भैरवनाथ जी के रहस्य एवं साधना

भैरवनाथ जी के रहस्य एवं साधना

प्रेषित समय :21:54:07 PM / Sat, Apr 1st, 2023

भैरव का अर्थ होता है भय का हरण कर जगत का भरण करने वाला. ऐसा भी कहा जाता है कि भैरव शब्द के तीन अक्षरों में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्ति समाहित है. भैरव शिव के गण और पार्वती के अनुचर माने जाते हैं. हिंदू देवताओं में भैरव का बहुत ही महत्व है. इन्हें काशी का कोतवाल कहा जाता है.
भैरव उत्पत्ति
उल्लेख है कि शिव के रूधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई. बाद में उक्त रूधिर के दो भाग हो गए- पहला बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव. मुख्‍यत: दो भैरवों की पूजा का प्रचलन है, एक काल भैरव और दूसरे बटुक भैरव. पुराणों में भगवान भैरव को असितांग, रुद्र, चंड, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहार नाम से भी जाना जाता है. भगवान शिव के पांचवें अवतार भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है. नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व है.
लोक देवता
लोक जीवन में भगवान भैरव को भैरू महाराज, भैरू बाबा, मामा भैरव, नाना भैरव आदि नामों से जाना जाता है. कई समाज के ये कुल देवता हैं और इन्हें पूजने का प्रचलन भी भिन्न-भिन्न है, जो कि विधिवत न होकर स्थानीय परम्परा का हिस्सा है. यह भी उल्लेखनीय है कि भगवान भैरव किसी के शरीर में नहीं आते.
पालिया महाराज
सड़क के किनारे भैरू महाराज के नाम से ज्यादातर जो ओटले या स्थान बना रखे हैं दरअसल वे उन मृत आत्माओं के स्थान हैं जिनकी मृत्यु उक्त स्थान पर दुर्घटना या अन्य कारणों से हो गई है. ऐसे किसी स्थान का भगवान भैरव से कोई संबंध नहीं. उक्त स्थान पर मत्था टेकना मान्य नहीं है.
भैरव मंदिर
भैरव का प्रसिद्ध, प्राचीन और चमत्कारिक मंदिर उज्जैन और काशी में है. काल भैरव का उज्जैन में और बटुक भैरव का लखनऊ में मंदिर है. काशी विश्वनाथ मंदिर से भैरव मंदिर कोई डेढ़-दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. दूसरा नई दिल्ली के विनय मार्ग पर नेहरू पार्क में बटुक भैरव का पांडवकालीन मंदिर अत्यंत प्रसिद्ध है. तीसरा उज्जैन के काल भैरव की प्रसिद्धि का कारण भी ऐतिहासिक और तांत्रिक है. नैनीताल के समीप घोड़ा खाड़ का बटुकभैरव मंदिर भी अत्यंत प्रसिद्ध है. यहां गोलू देवता के नाम से भैरव की प्रसिद्धि है. इसके अलावा शक्तिपीठों और उपपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है.
काल भैरव
काल भैरव का आविर्भाव मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी को प्रदोष काल में हुआ था. यह भगवान का साहसिक युवा रूप है. उक्त रूप की आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय की प्राप्ति होती है. व्यक्ति में साहस का संचार होता है. सभी तरह के भय से मुक्ति मिलती है. काल भैरव को शंकर का रुद्रावतार माना जाता है.
काल भैरव की आराधना के लिए मंत्र है- ।। ॐ भैरवाय नम:।।
बटुक भैरव
'बटुकाख्यस्य देवस्य भैरवस्य महात्मन:। ब्रह्मा विष्णु, महेशाधैर्वन्दित दयानिधे।।'
अर्थात्
ब्रह्मा, विष्णु, महेशादि देवों द्वारा वंदित बटुक नाम से प्रसिद्ध इन भैरव देव की उपासना कल्पवृक्ष के समान फलदायी है. बटुक भैरव भगवान का बाल रूप है. इन्हें आनंद भैरव भी कहते हैं. उक्त सौम्य स्वरूप की आराधना शीघ्र फलदायी है. यह कार्य में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है.
उक्त आराधना के लिए मंत्र है- ।।ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ।।
भैरव तंत्र
योग में जिसे समाधि पद कहा गया है, भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष 112 विधियों का उल्लेख किया है जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है.
भैरव आराधना से शनि शांत
एकमात्र भैरव की आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है. आराधना का दिन रविवार और मंगलवार नियुक्त है. पुराणों के अनुसार भाद्रपद माह को भैरव पूजा के लिए अति उत्तम माना गया है. उक्त माह के रविवार को बड़ा रविवार मानते हुए व्रत रखते हैं. आराधना से पूर्व जान लें कि कुत्ते को कभी दुत्कारे नहीं बल्कि उसे भरपेट भोजन कराएं. जुआ, सट्टा, शराब, ब्याजखोरी, अनैतिक कृत्य आदि आदतों से दूर रहें. दांत और आंत साफ रखें. पवित्र होकर ही सात्विक आराधना करें. अपवि‍त्रता वर्जित है.
भैरव चरित्र
भैरव के चरित्र का भयावह चित्रण कर तथा घिनौनी तांत्रिक क्रियाएं कर लोगों में उनके प्रति एक डर और उपेक्षा का भाव भरने वाले तांत्रिकों और अन्य पूजकों को भगवान भैरव माफ करें. दरअसल भैरव वैसे नहीं है जैसा कि उनका चित्रण किया गया है. वे मांस और मदिरा से दूर रहने वाले शिव और दुर्गा के भक्त हैं. उनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक है.
उनका कार्य है शिव की नगरी काशी की सुरक्षा करना और समाज के अपराधियों को पकड़कर दंड के लिए प्रस्तुत करना. जैसे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जिसके पास जासूसी कुत्ता होता है. उक्त अधिकारी का जो कार्य होता है वही भगवान भैरव का कार्य है.
श्री भैरव के आठ रूप हैं जिसमें प्रमुख रूप से बटुक भैरव, महाकाल भैरव तथा स्वर्णाकर्षण भैरव प्रमुख हैं. जिस भैरव की पूजा करें उसी रूप के नाम का उच्चारण होना चाहिए. सभी भैरवों में बटुक भैरव उपासना का अधिक प्रचलन है. तांत्रिक ग्रंथों में अष्ट भैरव के नामों की प्रसिद्धि है. वे इस प्रकार हैं-
1. असितांग भैरव,
2. चंड भैरव,
3. रूरू भैरव,
4. क्रोध भैरव,
5. उन्मत्त भैरव,
6. कपाल भैरव,
7. भीषण भैरव
8. संहार भैरव.
क्षेत्रपाल व दण्डपाणि के नाम से भी इन्हें जाना जाता है.
श्री भैरव से काल भी भयभीत रहता है अत: उनका एक रूप'काल भैरव'के नाम से विख्यात हैं.
दुष्टों का दमन करने के कारण इन्हें"आमर्दक"कहा गया है.
शिवजी ने भैरव को काशी के कोतवाल पद पर प्रतिष्ठित किया है.
जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडली में शनि, मंगल, राहु आदि पाप ग्रह अशुभ फलदायक हों, नीचगत अथवा शत्रु क्षेत्रीय हों. शनि की साढ़े-साती या ढैय्या से पीडित हों, तो वे व्यक्ति भैरव जयंती अथवा किसी माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी, रविवार, मंगलवार या बुधवार प्रारम्भ कर बटुक भैरव मूल मंत्र की एक माला (१०८ बार) का जाप प्रतिदिन रूद्राक्ष की माला से ४१ दिन तक करें, अवश्य ही शुभ फलों की प्राप्ति होगी.
जन्मकुंडली में अगर आप मंगल ग्रह के दोषों से परेशान हैं तो भैरव की पूजा करके पत्रिका के दोषों का निवारण आसानी से कर सकते है. राहु केतु के उपायों के लिए भी इनका पूजन करना अच्छा माना जाता है. भैरव की पूजा में काली उड़द और उड़द से बने मिष्ठान्न इमरती, दही बड़े, दूध और मेवा का भोग लगानालाभकारी है इससे भैरव प्रसन्न होते है.
भैरव की पूजा-अर्चना करने से परिवार में सुख-शांति, समृद्धि के साथ-साथ स्वास्थ्य की रक्षा भी होती है. तंत्र के ये जाने-माने महान देवता काशी के कोतवाल माने जाते हैं. भैरव तंत्रोक्त, बटुक भैरव कवच, काल भैरव स्तोत्र, बटुक भैरव ब्रह्म कवच आदि का नियमित पाठ करने से अपनी अनेक समस्याओं का निदान कर सकते हैं. भैरव कवच से असामायिक मृत्यु से बचा जा सकता है.
खास तौर पर कालभैरव अष्टमी पर भैरव के दर्शन करने से आपको अशुभ कर्मों से मुक्ति मिल सकती है. भारत भर में कई परिवारों में कुलदेवता के रूप में भैरव की पूजा करने का विधान हैं. वैसे तो आम आदमी, शनि, कालिका माँ और काल भैरव का नाम सुनते ही घबराने लगते हैं, लेकिन सच्चे दिल से की गई इनकी आराधना आपके जीवन के रूप-रंग को बदल सकती है. ये सभी देवता आपको घबराने के लिए नहीं बल्कि आपको सुखी जीवन देने के लिए तत्पर रहते है बशर्ते आप सही रास्ते पर चलते रहे.
मध्यप्रदेश के उज्जैन में भी कालभैरव के ऐतिहासिक मंदिर है, जो बहुत महत्व का है. पुरानी धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कालभैरव को यह वरदान है कि भगवान शिव की पूजा से पहले उनकी पूजा होगी. इसलिए उज्जैन दर्शन के समय कालभैरव के मंदिर जाना अनिवार्य है. तभी महाकाल की पूजा का लाभ आपको मिल पाता है.
भैरव साधना !!
मंत्र संग्रह पूर्व-पीठिका
मेरु-पृष्ठ पर सुखासीन, वरदा देवाधिदेव शंकर से !!
पूछा देवी पार्वती ने, अखिल विश्व-गुरु परमेश्वर से !
जन-जन के कल्याण हेतु, वह सर्व-सिद्धिदा मन्त्र बताएँ !!
जिससे सभी आपदाओं से साधक की रक्षा हो, वह सुख पाए !
शिव बोले, आपद्-उद्धारक मन्त्र, स्तोत्र मैं बतलाता,
देवि ! पाठ जप कर जिसका, है मानव सदा शान्ति-सुख पाता !!
तांत्रोक्त भैरव कवच !!
ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः !
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु !!
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा !
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः !!
नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे !
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः !!
भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा !
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः !!
ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः !
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः !!
रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु !
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च !!
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः !
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः !!
पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः !
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा !!
महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा !
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा !!
भैरव वशीकरण मन्त्र !!
“ॐनमो रुद्राय, कपिलाय, भैरवाय, त्रिलोक- नाथाय, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा ”
“ॐ भ्रां भ्रां भूँ भैरवाय स्वाहा. ॐ भं भं भं अमुक-मोहनाय स्वाहा ”
“ॐ नमो काला गोरा भैरुं वीर, पर-नारी सूँ देही सीर ! गुड़ परिदीयी गोरख जाणी, गुद्दी पकड़ दे भैंरु आणी, गुड़, रक्त का धरि ग्रास, कदे न छोड़े मेरा पाश ! जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण ! पकड़ पलना ल्यावे ! काला भैंरु न लावै, तो अक्षर देवी कालिका की आण ! फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा !”
ॐ भैरवाय नम: !!
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकाल भैरवायनम:!
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ !!
ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा !!
श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत् !!
विनियोग -
ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षणभैरव महामंत्रस्य श्री महाभैरव ब्रह्मा ऋषिः , त्रिष्टुप्छन्दः , त्रिमूर्तिरूपी भगवान स्वर्णाकर्षणभैरवो देवता, ह्रीं बीजं , सः शक्तिः, वं कीलकं मम् दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः !!
अब बाए हाथ मे जल लेकर दाहिने हाथ की उंगलियों को जल से स्पर्श करके मंत्र मे दिये हुए शरीर के स्थानो पर स्पर्श करे !!
ऋष्यादिन्यास !!
श्री महाभैरव ब्रह्म ऋषये नमः शिरसि !
त्रिष्टुप छ्न्दसे नमः मुखे !
श्री त्रिमूर्तिरूपी भगवान
स्वर्णाकर्षण भैरव देवतायै नमः ह्रदिः !
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये !
सः शक्तये नमः पादयोः !
वं कीलकाय नमः नाभौ !
मम् दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं
स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे !
मंत्र बोलते हुए दोनो हाथ के उंगलियों को आग्या चक्र पर स्पर्श करे ! अंगुष्ठ का मंत्र बोलते समय दोनो अंगुष्ठ से आग्या चक्र पर स्पर्श करना है !!
श्री भैरव चालीसा !!
दोहा !!
श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ !
चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ !!
श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल !
श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल !!
जय जय श्री काली के लाला !
जयति जयति काशी- कुतवाला !!
जयति बटुक भैरव जय हारी !
जयति काल भैरव बलकारी !!
जयति सर्व भैरव विख्याता !
जयति नाथ भैरव सुखदाता !!
भैरव रुप कियो शिव धारण !
भव के भार उतारण कारण !!
भैरव रव सुन है भय दूरी !
सब विधि होय कामना पूरी !!
शेष महेश आदि गुण गायो !
काशी-कोतवाल कहलायो !!
जटाजूट सिर चन्द्र विराजत !
बाला, मुकुट, बिजायठ साजत !!
कटि करधनी घुंघरु बाजत !
दर्शन करत सकल भय भाजत !!
जीवन दान दास को दीन्हो !
कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो !!
वसि रसना बनि सारद-काली !
दीन्यो वर राख्यो मम लाली !!
धन्य धन्य भैरव भय भंजन !
जय मनरंजन खल दल भंजन !!
कर त्रिशूल डमरु शुचि कोड़ा !
कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा !!
जो भैरव निर्भय गुण गावत !
अष्टसिद्घि नवनिधि फल पावत !!
रुप विशाल कठिन दुख मोचन !
क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन

Koti Devi Devta

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र

भगवान कालभैरव की महिमा

भैरवनाथ जी के रहस्य एवं साधना

Leave a Reply