भौम प्रदोष व्रत विस्तृत विधि

भौम प्रदोष व्रत विस्तृत विधि

प्रेषित समय :20:36:16 PM / Mon, Aug 8th, 2022

भौम प्रदोष - मंगलवार  प्रदोष - मंगलवार 9, अगस्त  2022  को है.  
प्रत्येक चन्द्र मास की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखने का विधान है. यह व्रत कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष दोनों को किया जाता है. सूर्यास्त के बाद के 2 घण्टे 24 मिनट का समय प्रदोष काल के नाम से जाना जाता है. प्रदेशों के अनुसार यह बदलता रहता है. सामान्यत: सूर्यास्त से लेकर रात्रि आरम्भ तक के मध्य की अवधि को प्रदोष काल में लिया जा सकता है.
ऐसा माना जाता है कि प्रदोष काल में भगवान भोलेनाथ कैलाश पर्वत पर प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है. जिन जनों को भगवान श्री भोलेनाथ पर अटूट श्रद्धा विश्वास हो, उन जनों को त्रयोदशी तिथि में पडने वाले प्रदोष व्रत का नियम पूर्वक पालन कर उपवास करना चाहिए.
यह व्रत उपवासक को धर्म, मोक्ष से जोडने वाला और अर्थ, काम के बंधनों से मुक्त करने वाला होता है. इस व्रत में भगवान शिव की पूजन किया जाता है. भगवान शिव कि जो आराधना करने वाले व्यक्तियों की गरीबी, मृ्त्यु, दु:ख और ऋणों से मुक्ति मिलती है.
प्रदोष व्रत की महत्ता
शास्त्रों के अनुसार प्रदोष व्रत को रखने से दौ गायों को दान देने के समान पुन्य फल प्राप्त होता है. प्रदोष व्रत को लेकर एक पौराणिक तथ्य सामने आता है कि " एक दिन जब चारों और अधर्म की स्थिति होगी, अन्याय और अनाचार का एकाधिकार होगा, मनुष्य में स्वार्थ भाव अधिक होगी. तथा व्यक्ति सत्कर्म करने के स्थान पर नीच कार्यो को अधिक करेगा.
उस समय में जो व्यक्ति त्रयोदशी का व्रत रख, शिव आराधना करेगा, उस पर शिव कृ्पा होगी. इस व्रत को रखने वाला व्यक्ति जन्म- जन्मान्तर के फेरों से निकल कर मोक्ष मार्ग पर आगे बढता है. उसे उतम लोक की प्राप्ति होती है.
व्रत से मिलने वाले फल
अलग- अलग वारों के अनुसार प्रदोष व्रत के लाभ प्राप्त होते है.
जैसे सोमवार के दिन त्रयोदशी पडने पर किया जाने वाला वर्त आरोग्य प्रदान करता है. सोमवार के दिन जब त्रयोदशी आने पर जब प्रदोष व्रत किया जाने पर, उपवास से संबन्धित मनोइच्छा की पूर्ति होती है. जिस मास में मंगलवार के दिन त्रयोदशी का प्रदोष व्रत हो, उस दिन के व्रत को करने से रोगों से मुक्ति व स्वास्थय लाभ प्राप्त होता है एवं बुधवार के दिन प्रदोष व्रत हो तो, उपवासक की सभी कामना की पूर्ति होने की संभावना बनती है.
गुरु प्रदोष व्रत शत्रुओं के विनाश के लिये किया जाता है. शुक्रवार के दिन होने वाल प्रदोष व्रत सौभाग्य और दाम्पत्य जीवन की सुख-शान्ति के लिये किया जाता है. अंत में जिन जनों को संतान प्राप्ति की कामना हो, उन्हें शनिवार के दिन पडने वाला प्रदोष व्रत करना चाहिए. अपने उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए जब प्रदोष व्रत किये जाते है, तो व्रत से मिलने वाले फलों में वृ्द्धि होती है.
व्रत विधि
सुबह स्नान के बाद भगवान शिव, पार्वती और नंदी को पंचामृत और जल से स्नान कराएं. फिर गंगाजल से स्नान कराकर बेल पत्र, गंध, अक्षत (चावल), फूल, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग), फल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची चढ़ाएं. फिर शाम के समय भी स्नान करके इसी प्रकार से भगवान शिव की पूजा करें. फिर सभी चीजों को एक बार शिव को चढ़ाएं.और इसके बाद भगवान शिव की सोलह सामग्री से पूजन करें. बाद में भगवान शिव को घी और शक्कर मिले जौ के सत्तू का भोग लगाएं. इसके बाद आठ दीपक आठ दिशाओं में जलाएं. जितनी बार आप जिस भी दिशा में दीपक रखेंगे, दीपक रखते समय प्रणाम जरूर करें. अंत में शिव की आरती करें और साथ ही शिव स्त्रोत, मंत्र जाप करें. रात में जागरण करें.
प्रदोष व्रत समापन पर उद्यापन 
इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्यापन  के नाम से भी जाना जाता है.
उद्यापन  करने की विधि 
इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का समापन करना चाहिए. इसे उद्यापन के नाम से भी जाना जाता है.
इस व्रत का उद्यापन  करने के लिये त्रयोदशी तिथि का चयन किया जाता है. उद्यापन  से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है. प्रात: जल्द उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों या पद्म पुष्पों से सजाकर तैयार किया जाता है. "ऊँ उमा सहित शिवाय नम:" मंत्र का एक माला अर्थात 108 बार जाप करते हुए, हवन किया जाता है. हवन में आहूति के लिये खीर का प्रयोग किया जाता है.
हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है. और शान्ति पाठ किया जाता है. अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है. तथा अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है.
मंगल प्रदोष व्रत 
सूत जी बताते है- “ मंगल त्रयोदशी प्रदोष व्रत व्याधियों का नाश करता है . ऋण से मुक्ति प्रदान करता है, सुख-शान्ति और श्रीवृद्धि करता है.”
व्रत कथा
एक नगर में एक वृद्धा निवास करती थी . उसके मंगलिया नामक एक पुत्र था . वृद्धा की हनुमान जी पर गहरी आस्था थी . वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमान जी की आराधना करती थी . उस दिन वह न तो घर लीपती थी और न ही मिट्टी खोदती थी . वृद्धा को व्रत करते हुए अनेक दिन बीत गए . एक बार हनुमान जी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची . हनुमान जी साधु का वेश धारण कर वहां गए और पुकारने लगे -“है कोई हनुमान भक्त जो हमारी इच्छा पूर्ण करे?’ पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- ‘आज्ञा महाराज?’ साधु वेशधारी हनुमान बोले- ‘मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा . तू थोड़ी जमीन लीप दे.’ वृद्धा दुविधा में पड़ गई . अंततः हाथ जोड़ बोली- “महाराज! लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी .” साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- ‘तू अपने बेटे को बुला . मै उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाउंगा .’ वृद्धा के पैरों तले धरती खिसक गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी . उसने मंगलिया को बुलाकर साधु के सुपुर्द कर दिया . मगर साधु रूपी हनुमान जी ऐसे ही मानने वाले न थे . उन्होंने वृद्धा के हाथों से ही मंगलिया को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई . आग जलाकर, दुखी मन से वृद्धा अपने घर के अन्दर चली गई . इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- ‘मंगलिया को पुकारो, ताकि वह भी आकर भोग लगा ले.’ इस पर वृद्धा बहते आंसुओं को पौंछकर बोली -‘उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ.’ लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने मंगलिया को आवाज लगाई . पुकारने की देर थी कि मंगलिया दौड़ा-दौड़ा आ पहुंचा . मंगलिया को जीवित देख वृद्धा को सुखद आश्‍चर्य हुआ . वह साधु के चरणों मे गिर पड़ी . साधु अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए . हनुमान जी को अपने घर में देख वृद्धा का जीवन सफल हो गया . सूत जी बोले- “मंगल प्रदोष व्रत से शंकर (हनुमान भी रुद्र हैं) और पार्वती जी इसी तरह भक्तों को साक्षात् दर्शन दे कृतार्थ करते हैं .”
प्रदोषस्तोत्रम् 
.. श्री गणेशाय नमः.. 
जय देव जगन्नाथ जय शङ्कर शाश्वत . जय सर्वसुराध्यक्ष जय सर्वसुरार्चित ॥ १॥ 
जय सर्वगुणातीत जय सर्ववरप्रद . 
जय नित्य निराधार जय विश्वम्भराव्यय ॥ २॥ 
जय विश्वैकवन्द्येश जय नागेन्द्रभूषण . 
जय गौरीपते शम्भो जय चन्द्रार्धशेखर ॥ ३॥ 
जय कोट्यर्कसङ्काश जयानन्तगुणाश्रय . जय भद्र विरूपाक्ष जयाचिन्त्य निरञ्जन ॥ ४॥ 
जय नाथ कृपासिन्धो जय भक्तार्तिभञ्जन . जय दुस्तरसंसारसागरोत्तारण प्रभो ॥ ५॥ 
प्रसीद मे महादेव संसारार्तस्य खिद्यतः . सर्वपापक्षयं कृत्वा रक्ष मां परमेश्वर ॥ ६॥ 
महादारिद्र्यमग्नस्य महापापहतस्य च . महाशोकनिविष्टस्य महारोगातुरस्य च ॥ ७॥ 
ऋणभारपरीतस्य दह्यमानस्य कर्मभिः . ग्रहैः प्रपीड्यमानस्य प्रसीद मम शङ्कर ॥ ८॥ 
दरिद्रः प्रार्थयेद्देवं प्रदोषे गिरिजापतिम् . अर्थाढ्यो वाऽथ राजा वा प्रार्थयेद्देवमीश्वरम् ॥ ९॥ 
दीर्घमायुः सदारोग्यं कोशवृद्धिर्बलोन्नतिः . 
ममास्तु नित्यमानन्दः प्रसादात्तव शङ्कर ॥ १०॥ 
शत्रवः संक्षयं यान्तु प्रसीदन्तु मम प्रजाः . नश्यन्तु दस्यवो राष्ट्रे जनाः सन्तु निरापदः ॥ ११॥ 
दुर्भिक्षमरिसन्तापाः शमं यान्तु महीतले . सर्वसस्यसमृद्धिश्च भूयात्सुखमया दिशः ॥ १२॥ 
एवमाराधयेद्देवं पूजान्ते गिरिजापतिम् . ब्राह्मणान्भोजयेत् पश्चाद्दक्षिणाभिश्च पूजयेत् ॥ १३॥ 
सर्वपापक्षयकरी सर्वरोगनिवारणी . शिवपूजा मयाऽऽख्याता सर्वाभीष्टफलप्रदा ॥ १४॥ 
॥ इति प्रदोषस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
कथा एवं स्तोत्र पाठ के बाद महादेव जी की आरती करें
ताम्बूल, दक्षिणा, जल -आरती 
तांबुल का मतलब पान है. यह महत्वपूर्ण पूजन सामग्री है. फल के बाद तांबुल समर्पित किया जाता है. ताम्बूल के साथ में पुंगी फल (सुपारी), लौंग और इलायची भी डाली जाती है . दक्षिणा अर्थात् द्रव्य समर्पित किया जाता है. भगवान भाव के भूखे हैं. अत: उन्हें द्रव्य से कोई लेना-देना नहीं है. द्रव्य के रूप में रुपए, स्वर्ण, चांदी कुछ भी अर्पित किया जा सकता है.
आरती पूजा के अंत में धूप, दीप, कपूर से की जाती है. इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. आरती में एक, तीन, पांच, सात यानि विषम बत्तियों वाला दीपक प्रयोग किया जाता है.
भगवान शिव जी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा,भोले हर शिव ओंकारा.
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ 
एकानन चतुरानन पंचानन राजे.
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ 
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे.
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ 
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी.
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ 
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे.
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ 
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता.
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ 
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका.
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ 
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी.
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ 
लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा .
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा .. 
पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा.
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा .. 
जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला.
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला .. 
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे.
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ 
ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा .. ॐ हर हर हर महादेव..
कर्पूर आरती
कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम्.
सदावसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि॥
मंगलम भगवान शंभू
मंगलम रिषीबध्वजा .
मंगलम पार्वती नाथो
मंगलाय तनो हर ..
मंत्र पुष्पांजलि 
मंत्र पुष्पांजली मंत्रों द्वारा हाथों में फूल लेकर भगवान को पुष्प समर्पित किए जाते हैं तथा प्रार्थना की जाती है. भाव यह है कि इन पुष्पों की सुगंध की तरह हमारा यश सब दूर फैले तथा हम प्रसन्नता पूर्वक जीवन बीताएं.
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजंत देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्.
ते हं नाकं महिमान: सचंत यत्र पूर्वे साध्या: संति देवा:
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्ये साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे स मे कामान्कामकामाय मह्यम् कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु.
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नम:
ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं
पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समंतपर्यायी सार्वायुष आंतादापरार्धात्पृथिव्यै समुद्रपर्यंता या एकराळिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुत: परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्गृहे आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवा: सभासद इति.
ॐ विश्व दकचक्षुरुत विश्वतो मुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात संबाहू ध्यानधव धिसम्भत त्रैत्याव भूमी जनयंदेव एकः.
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥
नाना सुगंध पुष्पांनी यथापादो भवानीच
पुष्पांजलीर्मयादत्तो रुहाण परमेश्वर
ॐ भूर्भुव: स्व: भगवते श्री सांबसदाशिवाय नमः. मंत्र पुष्पांजली समर्पयामि..
प्रदक्षिणा
नमस्कार, स्तुति -प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा. आरती के उपरांत भगवन की परिक्रमा की जाती है, परिक्रमा हमेशा क्लॉक वाइज  करनी चाहिए. स्तुति में क्षमा प्रार्थना करते हैं, क्षमा मांगने का आशय है कि हमसे कुछ भूल, गलती हो गई हो तो आप हमारे अपराध को क्षमा करें.
यानि कानि च पापानि जन्मांतर कृतानि च. तानि सवार्णि नश्यन्तु प्रदक्षिणे पदे-पदे..
अर्थ: जाने अनजाने में किए गए और पूर्वजन्मों के भी सारे पाप प्रदक्षिणा के साथ-साथ नष्ट हो जाए.
Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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