बिलासपुर. छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के खैरागढ़ निवासी बीएस मेश्राम की शादी 6 अप्रैल 2003 में खैरागढ़ में ही रहने वाली महिला से हुई थी. शादी के बाद ही उसने ससुरालवालों से अलग रहने की मांग की. इस कारण दंपती किराये के मकान में रहने लगे, लेकिन महिला ने कभी घरेलू काम और खाना बनाने में रुचि नहीं ली. पति को ही सारे काम करने पड़ते थे. दो बच्चों के जन्म के बाद भी महिला का रवैया नहीं सुधरा और उसने किसी काम में पति की मदद नहीं की. बच्चों की पढ़ाई- लिखाई पर भी ध्यान नहीं दिया.
इतना ही नहीं पति के चरित्र पर शंका जाहिर करते हुए वह झूठे केस में फंसाने की धमकी देती रही. शारीरिक और मानसिक क्रूरता से परेशान होकर पति ने अलग आवास खरीदा और दोनों बच्चों के साथ वहां रहने लगा, लेकिन पत्नी लगातार अलग रही. साथ रहने का प्रयास नहीं किया. इसके बाद पति ने फैमिली कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत विवाह विच्छेद के लिए आवेदन प्रस्तुत किया. फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद 11 मई 2018 को क्रूरता और परित्याग के आधार पर विवाह विच्छेद की डिक्री मंजूर की थी.
पत्नी ने इस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. पति-बच्चों से अलग तीन साल तक किराये के मकान में रही पति व बच्चों से अलग महिला तीन साल से अधिक समय तक किराये के मकान में रही, जबकि पति ने खुद का मकान बना लिया था. खुद का मकान होने के बाद भी वह बगैर किसी ठोस कारण के किराये के मकान में रहती रही. प्रतिपरीक्षण के दौरान उसने माना कि वह करीब 8 साल से अलग रह रही है और पति से किसी तरह का संपर्क नहीं है. पति पर अवैध संबंध का आरोप भी प्रमाणित नहीं कर सकी. सुनवाई के बाद हाई कोर्ट के जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की बेंच ने माना कि उनका अलगाव लंबी अवधि का रहा है और उनके संबंधों में सुधार की गुंजाइश नहीं है. हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए याचिका खारिज कर दी है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-छत्तीसगढ़: कोर्ट ने भगवान शिव को भेजा कारण बताओ नोटिस, नहीं आने पर देना होगा 10 हजार का जुर्माना
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