पवन तनय संकट हरण मंगलमूर्ति रूप .
राम लखन सीता सहित रदय बसों सूर भूप ।।
भगवान शिव के पूजन के लिए उचित समय प्रदोष काल में होता है. ऐसा माना जाता है कि शिव की अराधना दिन और रात्रि के मिलने के दौरान करना ही शुभ होता है. शास्त्रों के अनुसार देवी लक्ष्मी, इंद्राणी, सरस्वती, गायत्री, सावित्री, सीता, पार्वती ने भी शिवरात्रि का व्रत करके भगवान शिव का पूजन किया था. भगवान शिव ने अपने भक्तों की पूजा और तपस्या से खुश होकर रक्षा करने के लिए कई अवतार लिए हैं. हिंदू धर्म ग्रंथ पुराणों के अनुसार भगवान शिव ही समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं. उन्हीं से ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त सृष्टि का उद्भव होता हैं.शिव के 28 अवतार हैं. इन्हीं में से शिव का 11वां रूद्र अवतार हनुमान का था.
सुमैरू पर्वत के स्वामी राजा केसरी अपनी पत्नी अंजना के साथ पूत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रहे थे. शिव उनके तप से प्रसन्न हुए और उन्हें मनचाहा वरदान मांगने के लिए कहा. माता अंजना ने शिव से ऐसा पुत्र मांगा जो बल में रूद्र की तरह बलि हो, गति में वायु की तरह गतिमान हो और बुद्धि में गणेपति की तरह तेजस्वी हो. तब महादेव ने पवन देव के रूप में अपनी रौद्र शक्ति का अंश यज्ञ कुंड में अर्पित किया था और वही शक्ति अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट हुई थी. फिर चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमानजी का जन्म हुआ था.
ज्यादातर समस्याओं का मूल कारण कर्मदोष , देवदोष , तंत्रबाधा , पितृबाधा , भूमिदोष जैसे सभी कारणों का ये इलाज है . समस्याओ का निराकरण तो अवश्य होगा साथ साथ महावीर हनुमानजी के दर्शन भी अवश्य होंगे , पर एक शर्त सिर्फ और सिर्फ " एकोदेव हनुमंत " का भाव होगा तब ही सफल हो सकते है . ज्यादातर लोग अनेक गुरुओं के मार्गदर्शन , अनेक देव पूजन , विविध मंत्र स्तोत्र करने लगते है और फल स्वरूप किसी भी एक देव पर पूर्ण श्रद्धा नही बनती ओर बिना श्रद्धा कभी फल संभव नही है .
श्री हनुमानजी का विराट स्वरूप पांच मुख पांच दिशाओं में हैं. हर रूप एक मुख वाला, त्रिनेत्रधारी यानि तीन आंखों और दो भुजाओं वाला है. यह पांच मुख नरसिंह, गरुड, अश्व, वानर और वराह रूप है. हनुमान के पांच मुख क्रमश:पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित माने गएं हैं. पौराणिक मान्यता के मुताबिक पंचमुखी हनुमान का अवतार भक्तों का कल्याण करने के लिए हुआ हैं. हनुमान के पांच मुख क्रमश: पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और ऊर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित हैं. पंचमुखी हनुमानजी का अवतार मार्गशीर्ष कृष्णाष्टमी को माना जाता हैं. रुद्र के अवतार हनुमान ऊर्जा के प्रतीक माने जाते हैं. इसकी आराधना से बल, कीर्ति, आरोग्य और निर्भीकता बढती है.
पंचमुख हनुमान के पूर्व की ओर का मुख वानर का हैं जिसकी प्रभा करोडों सूर्यों के तेज समान हैं. पूर्व मुख वाले हनुमान का पूजन करने से समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है. पश्चिम दिशा वाला मुख गरुड का हैं जो भक्तिप्रद, संकट, विघ्न-बाधा निवारक माने जाते हैं. गरुड की तरह हनुमानजी भी अजर-अमर माने जाते हैं. हनुमानजी का उत्तर की ओर मुख शूकर का है और इनकी आराधना करने से अपार धन-सम्पत्ति,ऐश्वर्य, यश, दिर्धायु प्रदान करने वाल व उत्तम स्वास्थ्य देने में समर्थ हैं. हनुमानजी का दक्षिणमुखी स्वरूप भगवान नृसिंह का है जो भक्तों के भय, चिंता, परेशानी को दूर करता हैं.
अहिरावण जिसे रावण का मायावी भाई माना जाता था, जब रावण परास्त होने कि स्थिति में था, तब उसने अपने मायावी भाई का सहारा लिया और रामजी की सेना को निंद्रा में डाल दिया. इस पर जब हनुमान जी राम और लक्ष्मण को पाताल लोक लेने गए तो उनकी भेट उनके मकरपुत्र से हुई. मकर पुत्र को परास्त करने के बाद उन्हें पाताल लोक में 5 जले हुए दिए दिखे, जिसे बुझाने पर अहिरावण का नाश होना था.
इस स्थिति में हनुमान जी ने, उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की तरफ हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख. इस रूप को धरकर उन्होंने वे पांचों दीप बुझाए तथा अहिरावण का वध कर राम,लक्ष्मण को उस से मुक्त किया. इस प्रकार हनुमान जी को पंचमुखी कहलाया जाने लगा.
इनके पांच मुख क्रमशः पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण और उर्ध्व दिशा में प्रतिष्ठित हैं.
(1) पंचमुखी हनुमानजी का वानर मुख जो पूर्व की ओर है उसे पूजने से शत्रुओं का नाश होता हैं क्योंकि पूर्वमुख वाले हनुमानजी की आभा करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं.
(2) पश्चिम दिशा की ओर जो गरुड़ मुख है जिसे हनुमानजी के सदृश ही अजर-अमर होने का वरदान मिला है. इस मुख के पूजन से सर्व विघ्न बाधाएं कटती हैं, भक्ति, शक्ति का वरदान मिलता हैं.
(3) उत्तर दिशा की ओर शूकर मुख है जिसे आरोग्य, धन, ऐश्वर्य का दानी माना गया है. इसकी आराधना से भक्त दीर्घायु, यश, मान, संपत्ति से परिपूर्ण हो जाता हैं.
(4) दक्षिण मुखी स्वरूप नृसिंह का है जो भक्तों को चिंतारहित, भयरहित जीवनयापन करने का अभयदान देते हैं.
(5) ब्रह्माजी के कारण उत्पन्न हुए उर्ध्व मुख घोड़े के समान है जिसका भक्तों के समस्त दुःखों को दूर करने व उनका हर तरह से कल्याण करने के लिए अवतरण हुआ हैं.
पूजन विधि;-
हनुमानजी का पूजन करते समय सबसे पहले कंबल या ऊन के आसन पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं. इसके पश्चात हाथ में चावल व फूल लें व इस मंत्र से हनुमानजी का
ध्यान करें-
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यं.
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि।।
ऊँ हनुमते नम: ध्यानार्थे पुष्पाणि सर्मपयामि।।
इसके बाद हाथ में लिया हुआ चावल व फूल हनुमानजी को अर्पित कर दें.
आवाह्न;-
हाथ में फूल लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए श्री हनुमानजी का आवाह्न करें एवं उन फूलों को हनुमानजी को अर्पित कर दें.
उद्यत्कोट्यर्कसंकाशं जगत्प्रक्षोभकारकम्.
श्रीरामड्घ्रिध्याननिष्ठं सुग्रीवप्रमुखार्चितम्।।
विन्नासयन्तं नादेन राक्षसान् मारुतिं भजेत्।।
ऊँ हनुमते नम: आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि।।
आसन;-
नीचे लिखे मंत्र से हनुमानजी को आसन अर्पित करें (आसन के लिए कमल अथवा गुलाब का फूल अर्पित करें।) अथवा चावल या पत्ते आदि का भी उपयोग हो सकता है |
तप्तकांचनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम्.
अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम्।।
इसके बाद इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए हनुमानजी के सामने किसी बर्तन अथवा भूमि पर तीन बार जल छोड़ें.
ऊँ हनुमते नम:, पाद्यं समर्पयामि।।
अध्र्यं समर्पयामि.
आचमनीयं समर्पयामि।।
इसके बाद हनुमानजी को गंध, सिंदूर, कुंकुम, चावल, फूल व हार अर्पित करें.
अब इस मंत्र के साथ हनुमानजी को धूप-दीप दिखाएं-
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया.
दीपं गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम्।।
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने।।
त्राहि मां निरयाद् घोराद् दीपज्योतिर्नमोस्तु ते।।
ऊँ हनुमते नम:, दीपं दर्शयामि।।
इसके बाद केले के पत्ते पर या किसी कटोरी में पान के पत्ते के ऊपर प्रसाद रखें और हनुमानजी को अर्पित कर दें तत्पश्चात ऋतुफल अर्पित करें. (प्रसाद में चूरमा, भीगे हुए चने या गुड़ चढ़ाना उत्तम रहता है।)
इसके बाद एक थाली में कर्पूर एवं घी का दीपक जलाकर हनुमानजी की आरती करें. इस प्रकार पूजन करने से हनुमानजी अति प्रसन्न होते हैं तथा साधक की हर मनोकामना पूरी करते हैं.पूजा के बाद हनुमानजी के इस मंत्र ;-
'ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकायं हुं फट् '
इस मंत्र की 11 माला जाप करे . मंत्र जाप के बाद पंचमुखी हनुमानजी का कवच पाठ करे .
॥अथ श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचम् ॥
विनियोग ;-
श्रीगणेशाय नम:|
ॐ अस्य श्रीपञ्चमुखहनुमत्कवचमन्त्रस्य ब्रह्मा ऋषि:| गायत्री छंद:| पञ्चमुख-विराट् हनुमान् देवता| ह्रीम् बीजम्| श्रीम् शक्ति:| क्रौम् कीलकम्| क्रूम् कवचम्| क्रैम् अस्त्राय फट् | इति दिग्बन्ध:|
इस स्तोत्र के ऋषि ब्रह्मा हैं, छंद गायत्री है, देवता पंचमुख-विराट-हनुमानजी हैं, ह्रीम् बीज है, श्रीम् शक्ति है, क्रौम् कीलक है, क्रूम् कवच है और ‘क्रैम् अस्त्राय फट्’ यह दिग्बन्ध है|
पाठ ;-
॥श्री गरुड उवाच ॥
अथ ध्यानं प्रवक्ष्यामि शृणु सर्वांगसुंदर .
यत्कृतं देवदेवेन ध्यानं हनुमत: प्रियम् ॥१॥
पञ्चवक्त्रं महाभीमं त्रिपञ्चनयनैर्युतम् .
बाहुभिर्दशभिर्युक्तं सर्वकामार्थसिद्धिदम् ॥२॥
पूर्वं तु वानरं वक्त्रं कोटिसूर्यसमप्रभम् .
दंष्ट्राकरालवदनं भ्रुकुटिकुटिलेक्षणम्॥३॥
अस्यैव दक्षिणं वक्त्रं नारसिंहं महाद्भुतम् .
अत्युग्रतेजोवपुषं भीषणं भयनाशनम् ॥४॥
पश्चिमं गारुडं वक्त्रं वक्रतुण्डं महाबलम् .
सर्वनागप्रशमनं विषभूतादिकृन्तनम्॥५॥
उत्तरं सौकरं वक्त्रं कृष्णं दीप्तं नभोपमम् .
पातालसिंहवेतालज्वररोगादिकृन्तनम् ॥६ ॥
ऊर्ध्वं हयाननं घोरं दानवान्तकरं परम् .
येन वक्त्रेण विप्रेन्द्र तारकाख्यं महासुरम् ॥
जघान शरणं तत्स्यात्सर्वशत्रुहरं परम् .
ध्यात्वा पञ्चमुखं रुद्रं हनुमन्तं दयानिधिम् ॥८॥
खड़्गं त्रिशूलं खट्वाङ्गं पाशमङ्कुशपर्वतम् .
मुष्टिं कौमोदकीं वृक्षं धारयन्तं कमण्डलुम् ॥
भिन्दिपालं ज्ञानमुद्रां दशभिर्मुनिपुङ्गवम् .
एतान्यायुधजालानि धारयन्तं भजाम्यहम्॥१०॥
प्रेतासनोपविष्टं तं सर्वाभरणभूषितम् .
दिव्यमाल्याम्बरधरं दिव्यगन्धानुलेपनम्॥११॥
सर्वाश्चर्यमयं देवं हनुमद्विश्वतो मुखम् ॥
पञ्चास्यमच्युतमनेकविचित्रवर्णवक्त्रं
शशाङ्कशिखरं कपिराजवर्यम्|
पीताम्बरादिमुकुटैरुपशोभिताङ्गं
पिङ्गाक्षमाद्यमनिशं मनसा स्मरामि॥१२॥
मर्कटेशं महोत्साहं सर्वशत्रुहरं परम् .
शत्रुं संहर मां रक्ष श्रीमन्नापदमुद्धर॥
ॐ हरिमर्कट मर्कट मन्त्रमिदं परिलिख्यति लिख्यति वामतले|
यदि नश्यति नश्यति शत्रुकुलं यदि मुञ्चति मुञ्चति वामलता॥
ॐ हरिमर्कटाय स्वाहा .
अब हर एक वदन को ‘स्वाहा’ कहकर नमस्कार किया है|
1 ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पूर्वकपिमुखाय सकलशत्रुसंहारकाय स्वाहा.
2 ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय दक्षिणमुखाय करालवदनाय नरसिंहाय सकलभूतप्रमथनाय स्वाहा .
3 ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय पश्चिममुखाय गरुडाननाय सकलविषहराय स्वाहा .
4 ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय उत्तरमुखाय आदिवराहाय सकलसंपत्कराय स्वाहा .
5 ॐ नमो भगवते पञ्चवदनाय ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय सकलजनवशकराय स्वाहा ।।
ॐ श्रीपञ्चमुखहनुमन्ताय आञ्जनेयाय नमो नम:॥
आञ्जनेय श्री पञ्चमुख-हनुमानजी को पुन: पुन: नमस्कार|
पूजन स्तोत्र के बाद भगवान श्री राम की धुन अवश्य करे . हनुमान चालीसा ओर सीताराम गुणगान से हनुमान जी शीघ्र ही प्रसन्न होते है . पूजा के अन्तमे क्षमापर्ण
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"मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं l यत पूजितं मया देव, परिपूर्ण तदस्त्वैमेव l
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनं l पूजा चैव न जानामि, क्षमस्व परमेश्वरं
Koti Devi Devta
पूजन में ध्यान रखने योग्य सामान्य नियम और सावधानियां
पार्थिव श्रीगणेश पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती
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