श्रीगणेश एक ऐसे देवता हैं जो सुख -समृद्धि -मंगल तो देते ही हैं सुरक्षा और शत्रु को पराजित भी करते हैं. भावना और श्रद्धा अपनी जगह है पर हर देवता की आकृति ,रूप ,गुण ,विशेषता और मन्त्र पूजन पद्धति की भिन्नता के पीछे गंभीर रहस्य होता है जो उस शक्ति के विशेष गुणों के कारण बनाया गया होता है इसलिए किसी भी देवता की पूजा -आराधना में उसके अनुकूल ही तरीके और नियम अपनाने चाहिए विपरीत गुणों और ऊर्जा प्रकृति से पूजा करने पर देवता की शक्ति अनियमित ,असंतुलित और विकृत हो सकती है जो गंभीर परेशानियां भी दे सकती है या फिर पूजा बिना किसी लाभ के हो सकती है भले आप मानते हों की देवता है भगवान् हैं सबकुछ देख रहे हैं सब माफ़ करते हैं पर वास्तव में ऐसा कम ही होता है अगर ऐसा होता तो हर देवता की पूजा पद्धति अलग नहीं होती, सबको चढ़ाए जाने वाले पदार्थ अलग नहीं होते, सबके मन्त्र अलग नहीं होते.
सबसे पहले हम आपको बताते हैं कि किस तरह के गणेश जी कहां स्थापित करने से वे प्रसन्न होते हैं हम आपको बताते हैं कि कहां किस तरह के गणेश स्थापित करना चाहिए और गणेश जी कैसे आपके घर का वास्तु सुधार सकते हैं, आपको सुखी कर सकते हैं कैसे आपको समृद्धि दे सकते हैं.
सुख, शांति, समृद्धि की चाह रखने वालों को सफेद रंग के विनायक की मूर्ति लाना चाहिए. साथ ही, घर में इनका एक स्थाई चित्र भी लगाना चाहिए.
सर्व मंगल की कामना करने वालों के लिए सिंदूरी रंग के गणपति की आराधना अनुकूल रहती है. घर में पूजा के लिए गणेश जी की शयन या बैठी मुद्रा में हो तो अधिक शुभ होती है. यदि कला या अन्य शिक्षा के प्रयोजन से पूजन करना हो तो नृत्य गणेश की प्रतिमा या तस्वीर का पूजन लाभकारी है.
घर में बैठे हुए और बाएं हाथ के गणेश जी विराजित करना चाहिए. दाएं हाथ की ओर घुमी हुई सूंड वाले गणेशजी हठी होते हैं और उनकी साधना-आराधना कठीन होती है. वे देर से भक्तों पर प्रसन्न होते हैं.
कार्यस्थल पर गणेश जी की मूर्ति विराजित कर रहे हों तो खड़े हुए गणेश जी की मूर्ति लगाएं. इससे कार्यस्थल पर स्फूर्ति और काम करने की उमंग हमेशा बनी रहती है.
कार्य स्थल पर किसी भी भाग में वक्रतुण्ड की प्रतिमा या चित्र लगाए जा सकते हैं, लेकिन यह ध्यान जरूर रखना चाहिए कि किसी भी स्थिति में इनका मुंह दक्षिण दिशा या नैऋय कोण में नहीं होना चाहिए.
मंगल मूर्ति को मोदक और उनका वाहन मूषक अतिप्रिय है. इसलिए मूर्ति स्थापित करने से पहले ध्यान रखें कि मूर्ति या चित्र में मोदक या लड्डू और चूहा जरूर होना चाहिए.
गणेश जी की मूर्ति स्थापना भवन या वर्किंग प्लेस के ब्रह्म स्थान यानी केंद्र में करें. ईशान कोण और पूर्व दिशा में भी सुखकर्ता की मूर्ति या चित्र लगाना शुभ रहता है.
यदि घर के मुख्य द्वार पर एकदंत की प्रतिमा या चित्र लगाया गया हो तो उसके दूसरी तरफ ठीक उसी जगह पर दोनों गणेशजी की पीठ मिली रहे इस प्रकार से दूसरी प्रतिमा या चित्र लगाने से वास्तु दोषों का शमन होता है.
यदि भवन में द्वारवेध हो यानी दरवाजे से जुड़ा किसी भी तरह का वास्तुदोष हो (भवन के द्वार के सामने वृक्ष, मंदिर, स्तंभ आदि के होने पर द्वार वेध माना जाता है). ऐसे में घर के मुख्य द्वार पर गणेश जी की बैठी हुई प्रतिमा लगानी चाहिए लेकिन उसका आकार 11 अंगुल से अधिक नहीं होना चाहिए.
भवन के जिस भाग में वास्तु दोष हो उस स्थान पर घी मिश्रित सिन्दूर से स्वस्तिक दीवार पर बनाने से वास्तु दोष का प्रभाव कम होता है.
स्वस्तिक को गणेश जी का रूप माना जाता है. वास्तु शास्त्र भी दोष निवारण के लिए स्वस्तिक को उपयोगी मानता है. स्वस्तिक वास्तु दोष दूर करने का महामंत्र है. यह ग्रह शान्ति में लाभदायक है. इसलिए घर में किसी भी तरह का वास्तुदोष होने पर अष्टधातु से बना पिरामिड यंत्र पूर्व की तरफ वाली दीवार पर लगाना चाहिए.
रविवार को पुष्य नक्षत्र पड़े, तब श्वेतार्क या सफेद मंदार की जड़ के गणेश की स्थापना करनी चाहिए. इसे सर्वार्थ सिद्धिकारक कहा गया है. इससे पूर्व ही गणेश को अपने यहां रिद्धि-सिद्धि सहित पदार्पण के लिए निमंत्रण दे आना चाहिए और दूसरे दिन, रवि-पुष्य योग में लाकर घर के ईशान कोण में स्थापना करनी चाहिए.
श्वेतार्क गणेश की प्रतिमा का मुख नैऋत्य में हो तो इष्ट लाभ देती है. वायव्य मुखी होने पर संपदा का क्षरण, ईशान मुखी हो तो ध्यान भंग और आग्नेय मुखी होने पर आहार का संकट खड़ा कर सकती है.
शत्रु बाधा ,विवाद विजय ,वाशिकरण आदि में नीम की जड़ से बने गणेश का भी प्रयोग होता है किन्तु यह पूजन तांत्रिक होती है और इसमें विशेष सावधानी की आवश्यकता होती है.
पूजा के लिए गणेश जी की एक ही प्रतिमा हो. गणेश प्रतिमा के पास अन्य कोई गणेश प्रतिमा नहीं रखें. एक साथ दो गणेश जी रखने पर रिद्धि और सिद्धि नाराज हो जाती हैं.
गणेश को रोजाना दूर्वा दल अर्पित करने से इष्टलाभ की प्राप्ति होती है. दूर्वा चढ़ाकर समृद्धि की कामना से ऊं गं गणपतये नम: का पाठ लाभकारी माना जाता है. वैसे भी गणपति विघ्ननाशक तो माने ही गए हैं.
गणपति की पूजा में यह ध्यान देना चाहिए की इनकी पूजा सुबह ही करें ,दोपहर अथवा रात्री में दैनिक पूजन से बचें ,अनुष्ठान और एक दिवसीय मंगल पूजन में शुभ मुहूर्त अनुसार कभी भी पूजन किया जा सकता है.
गणेश गौरी की जब भी एक साथ पूजा करें तो ध्यान रखें की गौरी के बाएं तरफ गणेश हों अर्थात गणपति की दाहिनी ओर उनकी माँ गौरी हों.
दैनिक पूजन और मंगल की कामना एक अलग बात है किन्तु जब भी उद्देश्य विशेष के लिए मंत्र जप करें तो किसी योग्य गुरु द्वारा मंत्र लेकर ही जप करें ,सीधे किताबों से मंत्र लेकर जप न करें.
पूजन में पुष्प आदि चढ़ाए जाने वाले पदार्थो वनस्पतियों का भी बहुत महत्त्व होता है अतः उनके रंग ,गुण ,शुद्धता का भी उद्देश्य विशेष के अनुसार पूरा ध्यान दें.
Astro nirmal
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-पितृ पूजा या पितर कर्म क्यों करना चाहिए?
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