पुत्रदा एकादशी माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता

पुत्रदा एकादशी माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता

प्रेषित समय :21:12:37 PM / Sun, Jan 1st, 2023

पुत्रदा एकादशी -सोमवार, 2 - जनवरी  2023 को पौष शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा है. उसके सुनने मात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है.
कथा ::एक बार की बात है, श्री युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! पौष शुक्ल एकादशी का क्या नाम है? व्रत करने की विधि तथा इसका माहात्म्य कृपा करके कहिए. मधुसूदन कहने लगे कि इस एकादशी का नाम पुत्रदा है. अब आप शांतिपूर्वक इसकी कथा सुनिए. इसके सुनने मात्र से ही वायपेयी यज्ञ का फल मिलता है.

द्वापर युग के आरंभ में महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था, लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था. उसका मानना था कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं. पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई.
वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा- हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है. न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है. किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ‍ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा. मैं अपराधियों को पुत्र तथा बाँधवों की तरह दंड देता रहा. कभी किसी से घृणा नहीं की. सबको समान माना है. सज्जनों की सदा पूजा करता हूँ. इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पु‍त्र नहीं है. सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूँ, इसका क्या कारण है?

राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मं‍त्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए. वहाँ बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए. राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे. एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था.

सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया. उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूँगा. मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो.

लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले- हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं. अत: आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए. महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है. फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दु:खी है.
उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं. अत: उसके दु:ख से हम भी दु:खी हैं. आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं. अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएँ.

यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था. निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए. यह एक गाँव से दूसरे गाँव व्यापार करने जाया करता था. एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि वह दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया. उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी.

राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दु:ख सहना पड़ा. एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दु:ख सहना पड़ रहा है. ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है. अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए.

उद्देश्य ::लोमश मुनि कहने लगे कि पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी को जिसे पुत्रदा एकादशी भी कहते हैं, तुम सब लोग व्रत करो और रात्रि को जागरण करो तो इससे राजा का यह पूर्व जन्म का पाप अवश्य नष्ट हो जाएगा, साथ ही राजा को पुत्र की अवश्य प्राप्ति होगी. लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर मंत्रियों सहित सारी प्रजा नगर को वापस लौट आई और जब पौष शुक्ल एकादशी आई तो ऋषि की आज्ञानुसार सबने पुत्रदा एकादशी का व्रत और जागरण किया.
इसके पश्चात द्वादशी के दिन इसके पुण्य का फल राजा को दिया गया. उस पुण्य के प्रभाव से रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसवकाल समाप्त होने पर उसके एक बड़ा तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ.

महिमा ::इसलिए हे राजन! इस पौष शुक्ल एकादशी का नाम पुत्रदा पड़ा. अत: संतान सुख की इच्छा हासिल करने वाले इस व्रत को अवश्य करें. इसके माहात्म्य को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है और इस लोक में संतान सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है.
पुत्रदा एकादशी श्रावण शुक्ल मेँ भी पडती है ||

भगवान् नारायण की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे.
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे.
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का.
स्वामी दुःख विनसे मन का.
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे.
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी.
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी.
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे.
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी.
स्वामी तुम अन्तर्यामी.
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे.
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता.
स्वामी तुम पालन-कर्ता.
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे.
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति.
स्वामी सबके प्राणपति.
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे.
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे.
स्वामी तुम ठाकुर मेरे.
अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे.
विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा.
स्वमी पाप हरो देवा.
श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे.
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे.
स्वामी जो कोई नर गावे.
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे.
तत्पश्चात निसंतान दमपत्ति नीचे दिए कवच का यथा सामर्थ्य पाठ करे संतान बाधा शांत होगी
वंश वृद्धिकरं दुर्गाकवचम् 
भगवन् देव देवेशकृपया त्वं जगत् प्रभो .
वंशाख्य कवचं ब्रूहि मह्यं शिष्याय तेऽनघ .
यस्य प्रभावाद्देवेश वंश वृद्धिर्हिजायते ॥ १॥
॥ सूर्य ऊवाच ॥
शृणु पुत्र प्रवक्ष्यामि वंशाख्यं कवचं शुभम् .
सन्तानवृद्धिर्यत्पठनाद्गर्भरक्षा सदा नृणाम् ॥ २॥
वन्ध्यापि लभते पुत्रं काक वन्ध्या सुतैर्युता .
मृत वत्सा सुपुत्रस्यात्स्रवद्गर्भ स्थिरप्रजा ॥ ३॥
अपुष्पा पुष्पिणी यस्य धारणाश्च सुखप्रसूः .
कन्या प्रजा पुत्रिणी स्यादेतत् स्तोत्र प्रभावतः ॥ ४॥
भूतप्रेतादिजा बाधा या बाधा कुलदोषजा .
ग्रह बाधा देव बाधा बाधा शत्रु कृता च या ॥ ५॥
भस्मी भवन्ति सर्वास्ताः कवचस्य प्रभावतः .
सर्वे रोगा विनश्यन्ति सर्वे बालग्रहाश्च ये ॥ ६॥
॥ अथ दुर्गा कवचम् ॥
ॐ पुर्वं रक्षतु वाराही चाग्नेय्यां अम्बिका स्वयम् .
दक्षिणे चण्डिका रक्षेन्नैऋत्यां शववाहिनी ॥ १॥
वाराही पश्चिमे रक्षेद्वायव्याम् च महेश्वरी .
उत्तरे वैष्णवीं रक्षेत् ईशाने सिंह वाहिनी ॥ २॥
ऊर्ध्वां तु शारदा रक्षेदधो रक्षतु पार्वती .
शाकंभरी शिरो रक्षेन्मुखं रक्षतु भैरवी ॥ ३॥
कन्ठं रक्षतु चामुण्डा हृदयं रक्षतात् शिवा .
ईशानी च भुजौ रक्षेत् कुक्षिं नाभिं च कालिका ॥ ४ ॥
अपर्णा ह्युदरं रक्षेत्कटिं बस्तिं शिवप्रिया .
ऊरू रक्षतु कौमारी जया जानुद्वयं तथा ॥ ५॥
गुल्फौ पादौ सदा रक्षेद्ब्रह्माणी परमेश्वरी .
सर्वाङ्गानि सदा रक्षेद्दुर्गा दुर्गार्तिनाशनी ॥ ६॥
नमो देव्यै महादेव्यै दुर्गायै सततं नमः .
पुत्रसौख्यं देहि देहि गर्भरक्षां कुरुष्व नः ॥ ७॥
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं श्रीं ऐं ऐं ऐं
महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती रुपायै
नवकोटिमूर्त्यै दुर्गायै नमः ॥ ८॥
ह्रीं ह्रीं ह्रीं दुर्गार्तिनाशिनी संतानसौख्यम् देहि देहि
बन्ध्यत्वं मृतवत्सत्वं च हर हर गर्भरक्षां कुरु कुरु
सकलां बाधां कुलजां बाह्यजां कृतामकृतां च नाशय
नाशय सर्वगात्राणि रक्ष रक्ष गर्भं पोषय पोषय
सर्वोपद्रवं शोषय शोषय स्वाहा ॥ ९॥
॥ फल श्रुतिः ॥
अनेन कवचेनाङ्गं सप्तवाराभिमन्त्रितम् .
ऋतुस्नात जलं पीत्वा भवेत् गर्भवती ध्रुवम् ॥ १॥
गर्भ पात भये पीत्वा दृढगर्भा प्रजायते .
अनेन कवचेनाथ मार्जिताया निशागमे ॥ २॥
सर्वबाधाविनिर्मुक्ता गर्भिणी स्यान्न संशयः .
अनेन कवचेनेह ग्रन्थितं रक्तदोरकम् ॥ ३॥
कटि देशे धारयन्ती सुपुत्रसुख भागिनी .
असूत पुत्रमिन्द्राणां जयन्तं यत्प्रभावतः ॥ ४॥
गुरूपदिष्टं वंशाख्यम् कवचं तदिदं सुखे .
गुह्याद्गुह्यतरं चेदं न प्रकाश्यं हि सर्वतः ॥ ५॥
धारणात् पठनादस्य वंशच्छेदो न जायते .
बाला विनश्यंति पतन्ति गर्भास्तत्राबलाः कष्टयुताश्च वन्ध्याः ॥ ६ ॥
बाल ग्रहैर्भूतगणैश्च रोगैर्न यत्र धर्माचरणं गृहे स्यात् ॥
इति श्री ज्ञान भास्करे वंश वृद्धिकरं वंश कवचं
सम्पूर्णम् ॥

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

एकादशी व्रत के पुण्य के समान और कोई पुण्य नहीं

बुध प्रदोष व्रत करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाते

हल्दी के गणपति महत्त्व एवं पूजा विधि

तुरंत सफलता के लिए माँ विंध्यवासिनी की पूजा करना चाहिए

Leave a Reply