्टी अपने सैनिकों से छाप करवाई. जैसे ही हल बहार निकला तो नीचे कलश में एक छोटी बच्ची निकाली, जिसे बहार निकलते ही मिथिला राज्य में वर्षा होने लगी. यह देख राजा ने अपनी कोई संतान न होने के कारण उसे अपनी पुत्री बना लिया तत्पश्चात उसका नाम सीता रखा गया था. जिसका जन्म कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-हरियाणा सरकार ने धर्मांतरण रोकथाम विधेयक को दी मंजूरी
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