प्रदीप द्विवेदी (खबरंदाजी). अक्सर एग्जिट पोल गलत साबित होते हैं, तो ज्यादातर भविष्यवाणियां झूठी निकलती हैं, काहे?
जब-जब एग्जिट पोल गलत साबित होते हैं, तब-तब इनकी विश्वसनीयता पर तो प्रश्नचिन्ह लग ही जाते हैं, सर्वे-शास्त्र भी संदेह और सवालों के घेरे में आ जाता है.
ऐसा क्यों होता है?
सर्वे-शास्त्र हो या ज्योतिष-शास्त्र, गलत अनुमान के कई कारण हैं....
* सर्वे-भविष्यवाणी करने वाले व्यक्ति के ज्ञान का अभाव या गणना में गलती या भाग्य-दोष, इसके लिए जिम्मेदार होते हैं.
* कई बार ऐसी भविष्यवाणियां की जाती है, जो नहीं की जानी चाहिए, जैसे- कौन बनेगा प्रधानमंत्री? कौन बनेगा मुख्यमंत्री? जैसी भविष्यवाणी करना बेकार हैै, क्योंकि, जो भविष्यवाणी की जाएगी वह वर्तमान परिस्थिति देख कर होगी, वर्तमान नेताओें की कुंडलियों केे आधार पर होगी, जबकि करोड़ों लोगों में कोई ऐसा व्यक्ति भी हो सकता है, जिसकी कुंडली वर्तमान सारे बड़े नेताओं से ज्यादा मजबूत हो, ज्यादा प्रभावी हो, परंतु ऐसे व्यक्ति का पता लगाना आसान नहीं हैै.
* दशा राज कराती है, इसलिए दशा बदलते ही अक्सर सारी सियासी तस्वीर बदल जाती है और भविष्यवाणी झूठी पड़ जाती है.
* कई बार व्यक्ति पक्षपातपूर्ण भविष्यवाणी करता है, ऐसी भविष्यवाणी सच कैसे हो सकती है? ऐसे ही एकतरफा मीडिया के एग्जिट पोल भी गलत ही साबित होंगे.
* किसी पार्टी विशेष से प्रेम, राजनीतिक माहौल, सेंपल सर्वे आदि से प्रभावित पूर्वानुमान भी अक्सर गलत साबित होते हैं?
याद रहे. एक्सिडेंट के लिए ड्रायवर जिम्मेदार होता है, गाड़ी नहीं, बोले तो.... झूठे एग्जिट पोल के लिए एकतरफा मीडिया जिम्मेदार है, सर्वे-शास्त्र नही?
एग्जिट पोल की पोल खोलती, दैनिक भास्कर में रक्षा सिंह की रिपोर्ट....
क्या टीवी चैनलों ने 70 दिन पुराना एग्जिट पोल दिखाया? ओपिनियन पोल्स और आज के एग्जिट पोल में कोई फर्क नहीं, क्या यूपी में कुछ नहीं बदला?
खबर बताती है कि.... यूपी के एग्जिट पोल आ गए हैं. हमने 5 चैनल्स और एजेंसीज के एग्जिट पोल देखे. साथ ही ये भी देखा कि यही चैनल्स और एजेंसीज 70 दिन पहले क्या ओपिनियन पोल दे रहे थे?
हमें दोनों में सबसे ज्यादा मात्र 12 सीटों का फर्क नजर आया, तो कहीं 0 सीटों का फर्क रहा.
जब ओपिनियन पोल आए थे तो प्रदेश में भाजपा की लहर थी. भाजपा ने चुनाव से 177 दिन पहले 8 बड़े प्रोजेक्ट्स के उद्घाटन किए थे. राम मंदिर भी बड़ा मुद्दा था. इसका असर ओपिनियन पोल पर नजर आया. सभी 5 पोल में भाजपा की बहुमत से सरकार बन रही थी.
पर क्या इन 70 दिनों में कुछ नहीं बदला?
पहले और दूसरे चरण के चुनाव पश्चिमी यूपी की सीटों पर हुए. ये वही सीट हैं जहां किसान आंदोलन का मुद्दा सबसे ज्यादा गरमाया था.
दोनों चरण के एग्जिट पोल में भाजपा को 31-33 तो सपा को 20-23 सीटें मिलती दिखाई दीं.
तीसरे चरण में हिजाब के मुद्दे पर सियासत गरमाई. एग्जिट पोल में भाजपा और सपा की एकदम कांटे की टक्कर थी.
इसके बाद अयोध्या में अखिलेश का रोड शो हुआ, उसमें हजारों लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी.
यहां तक कि अखिलेश यादव ने ऐलान कर दिया, यूपी में सपा की वापसी होना तय.
पर इन सबका असर एग्जिट पोल पर नजर नहीं आया. एग्जिट पोल देखकर लग रहा कि ओपिनियन पोल में ही थोड़ा हेर-फेर करके लगा दिया गया?
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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-बिना स्मार्टफोन के मिलेगी यूपीआई आधारित पेमेंट की सुविधा, जानें RBI की क्या है खास तैयारी
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