जन्म कुंडली के बारह भावों मे जन्म के समय शनि अपनी गति और जातक को दिये जाने वाले फ़लों के प्रति भावानुसार जातक के जीवन के अन्दर क्या उतार और चढाव मिलेंगे, सबका वृतांत कह देता है.
प्रथम भाव मे शनि
शनि मन्द है और शनि ही ठंडक देने वाला है,सूर्य नाम उजाला तो शनि नाम अन्धेरा, पहले भाव मे अपना स्थान बनाने का कारण है कि शनि अपने गोचर की गति और अपनी दशा मे शोक पैदा करेगा,जीव के अन्दर शोक का दुखमिलते ही वह आगे पीछे सब कुछ भूल कर केवल अन्धेरे मे ही खोया रहता है.शनि जादू टोने का कारक तब बन जाता है, जब शनि पहले भाव मे अपनी गति देता है, पहला भाव हीऔकात होती है, अन्धेरे मे जब औकात छुपने लगे, रोशनी से ही पहिचान होती है और जब औकात छुपी हुई हो तो शनि का स्याह अन्धेरा ही माना जा सकता है. अन्धेरे के कई रूप होते हैं, एक अन्धेरा वह होता है जिसके कारण कुछ भी दिखाई नही देता है, यह आंखों का अन्धेरा माना जाता है, एक अन्धेरा समझने का भी होता है, सामने कुछ होता है, और समझा कुछ जाता है, एक अन्धेरा बुराइयों का होता है, व्यक्ति या जीव की सभी अच्छाइयां बुराइयों के अन्दर छुपने का कारण भी शनि का दिया गया अन्धेरा ही माना जाता है, नाम का अन्धेरा भे होता है, किसी को पता ही नही होता है, कि कौन है और कहां से आया है, कौन माँ है और कौन बापहै, आदि के द्वारा किसी भी रूप मे छुपाव भी शनि के कारण ही माना जाता है, व्यक्ति चालाकी का पुतला बन जाता है प्रथम भाव के शनि के द्वारा.शनि अपने स्थान से प्रथम भाव के अन्दर स्थिति रख कर तीसरे भाव को देखता है, तीसरा भाव अपने से छोटे भाई बहिनो का भी होता है, अपनी अन्दरूनी ताकत का भी होता है, पराक्रम का भी होता है, जो कुछ भी हम दूसरों से कहते है, किसी भी साधन से, किसी भी तरह से शनि के कारण अपनी बात को संप्रेषित करने मे कठिनाई आती है, जो कहा जाता है वह सामने वाले को या तो समझ मे नही आता है, और आता भी है तो एक भयानक अन्धेरा होने के कारण वह कही गयी बात को न समझने के कारण कुछ का कुछ समझ लेता है, परिणाम के अन्दर फ़ल भी जो चाहिये वह नही मिलता है, अक्सर देखा जाता है कि जिसके प्रथम भाव मे शनि होता है, उसका जीवन साथी जोर जोर से बोलना चालू कर देता है, उसका कारण उसके द्वारा जोर जोर से बोलने की आदत नही, प्रथम भाव का शनिसुनने के अन्दर कमी कर देता है, और सामने वाले को जोर से बोलने पर ही या तो सुनायी देता है, या वह कुछ का कुछ समझ लेता है, इसी लिये जीवन साथी के साथ कुछ सुनने और कुछ समझने के कारण मानसिक ना समझी का परिणाम सम्बन्धों मे कडुवाहट घुल जाती है, और सम्बन्ध टूट जाते हैं. इसकी प्रथम भाव से दसवी नजर सीधी कर्म भाव पर पडती है, यही कर्म भाव ही पिता का भाव भी होता है.जातक को कर्म करने और कर्म को समझने मे काफ़ी कठिनाई का सामना करना पडता है, जब किसी प्रकार सेकर्म को नही समझा जाता है तो जो भी किया जाता है वहकर्म न होकर एक भार स्वरूप ही समझा जाता है, यही बातपिता के प्रति मान ली जाती है,पिता के प्रति शनि अपनी सिफ़्त के अनुसार अंधेरा देता है, और उस अन्धेरे के कारणपिता ने पुत्र के प्रति क्या किया है, समझ नही होने के कारणपिता पुत्र में अनबन भी बनी रहती है,पुत्र का लगन या प्रथम भाव का शनि माता के चौथे भाव मे चला जाता है, और माता को जो काम नही करने चाहिये वे उसको करने पडते हैं, कठिन और एक सीमा मे रहकर माता के द्वारा काम करने के कारण उसका जीवन एक घेरे में बंधा सा रह जाता है, और वह अपनी शरीरी सिफ़्त को उस प्रकार से प्रयोग नही कर पाती है जिस प्रकार से एक साधारण आदमी अपनी जिन्दगीको जीना चाहता है.
दूसरे भाव में शनि
दूसरा भाव भौतिक धन का भाव है,भौतिक धन से मतलब है, रुपया, पैसा, सोना, चाँदी, हीरा, मोती, जेवरात आदि, जब शनि देव दूसरे भाव मे होते है तो अपने ही परिवार वालो के प्रति अन्धेरा भी रखते है, अपने ही परिवार वालों से लडाई झगडा आदि करवा कर अपने को अपने ही परिवार से दूर कर देते हैं,धन के मामले मै पता नही चलता है कितना आया और कितना खर्च किया, कितना कहां से आया,दूसरा भाव ही बोलने का भाव है, जो भी बात की जाती है, उसका अन्दाज नही होता है कि क्या कहा गया है, गाली भी हो सकती है और ठंडी बात भी, ठंडी बात से मतलब है नकारात्मक बात, किसी भी बात को करने के लिये कहा जाय, उत्तर में न ही निकले.दूसरा शनि चौथे भाव को भी देखता है, चौथा भाव माता, मकान, और वाहन का भी होता है, अपने सुखों के प्रति भी चौथे भाव से पता किया जाता है, दूसरा शनि होने परयात्रा वाले कार्य और घर मे सोने के अलावा और कुछ नही दिखाई देता है. दूसरा शनि सीधे रूप मे आठवें भाव को देखता है, आठवा भाव शमशानी ताकतों की तरफ़ रुझान बढा देता है, व्यक्ति भूत,प्रेत,जिन्न और पिशाची शक्तियों को अपनाने में अपना मन लगा देता है, शमशानी साधना के कारण उसका खान पान भी शमशानी हो जाता है,शराब,कबाब और भूत के भोजन में उसकी रुचि बढ जाती है. दूसरा शनि ग्यारहवें भाव को भी देखता है, ग्यारहवां भावअचल सम्पत्ति के प्रति अपनी आस्था को अन्धेरे मे रखता है, मित्रों और बडे भाई बहिनो के प्रति दिमाग में अन्धेरा रखता है. वे कुछ करना चाहते हैं लेकिन व्यक्ति के दिमाग में कुछ और ही समझ मे आता है.
तीसरे भाव में शनि
तीसरा भाव पराक्रम का है, व्यक्ति के साहस और हिम्मत का है, जहां भी व्यक्ति रहता है, उसके पडौसियों का है. इन सबके कारणों के अन्दर तीसरे भाव से शनि पंचम भाव को भी देखता है, जिनमे शिक्षा,संतान और तुरत आने वाले धनो को भी जाना जाता है, मित्रों की सहभागिता और भाभी का भाव भी पांचवा भाव माना जाता है, पिता की मृत्यु का औरदादा के बडे भाई का भाव भी पांचवा है. इसके अलावा नवें भाव को भी तीसरा शनि आहत करता है, जिसमे धर्म, सामाजिक व्यव्हारिकता, पुराने रीति रिवाज और पारिवारिक चलन आदि का ज्ञान भी मिलता है, को तीसरा शनि आहतकरता है. मकान और आराम करने वाले स्थानो के प्रति यह शनि अपनी अन्धेरे वाली नीति को प्रतिपादित करता है.ननिहाल खानदान को यह शनि प्रताडित करता है.
चौथे भाव मे शनि
चौथे भाव का मुख्य प्रभाव व्यक्ति के लिये काफ़ी कष्ट देने वाला होता है, माता, मन, मकान, और पानी वाले साधन, तथा शरीर का पानी इस शनि के प्रभाव से गंदला जाता है, आजीवन कष्टदेने वाला होने से पुराणो मे इस शनि वाले व्यक्ति का जीवन नर्क मय ही बताया जाता है. अगर यह शनि तुला,मकर,कुम्भ या मीन का होता है, तो इस के फ़ल में कष्टों मे कुछ कमी आ जाती है.
पंचम भाव का शनि
इस भाव मे शनि के होने के कारण व्यक्ति को मन्त्र वेत्ता बना देता है, वह कितने ही गूढ मन्त्रों के द्वारा लोगो का भला करने वाला तो बन जाता है, लेकिन अपने लिये जीवन साथी के प्रति,जायदाद के प्रति, और नगद धन के साथ जमा पूंजी के लिये दुख ही उठाया करता है.संतान मे शनि की सिफ़्त स्त्री होने और ठंडी होने के कारण से संतति मे विलंब होता है,कन्या संतान की अधिकता होती है, जीवन साथी के साथ मन मुटाव होने से वह अधिक तर अपने जीवन के प्रति उदासीन ही रहता है.
षष्ठ भाव में शनि
इस भाव मे शनि कितने ही दैहिक दैविक और भौतिक रोगों का दाता बन जाता है, लेकिन इस भाव का शनि पारिवारिक शत्रुता को समाप्त कर देता है,मामा खानदान को समाप्त करने वाला होता है,चाचा खान्दान से कभी बनती नही है. व्यक्ति अगर किसी प्रकार से नौकरी वाले कामों को करता रहता है तो सफ़ल होता रहता है, अगर किसी प्रकार से वह मालिकी वाले कामो को करता है तो वह असफ़ल हो जाता है. अपनी तीसरी नजर से आठवें भाव को देखने के कारण से व्यक्ति दूर द्रिष्टि से किसी भी काम या समस्या को नही समझ पाता है, कार्यों से किसी न किसी प्रकार से अपने प्रतिजोखिम को नही समझ पाने से जो भी कमाता है, या जो भी किया जाता है, उसके प्रति अन्धेरा ही रहता है, और अक्स्मात समस्या आने से परेशान होकर जो भी पास मे होता है गंवा देता है. बारहवे भाव मे अन्धेरा होने के कारण से बाहरी आफ़तों के प्रति भी अन्जान रहता है, जो भी कारण बाहरी बनते हैं उनके द्वारा या तो ठगा जाता है या बाहरी लोगों की शनि वाली चालाकियों के कारण अपने को आहत ही पाता है. खुद के छोटे भाई बहिन क्या कर रहे हैं और उनकी कार्य प्रणाली खुद के प्रति क्या है उसके प्रति अन्जान रहता है. अक्सर इस भाव का शनि कही आने जाने पर रास्तों मे भटकाव भी देता है, और अक्सर ऐसे लोग जानी हुई जगह पर भी भूल जाते है.
सप्तम भाव मे शनि
सातवां भाव पत्नी और मन्त्रणा करने वाले लोगो से अपना सम्बन्ध रखता है.जीवन साथी के प्रति अन्धेरा और दिमाग मे नकारात्मक विचारो के लगातार बने रहने से व्यक्ति अपने को हमेशा हर बात में छुद्र ही समझता रहता है,जीवन साथी थोडे से समय के बाद ही नकारा समझ कर अपना पल्ला जातक से झाड कर दूर होने लगता है, अगर जातक किसी प्रकार से अपने प्रति सकारात्मक विचार नही बना पाये तो अधिकतर मामलो मे गृहस्थियों को बरबाद ही होता देखा गया है, और दो शादियों के परिणाम सप्तम शनि के कारण ही मिलते देखे गये हैं,सप्तम शनि पुरानी रिवाजों के प्रति और अपने पूर्वजों के प्रति उदासीन ही रहता है, उसे केवल अपने ही प्रति सोचते रहने के कारण और मै कुछ नही कर सकता हूँ, यह विचार बना रहने के कारण वह अपनी पुरानी मर्यादाओं को अक्सर भूल ही जाता है, पिता और पुत्र मे कार्य और अकार्य की स्थिति बनी रहने के कारण अनबन ही बनी रहती है. व्यक्ति अपने रहने वाले स्थान पर अपने कारण बनाकर अशांति उत्पन्न करता रहता है, अपनी माता या माता जैसी महिला के मन मे विरोध भी पैदा करता रहता है, उसे लगता है कि जो भे उसके प्रति किया जा रहा है, वह गलत ही किया जा रहा है और इसी कारण से वह अपने ही लोगों से विरोध पैदा करने मे नही हिचकता है. शरीर के पानी पर इस शनि का प्रभाव पडने से दिमागी विचार गंदे हो जाते हैं, व्यक्ति अपने शरीर में पेट और जनन अंगो मे सूजन और महिला जातकों की बच्चादानी आदि की बीमारियां इसी शनि के कारण से मिलती है.
अष्टम भाव में शनि
इस भाव का शनि खाने पीने और मौज मस्ती करने के चक्कर में जेब हमेशा खाली रखता है. किस काम को कब करना है इसका अन्दाज नही होने के कारण से व्यक्ति के अन्दर आवारागीरी का उदय होता देखा गया है.
नवम भाव का शनि
नवां भाव भाग्य का माना गया है, इस भाव में शनि होने के कारण से कठिन और दुख दायी यात्रायें करने को मिलती हैं, लगातार घूम कर सेल्स आदि के कामो मे काफ़ी परेशानी करनी पडती है, अगर यह भाव सही होता है, तो व्यक्ति मजाकिया होता है, और हर बात को चुटकुलों के द्वारा कहा करता है, मगर जब इस भाव मे शनि होता है तो व्यक्ति सीरियस हो जाता है, और एकान्त में अपने को रखने अपनी भलाई सोचता है, नवें भाव बाले शनि के के कारण व्यक्ति अपनी पहचान एकान्त वासा झगडा न झासा वाली कहावत से पूर्ण रखता है. खेती वाले कामो, घर बनाने वाले कामोंजायदाद से जुडे कामों की तरफ़ अपना मन लगाता है. अगर कोई अच्छा ग्रह इस शनि पर अपनी नजर रखता है तो व्यक्तिजज वाले कामो की तरफ़ और कोर्ट कचहरी वाले कामों की तरफ़ अपना रुझान रखता है. जानवरों की डाक्टरी और जानवरों को सिखाने वाले काम भी करता है, अधिकतर नवें शनि वाले लोगों को जानवर पालना बहुत अच्छा लगता है. किताबों को छापकर बेचने वाले भी नवें शनि से कही न कही जुडे होते हैं.
दशम भाव का शनि
दसवां शनि कठिन कामो की तरफ़ मन ले जाता है, जो भी मेहनत वाले काम,लकडी,पत्थर, लोहे आदि के होते हैं वे सब दसवे शनि के क्षेत्र मे आते हैं, व्यक्ति अपने जीवन मे काम के प्रति एक क्षेत्र बना लेता है और उस क्षेत्र से निकलना नही चाहता है.राहु का असर होने से या किसी भी प्रकार से मंगल का प्रभाव बन जाने से इस प्रकार का व्यक्ति यातायात का सिपाही बन जाता है, उसे जिन्दगी के कितने ही काम और कितने ही लोगों को बारी बारी से पास करना पडता है, दसवें शनि वाले की नजर बहुत ही तेज होती है वह किसी भी रखी चीज को नही भूलता है, मेहनत की कमाकर खाना जानता है, अपने रहने के लिये जब भी मकान आदि बनाता है तो केवल स्ट्रक्चर ही बनाकर खडा कर पाता है, उसके रहने के लिये कभी भी बढिया आलीशान मकान नही बन पाता है.गुरु सही तरीके से काम कर रहा हो तो व्यक्ति एक्ज्यूटिव इन्जीनियर की पोस्ट पर काम करने वाला बनजाता है.
ग्यारहवे भाव मे शनि
शनि दवाइयों का कारक भी है, और इस घर मे जातक को साइंटिस्ट भी बना देता है, अगर जरा सी भी बुध साथ देता हो तो व्यक्ति गणित के फ़ार्मूले और नई खोज करने मे माहिर हो जाता है. चैरिटी वाले काम करने मे मन लगता है, मकान के स्ट्रक्चर खडा करने और वापस बिगाड कर बनाने मे माहिर होता है, व्यक्ति के पास जीवन मे दो मकान तो होते ही है. दोस्तों से हमेशा चालकियां ही मिलती है, बडा भाई या बहिन के प्रति व्यक्ति का रुझान कम ही होता है. कारण वह न तोकुछ शो करता है और न ही किसी प्रकार की मदद करने मे अपनी योग्यता दिखाता है, अधिकतर लोगो के इस प्रकार के भाई या बहिन अपने को जातक से दूर ही रखने में अपनी भलाई समझते हैं.
बारहवे भाव मे शनि
नवां घर भाग्य या धर्म का होता है तो बारहवा घर धर्म का घर होता है, व्यक्ति को बारहवां शनि पैदा करने के बाद अपने जन्मस्थान से दूर ही कर देता है, वह दूरी शनि के अंशों पर निर्भर करती है, व्यक्ति के दिमाग मे काफ़ी वजन हर समय महसूस होता है वह अपने को संसार के लिये वजन मानकर ही चलता है, उसकी रुझान हमेशा के लिये धन के प्रति होती है और जातक धन के लिये हमेशा ही भटकता रहता है, कर्जा दुश्मनी बीमारियों से उसे नफ़रत तो होती है मगर उसके जीवन साथी के द्वारा इस प्रकार के कार्य कर दिये जाते हैं जिनसे जातक को इन सब बातों के अन्दर जाना ही पडता है.
Astro nirmal
जन्म कुंडली में इन भावों में बैठे हों बुध तो आप बनेंगे बुद्धिमान और मिलेगी सफलता
वैदिक ज्योतिष में षोडश वर्ग कुंडली महत्त्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुंडली में मंगल कमजोर हो तो ऋण लेने की स्थिति बनती है!
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