गुरु पूर्णिमा के अवसर पर जिसने भी गुरु बनाए हैं , वह उनका दर्शन एवं पूजन अवश्य करें

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर जिसने भी गुरु बनाए हैं , वह उनका दर्शन एवं पूजन अवश्य करें

प्रेषित समय :20:38:50 PM / Tue, Jul 12th, 2022

गुरु पूर्णिमा  13,जुलाई 2022 को है. आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं. इस दिन गुरु पूजा का विधान है. गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है. इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं. ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं. न अधिक गर्मी और न अधिक सर्दी. इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए हैं. जैसे सूर्य के ताप से तप्त भूमि को वर्षा से शीतलता एवं फसल पैदा करने की शक्ति मिलती है, वैसे ही गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है.

गुरू पूर्णिमा अर्थात गुरू के ज्ञान एवं उनके स्नेह का स्वरुप है. हिंदु परंपरा में गुरू को ईश्वर से भी आगे का स्थान प्राप्त है तभी तो कहा गया है कि हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर. इस दिन के शुभ अवसर पर गुरु पूजा का विधान है. गुरु के सानिध्य में पहुंचकर साधक को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त होती है.

गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह दिन महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास का जन्मदिन भी होता है. वेद व्यास जी प्रकांड विद्वान थे उन्होंने वेदों की भी रचना की थी इस कारण उन्हें वेद व्यास के नाम से पुकारा जाने लगा.

ज्ञान का मार्ग गुरू पूर्णिमा 

शास्त्रों में गुरू के अर्थ के अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश देने वाला कहा गया है. गुरु हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले होते हैं. गुरु की भक्ति में कई श्लोक रचे गए हैं जो गुरू की सार्थकता को व्यक्त करने में सहायक होते हैं. गुरु की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार संभव हो पाता है और गुरु की कृपा के अभाव में कुछ भी संभव नहीं हो पाता.

गुरू आत्मा - परमात्मा के मध्य का संबंध होता है. गुरू से जुड़कर ही जीव अपनी जिज्ञासाओं को समाप्त करने में सक्षम होता है तथा उसका साक्षात्कार प्रभु से होता है. हम तो साध्य हैं किंतु गुरू वह शक्ति है जो हमारे भितर भक्ति के भाव को आलौकिक करके उसमे शक्ति के संचार का अर्थ अनुभव कराती है और ईश्वर से हमारा मिलन संभव हो पाता है. परमात्मा को देख पाना गुरू के द्वारा संभव हो पाता है. इसीलिए तो कहा है , गुरु गोविंददोऊ खड़े काके लागूं पाय. बलिहारी गुरु आपके जिन गोविंद दियो बताय.

गुरु पूर्णिमा पौराणिक महत्व 

गुरु को ब्रह्मा कहा गया है. गुरु अपने शिष्य को नया जन्म देता है. गुरु ही साक्षात महादेव है, क्योकि वह अपने शिष्यों के सभी दोषों को माफ करता है. गुरु का महत्व सभी दृष्टि से सार्थक है. आध्यात्मिक शांति, धार्मिक ज्ञान और सांसारिक निर्वाह सभी के लिए गुरू का दिशा निर्देश बहुत महत्वपूर्ण होता है. गुरु केवल एक शिक्षक ही नहीं है, अपितु वह व्यक्ति को जीवन के हर संकट से बाहर निकलने का मार्ग बताने वाला मार्गदर्शक भी है.

गुरू का स्थान ईश्वर से भी श्रेष्ठ है. हमारे सभ्य सामाजिक जीवन का आधार स्तभ गुरू हैं. कई ऐसे गुरू हुए हैं, जिन्होने अपने शिष्य को इस तरह शिक्षित किया कि उनके शिष्यों ने राष्ट्र की धारा को ही बदल दिया.

गुरु हमारे अंतर मन को आहत किये बिना हमें सभ्य जीवन जीने योग्य बनाते हैं. दुनिया को देखने का नजरिया गुरू की कृपा से मिलता है. पुरातन काल से चली आ रही गुरु महिमा को शब्दों में लिखा ही नही जा सकता. संत कबीर भी कहते हैं कि

सब धरती कागज करू, लेखनी सब वनराज.

सात समुंद्र की मसि करु, गुरु गुंण लिखा न जाए॥

गुरु पूर्णिमा के पर्व पर अपने गुरु को सिर्फ याद करने का प्रयास है. गुरू की महिमा  बताना तो सूरज को दीपक दिखाने के समान है. गुरु की कृपा हम सब को प्राप्त हो. अंत में कबीर दास जी के निम्न दोहे से अपनी कलम को विराम देते हैं.

इस दिन क्या करना चाहिए 

१. जिसने अपने गुरु बनाए हैं वह गुरु के दर्शन करें. 

२. हिन्दु शास्त्र में श्री आदि शंकराचार्य को जगतगुरु माना जाता है इसलिए उनकी पूजा करनी चाहिए.  

ज्योतिष और कुंडली के आधार पर नीचे दी गयी स्थिति में गुरु यंत्र रखना चाहिए, एवं गुरु यंत्र की पूजा करनी चाहिए- 

१. आपकी कुंडली में गुरु नीचस्थ राशि में यानि की मकर राशि में है तो गुरु यंत्र की पूजा करनी चाहिए. 

२. गुरु-राहु, गुरु-केतु या गुरु-शनि युति में होने पर भी यह यंत्र लाभदायी है. 

३. आपकी कुंडली में गुरु नीचस्थ स्थान में यानि कि ६, ८ या १२ वे स्थान में है तो आपको गुरु यंत्र रखना चाहिए एवं उसकी नियमित तौर पर पूजा करनी चाहिए. 

४. कुंडली में गुरु वक्री या अस्त है तो गुरु अपना बल प्राप्त नहीं कर पाता, इसलिए आपको इस यंत्र की पूजा करनी चाहिए. 

इस समय कर्क राशि में यानि की अपनी उच्च की राशि में भ्रमण कर रहा गुरु आपके लिए कैसा रहेगा

शास्त्रोक्त श्री गुरु पूजन विधि

ध्यान दें- इस वर्ष गुरुपूर्णिमा के ही दिन मान्ध चंद्रग्रहण पड़ रहा है. परन्तु मान्ध होने के कारण इसका आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कोई महत्त्व नही इसका यम नियमादि मान्य नही होने के कारण सूतक आदि नही लगेगा.

इस साधना के लिए प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर, स्नानादि करके, पीले या सफ़ेद आसन पर पूर्वाभिमुखी होकर बैठें बाजोट पर पीला कपड़ा बिछा कर उसपर केसर से “ॐ” लिखी ताम्बे या स्टील की प्लेट रखें. उस पर पंचामृत से स्नान कराके “गुरु यन्त्र” व “कुण्डलिनी जागरण यन्त्र” रखें. सामने गुरु चित्र भी रख लें. अब पूजन प्रारंभ करें.

पवित्रीकरण 

बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ की उंगलियों से स्वतः पर छिड़कें.

ॐ अपवित्रः पवित्रो व सर्वावस्थां गतोऽपि वा. यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः.

आचमन 

निम्न मंत्रों को पढ़ आचमनी से तीन बार जल पियें.

ॐ आत्म तत्त्वं शोधयामि स्वाहा.

ॐ ज्ञान तत्त्वं शोधयामि स्वाहा.

१ माला जाप करे अनुभव करे हमरे पाप दोस समाप्त हो रहे है. .

ॐ ह्रौं मम समस्त दोषान निवारय ह्रौं फट

संकल्प ले फिर पूजन आरम्भ करे .

सूर्य पूजन 

कुंकुम और पुष्प से सूर्य पूजन करें.

ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च. हिरण्येन सविता रथेन याति भुनानि पश्यन ..

ॐ पश्येन शरदः शतं श्रृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतं. जीवेम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात..

ध्यान 

अचिन्त्य नादा मम देह दासं, मम पूर्ण आशं देहस्वरूपं.न जानामि पूजां न जानामि ध्यानं, गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यं..

ममोत्थवातं तव वत्सरूपं, आवाहयामि गुरुरूप नित्यं. स्थायेद सदा पूर्ण जीवं सदैव, गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यं ..

आवाहन 

ॐ स्वरुप निरूपण हेतवे श्री निखिलेश्वरानन्दाय गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि.

ॐ स्वच्छ प्रकाश विमर्श हेतवे श्री सच्चिदानंद परम गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि.

स्थापन 

गुरुदेव को अपने षट्चक्रों में स्थापित करें.

श्री शिवानन्दनाथ पराशक्त्यम्बा मूलाधार चक्रे स्थापयामि नमः.

श्री रुद्रदेवानन्दनाथ इच्छा शक्त्यम्बा अनाहत चक्रे स्थापयामि नमः

श्री विष्णुदेवानन्दनाथ क्रिया शक्त्यम्बा सहस्त्रार चक्रे स्थापयामि नमः.

पाद्य 

मम प्राण स्वरूपं, देह स्वरूपं समस्त रूप रूपं गुरुम् आवाहयामि पाद्यं समर्पयामि नमः.

अर्घ्य

ॐ श्री समनाकाशानन्दनाथ – स्नानं समर्पयामि.

ॐ श्री व्यापकानन्दनाथ – सिद्धयोगा जलं समर्पयामि.

ॐ श्री अनाहताकाशानन्दनाथ – अष्टगंधं समर्पयामि.

ॐ श्री विन्द्वाकाशानन्दनाथ – अक्षतां समर्पयामि.

ॐ श्री द्वन्द्वाकाशानन्दनाथ – सर्वोपचारां समर्पयामि.

पुष्प, बिल्व पत्र 

तमो स पूर्वां एतोस्मानं सकृते कल्याण त्वां कमलया सशुद्ध बुद्ध प्रबुद्ध स चिन्त्य अचिन्त्य वैराग्यं नमितांपूर्ण त्वां गुरुपाद पूजनार्थंबिल्व पत्रं पुष्पहारं च समर्पयामि नमः.

दीप 

श्री महादर्पनाम्बा सिद्ध ज्योतिं समर्पयामि.

श्री सुन्दर्यम्बा सिद्ध प्रकाशम् समर्पयामि.

श्री खराननाम्बा सिद्ध तिमिरनाश दीपं समर्पयामि.

श्री विधीशालीनाम्बा पूर्ण दीपं समर्पयामि.

नीराजन 

ताम्रपात्र में जल, कुंकुम, अक्षत अवं पुष्प लेकर यंत्रों पर समर्पित करें.

श्री सोममण्डल नीराजनं समर्पयामि.

धन्य हुए हम पाकर धारा, ब्रह्मज्ञान निर्झर की.

आरती करूँ गुरुवर की॥

करो कृपा सद्गुरु जग-तारन,

सत्पथ-दर्शक भ्रान्ति-निवारन,

जय हो नित्य ज्योति दिखलाने वाले लीलाधर की.

आरती करूँ आरती सद्गुरु की

प्यारे गुरुवर की आरती, आरती करूँ गुरुवर की.

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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