तुलजाभवानी - भवानिअष्टक उपासना से तुरंत फलदायी होता

तुलजाभवानी - भवानिअष्टक उपासना से तुरंत फलदायी होता

प्रेषित समय :20:47:12 PM / Sat, Feb 4th, 2023

महाराष्ट्र के तुलजापुरमे माता तुलजा भवानी का अद्भुत चमत्कारी मंदिर स्थित है. महामाया ने कात्यायनी स्वरूप धारण करके महिषासुर का वध किया और भक्तोंकी भावना स्वीकार कर इस पर्वत पर चिर स्थान लिया. अष्टभुजावाली माता तुलजाभवानी को महिषासुरमर्दिनी नाम से भी जाना जाता है. माता की इस मूर्ति को एक जगह से दूसरी जगह पर भी ले जाया सकता है. इस मंदिर के मुख्य भवन के पूर्व में शयनकक्ष है जिसमे सोने के लिए चांदी से बनाया हुआ पलंग है.

साल में तीन बार माता इस शयनकक्ष में विश्राम करती है. इस तरह की परमपरा केवल इसी मंदिर है अन्य किसी भी जगह पर इस तरह की प्रथा नहीं. इस मन्दिर के गुबंद पर सुन्दर नक्काशी बनायीं गयी है.

माता की मूर्ति की स्थापना श्रीयंत्र पर आदि शंकराचार्यजी  ने की थी. देवी की इस मूर्ति की सबसे खास बात यह है की माता की मूर्ति केवल एक ही जगह पर स्थापित नहीं की गयी. इसका मतलब देवी की इस मूर्ति को दूसरी जगह पर भी रखा जा सकता है, देवी की मूर्ति किसी भी दिशा में रखी जा सकती है.

इसलिए इस मूर्ति को चल मूर्ति भी कहा जाता है. साल में तीन बार देवी की मूर्ति को मंदिर के बाहर निकाला जाता है क्यों की साल के तीन दिन काफी विशेष माने जाते है और इन अवसर पर देवी को परिक्रमा करने लिए मंदिर के बाहर निकाला जाता है और मंदिर के चारो तरफ़ माता की मूर्ति को घुमाया जाता है.

जब भी कोई भक्त पवित्र मन से देवी को मदत करने के लिए बुलाता है तो देवी त्वरित आती है और उसकी हर इच्छा पूरी करती है. इसीलिए भी इस देवी को त्वरिता-तुरजा-तुलजा भवानी देवी कहा जाता है.

गर्भगृह के पास ही एक चांदी का पलंग स्थित है, जो माता की निद्रा के लिए है. इस पलंग के उलटी तरफ शिवलिंग स्थापित हैं, जिसे दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि मां भवानी और शिव शंकर आमने-सामने बैठे हैं.

यहां स्थित चांदी के छल्ले वाले स्तम्भों के विषय में माना जाता है कि यदि आपके शरीर के किसी भी भाग में दर्द है तो सात दिन लगातार इस छल्ले को छूने से वह दर्द समाप्त हो जाता है. इस मंदिर से जुड़ी एक जनश्रुति यह भी है कि यहां पर एक ऐसा चमत्कारित पत्थर विद्यमान है, जिसके विषय में माना जाता है कि यह आपके सभी प्रश्रों का उत्तर सांकेतिक रूप में ‘हां’ या ‘नहीं’ में देता है. यदि आपके प्रश्र का उत्तर ‘हां’ है तो यह अपने आप दाहिनी ओर मुड़ जाता है. अगर उत्तर ‘नहीं’ है तो यह बाईं दिशा में मुड़ जाता है. माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी किसी भी युद्ध से पहले चिंतामणि नामक इस पत्थर के पास अपने प्रश्नों के समाधान के लिए आते थे.

अविनाशी परब्रह्म ने कुछ काल के बाद द्वितीय की इच्छा प्रकट की. उसके भीतर एक से अनेक होने का संकल्प उदित हुआ. तब उस निराकार परमात्मा ने अपनी लीला शक्ति से आकार की कल्पना की, जो मूर्तिरहित परम ब्रह्म है. परम ब्रह्म अर्थात एकाक्षर ब्रह्म. परम अक्षर ब्रह्म. वह परम ब्रह्म भगवान सदाशिव है. एकांकी रहकर स्वेच्छा से सभी ओर विहार करने वाले उस सदाशिव ने अपने विग्रह (शरीर) से शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने श्रीअंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी. सदाशिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धि तत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है.

वह शक्ति अम्बिका (पार्वती या सती नहीं) कही गई है. उसको प्रकृति, सर्वेश्वरी, त्रिदेव जननी (ब्रह्मा, विष्णु और महेश की माता), नित्या और मूल कारण भी कहते हैं. सदाशिव द्वारा प्रकट की गई उस शक्ति की 8 भुजाएं हैं. पराशक्ति जगतजननी वह देवी नाना प्रकार की गतियों से संपन्न है और अनेक प्रकार के अस्त्र शक्ति धारण करती है. एकांकिनी होने पर भी वह माया शक्ति संयोगवशात अनेक हो जाती है. उस कालरूप सदाशिव की अर्द्धांगिनी हैं यह शक्ति जिसे जगदम्बा भी कहते हैं. 

भवानी उपासना ;
एक चौरंगी पर माता की मूर्ति ,फोटो या यंत्र स्थापित करे. नित्य पंचोपचार पूजन करके माता के बीजमंत्र :-
  ॐ ह्रीं भवान्यै नमः 
इस मंत्रकी 11 माला जाप कीजिये . मंत्रजाप के बाद " भवानी अष्टक " का पाठ कीजिये. त्वरित फलदायी होती है इसलिए ही उन्हें त्वरिता - तुलजा भवानी कहते है . 
 भवानी अष्टकम ।।
न तातो न माता न बन्धुर्न दाता, न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता.
न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।1।।
भवाब्धावपारे महादु:खभीरु:, पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्त:।
कुसंसार-पाश-प्रबद्ध: सदाSहं, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।2।।
न जानामि दानं न च ध्यान-योगं, न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्र-मन्त्रम्.
न जानामि पूजां न च न्यासयोगम्, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।3।।
न जानामि पुण्य़ं न जानामि तीर्थं, न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्.
न जानामि भक्तिं व्रतं वाSपि मातर्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।4।।
 कुकुर्मी  कुसंगी  कुबुद्धि  कुदास:,    कुलाचारहीन:   कदाचारलीन:।
कुदृष्टि: कुवाक्यप्रबन्ध: सदाSहं, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।5।।
प्रजेशं   रमेशं   महेशं  सुरेशं,   दिनेशं    निशीथेश्वरं   वा    कदाचित्.
न जानामि चाSन्यत् सदाSहं शरण्ये, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।6।।
विवादे   विषादे   प्रमादे   प्रवासे,  जले   चाSनले   पर्वते   शत्रुमध्ये.
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।7।।
अनाथो  दरिद्रो  जरा-रोगयुक्तो, महाक्षीणदीन:  सदा  जाड्यवक्त्र:।
विपत्तौ प्रविष्ट: प्रणष्ट: सदाSहं, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।8।।

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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