दिल्ली. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र द्वारा बनाए और विकसित किए एक आईएडी का थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन से रोहिणी साउंडिंग रॉकेट से सफलतापूर्वक प्रायोगिक प्रक्षेपण किया गया. इन्फ्लेटेबल एरोडायनामिक डिसेलेरेटर की एक ऐसी नई टेक्नोलॉजी है, जो मंगल और शुक्र ग्रह सहित भविष्य के अनेक मिशनों में उपयोगी साबित हो सकती है.
इसरो के अनुसार आईएडी को शुरू में मोड़ा गया और रॉकेट के पेलोड बे के अंदर रखा गया. उसने बताया कि लगभग 84 किलोमीटर की ऊंचाई पर आईएडी को फुलाया गया था और यह रॉकेट के पेलोड हिस्से के साथ वायुमंडल में नीचे उतरा. उसने बताया कि इसे फुलाने का सिस्टम इसरो के लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम सेंटर ने विकसित की है. आईएडी ने वायुगतिकीय कर्षण के माध्यम से पेलोड के वेग को व्यवस्थित रूप से कम कर दिया और यह अपने अनुमानित मार्ग पर चला.
वहीं डीआरडीओ ने कहा कि आईएडी में रॉकेट के खचज़् चरणों की वसूली समेत अंतरिक्ष क्षेत्र में कई प्रकार से इस्तेमाल किए जाने की अपार संभावना है. इसे मंगल या शुक्र पर पेलोड उतारने और मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन के लिए अंतरिक्ष पर ठिकाना बनाने के क्षेत्र में इस्तेमाल किए जाने की काफी संभावनाएं हैं.
गौरतलब है कि रोहिणी साउंडिंग राकेटों का इस्तेमाल इसरो द्वारा डेवलप की जा रहीं नई टेक्नोलॉजी में किया जाता है. यही नहीं, इसका इस्तेमाल विदेशों के साइंटिस्ट द्वारा उड़ान प्रदर्शन के लिए भी नियमित रूप से किया जाता है. डीआरडीओ ने कहा कि साउंडिंग राकेट ऊपरी एटमॉस्फेयर में एक्सपेरिमेंट्स के लिए एक अच्छा और रोमांचक प्लेटफॉर्म प्रदान करता है.
इसरो ने कहा कि माइक्रो वीडियो इमेजिंग सिस्टम जैसे आईएडी के नए एलिमेंट्स के साथ शनिवार को डेमोस्ट्रेशन का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया. माइक्रो वीडियो इमेजिंग सिस्टम ने आईएडी की उड़ान प्रक्रिया को कैप्चर किया. आईएडी एक मिनिएचर सॉफ्टवेयर जैसा रेडियो टेलीमेट्री ट्रांसमीटर है. डेमोस्ट्रेशन के दौरान एमईएमएस आधारित ध्वनिक सेंसर का भी परीक्षण किया गया. इसके अलावा कई नई पद्धतियों की भी उड़ान के दौरान टेस्टिंग की गई.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-इसरो ने पहले स्मॉल सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल मिशन को अंतरिक्ष में स्थापित कर रचा इतिहास
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