दिल्ली. बिहार सरकार को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में जारी जातिगत सर्वेक्षण के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को पटना हाईकोर्ट जाने का दिया सुझाव दिया और कहा कि यह पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन नहीं बल्कि पब्लिसिटी इंटरेस्ट पिटिशन है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर सभी याचिकाओं को वापस लेने की मंजूरी दी.
जातिगत सर्वेक्षण के खिलाफ हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने 17 जनवरी को उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने बिहार में जातिगत सर्वेक्षण कराने के राज्य सरकार के फैसले को संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन बताया था. विष्णु गुप्ता ने अपनी याचिका में आरोप लगाया गया था कि बिहार में जातिगत सर्वेक्षण के लिए जारी राज्य सरकार की अधिसूचना भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक है. इसी तरह की कई अन्य याचिकाएं भी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई थीं, जिनमें बिहार सरकार के उपसचिव द्वारा राज्य में जातिगत सर्वेक्षण कराने के संबंध में जारी की गई अधिसूचना को रद्द करने और संबंधित अधिकारियों को कवायद से रोकने का आग्रह किया गया था.
गौरतलब है कि बिहार में जातीय जनगणना की जा रही है. सात जनवरी से जाति गिनने का काम किया जा रहा है. प्रथम चरण में मकानों का नंबरीकरण और घर के सदस्यों की संख्या गिनती की जा रही है. इसके बाद 6 जून को राज्य सरकार द्वारा जातीय जनगणना के लिए जारी नोटिफिकेशन को रद्द करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. जातीय जनगणना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में हिन्दू सेना ने याचिका लगाई थी और कहा था कि यह देश की अखंडता को तोडऩे वाला है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-BJP नेता शाहनवाज हुसैन को सुप्रीम कोर्ट से झटका, दुष्कर्म मामले में चुनौती देने वाली याचिका खारिज
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