भगवान सूर्य के मंत्रों में अद्भुत शक्ति, अर्घ्य देने से धन-धान्य एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती

भगवान सूर्य के मंत्रों में अद्भुत शक्ति, अर्घ्य देने से धन-धान्य एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती

प्रेषित समय :21:27:09 PM / Sat, Aug 20th, 2022

सूर्य देव नवग्रहों में सर्वप्रमुख देवता हैं. वेद ब्रह्म स्वरूप है अतः सूर्य देवता ही वेद स्वरूप है, इसीलिए इन्हें 'त्रयीतनु' कहा गया है.
शास्त्रों में सूर्य देव को ही
प्रत्यक्ष देव माना गया है.
सूर्य देव ही एक मात्र ऐसे देव हैं
जो  नित हमें दर्शन देते हैं.
सृष्टि के समस्त प्राणी उनका दर्शन कर
अपार अनुग्रह प्राप्त करते हैं.
रविवार का दिन सूर्य देव की पूजा के लिए
सबसे अच्छा माना गया है.
रविवार के दिन सूर्य को  मंत्रों के साथ उन्हें
जल अर्पण करने और उनकी उपासना करने
से जीवन में सूर्य देव की कृपा सदैव बनी रहती है.
सूर्य देव के मंत्रों में अद्भुत शक्ति है.

सूर्य अर्घ्य विधान:
भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से बुद्धि एवं व्यक्तित्व का विकास होता है, व्यक्ति तेजस्वी होता है, कई प्रकार की बीमारियों में लाभ मिलता है एवं सूर्य देव की कृपा प्राप्त होती है.
सूर्य देव को अर्ध्य प्रातः काल सूर्योदय के समय दिया जाता है, सूर्यास्त के समय भी अर्ध्य देना शास्त्र सम्मत है. तांबे के लोटे में शुद्ध जल भरकर उसमें लाल चंदन, लाल पुष्प, चावल तथा थोड़ा सा दूध डालकर पूर्व दिशा की ओर सूर्यदेव के समक्ष खड़े होकर अर्ध्य दिया जा सकता है. अर्ध्य देते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पानी के छींटे आपके पैरों पर ना पड़े. अर्ध्य देते समय निम्न श्लोक का उच्चारण करना चाहिए:
एहि सूर्य! सहस्रांशो, तेजोराशि जगत्पते.
करुनाकर में देव, गृहाणार्घ्यं नमोस्तुते..

गायत्री मंत्र का भी जप करते हुए अर्ध्य दिया जा सकता है. अर्ध्य तीन बार में दिया जाना चाहिए. अर्ध्य से गिरे हुए जल को दाहिने नेत्र, दाहिने नाक का एवं दाहिने कान पर लगाते हैं.
सूर्य देव को विधिपूर्वक जल चढ़ाने से व्यक्ति को धन-धान्य एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है, व्यक्ति का विद्या बल, तेज बढ़ता है. शत्रु परास्त होते हैं तथा पुत्र एवं उत्तम मित्रों की प्राप्ति होती है. अतः सूर्य देव को अर्ध्य देने का दैनिक दिनचर्या में बड़ा महत्व है.

कहते हैं कि जो मनुष्य सूर्य के मंत्रों से
प्रत्यक्ष देव सूर्य की उपासना करता है,
उसकी समस्त मनोकामनायें पूर्ण  होती है.
ऊँ हृां हृीं सः सूर्याय नमः..
ऊँ घृणिः सूर्य आदिव्योम..
ऊँ हृीं श्रीं आं ग्रहधिराजाय आदित्याय नमः.
दिव्यं गन्धाढ़्य सुमनोहरम्.
वबिलेपनं रश्मि दाता
चन्दनं प्रति गृह यन्ताम्..
ॐ सहस्त्र शीर्षाः पुरूषः
सहस्त्राक्षः सहस्त्र पाक्ष.
स भूमि ग्वं सब्येत स्तपुत्वा
अयतिष्ठ दर्शां गुलम्..
सूर्य का विशाल परिवार;-
सूर्य देव का परिवार काफी बड़ा है.
उनकी #संज्ञा और #छाया नाम की
दो पत्‍नियां और #10_संतानें हैं.
जिसमें से यमराज और शनिदेव जैसे
पुत्र और यमुना जैसी बेटियां शामिल हैं.
मनु स्‍मृति के रचयिता वैवस्वत मनु
भी सूर्यपुत्र ही हैं.
सूर्य की पत्नियां;-
सूर्य देव की दो पत्‍नियां संज्ञा और छाया हैं.
संज्ञा सूर्य का तेज ना सह पाने के कारण
अपनी छाया को उनकी पत्‍नी के रूप में
स्‍थापित करके तप करने चली गई थीं.
लंबे समय तक छाया को ही अपनी प्रथम
पत्‍नी समझ कर सूर्य उनके साथ रहते रहे.
ये राज बहुत बात में खुला की वे संज्ञा नहीं
छाया है.
संज्ञा से सूर्य को जुड़वां अश्विनी कुमारों के
रूप में दो बेटों सहित छह संतानें हुईं जबकि
छाया से उनकी चार संतानें थीं.
सूर्य के श्वसुर विश्वकर्मा;-
देव शिल्‍पी विश्‍वकर्मा सूर्य पत्‍नी संज्ञा के
पिता थे और इस नाते उनके श्‍वसुर हुए.
उन्‍होंने ही संज्ञा के तप करने जाने की
जानकारी सूर्य देव को दी थी.
सूर्य पुत्र यम;-
धर्मराज या यमराज सूर्य के सबसे बड़े
पुत्र और संज्ञा की प्रथम संतान हैं.
यमी;-
यमी यानि यमुना नदी सूर्य की दूसरी
संतान और ज्‍येष्‍ठ पुत्री हैं जो अपनी
माता संज्ञा को सूर्यदेव से मिले आशीर्वाद
चलते पृथ्‍वी पर नदी के रूप में प्रसिद्ध हुईं.
#वैवस्वत_मनु;-
सूर्य और संज्ञा की तीसरी संतान हैं वैवस्वत
मनु वर्तमान(सातवें)मन्वन्तर के अधिपति हैं.
यानि जो प्रलय के बाद संसार के पुनर्निर्माण
करने वाले प्रथम पुरुष बने और जिन्‍होंने मनु
स्‍मृति की रचना की.
मनु के वंशज को ही मनुष्य कहा गया है.
शनि देव;-
सूर्य और छाया की प्रथम संतान है शनिदेव
जिन्‍हें कर्मफल दाता और न्‍यायधिकारी भी
कहा जाता है.
अपने जन्‍म से शनि अपने पिता से शत्रु भाव
रखते थे.
भगवान शंकर के वरदान से वे नवग्रहों में
सर्वश्रेष्ठ स्थान पर नियुक्‍त हुए और मानव
तो क्या देवता भी उनके नाम से भयभीत रहते हैं.
तप्ती;-
छाया और सूर्य की कन्या तप्‍ति का विवाह
अत्यन्त धर्मात्मा सोमवंशी राजा संवरण के
साथ हुआ.
कुरुवंश के स्थापक राजर्षि कुरु इन दोनों की
ही संतान थे,जिनसे कौरवों की उत्पत्ति हुई.
विष्टि_या_भद्रा;-
सूर्य और छाया पुत्री विष्टि भद्रा नाम
से नक्षत्र लोक में प्रविष्ट हुई.
भद्रा काले वर्ण,लंबे केश, बड़े-बड़े दांत तथा
भयंकर रूप वाली कन्या है.
भद्रा गधे के मुख और लंबे पूंछ और तीन
पैरयुक्त उत्पन्न हुई.
शनि की तरह ही इसका स्वभाव भी कड़क
बताया गया है.
उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए ही
भगवान ब्रह्मा ने उन्हें काल गणना या पंचांग
के एक प्रमुख अंग विष्टि करण में स्थान दिया है.
सावर्णि_मनु;-
सूर्य और छाया की चौथी संतान हैं सावर्णि मनु.
वैवस्वत मनु की ही तरह वे इस मन्वन्तर
के पश्‍चात अगले यानि आठवें मन्वन्तर के
अधिपति होंगे.
अश्विनी_कुमार;-
संज्ञा के बारे में जानकारी मिलने के बाद अपना
तेज कम करके सूर्य घोड़ा बनकर उनके पास गए.
संज्ञा उस समय अश्विनी यानि
घोड़ी के रूप में थी.
दोनों के संयोग से जुड़वां अश्विनी कुमारों
की उत्पत्ति हुई जो देवताओं के वैद्य हैं.
कहते हैं कि दधीचि से मधु-विद्या सीखने
के लिये उनके धड़ पर घोड़े का सिर रख दिया
गया था,और तब उनसे मधुविद्या सीखी थी.
अत्‍यंत रूपवान माने जाने वाले अश्विनी
कुमार नासत्य और दस्त्र के नाम से भी
प्रसिद्ध हुए.
रेवंत;-
सूर्य की सबसे छोटी और संज्ञा की छठी
संतान हैं रेवंत जो उनके पुनर्मिलन के
बाद जन्‍मी थी.
रेवंत निरन्तर भगवान सूर्य की सेवा
में रहते हैं.

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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