मोहिनी एकादशी उपवास से अनेक जन्मों के मेरु पर्वत जैसे महापापों का नाश होगा

मोहिनी एकादशी उपवास से अनेक जन्मों के मेरु पर्वत जैसे महापापों का नाश होगा

प्रेषित समय :21:35:46 PM / Sun, Apr 30th, 2023

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को *"मोहिनी एकादशी"* कहते हैं जो इस बार 1 मई 2023, सोमवार के दिन है.
मोहिनी एकादशी उपवास से अनेक जन्मों के मेरु पर्वत जैसे महापापों का होगा नाश होगा.  
*एकादशी तिथि शुरुआत
30 अप्रैल 2023 ,रविवार रात्रि 8:28 से
एकादशी तिथि समापन* 
1 मई 2023, सोमवार रात्रि 10:09 मिनट पे
व्रत के पारण का समय 
2 मई 2023, मंगलवार सुबह 5:40 से 8:19 तक
विशेष 
मोहिनी एकादशी" का व्रत सूर्योदय तिथि 1 मई 2023, सोमवार के दिन रखें .  
 रविवार रात्रि एवं सोमवार व्रत के दिन खाने में चावल या चावल से बनी हुई चीज वस्तु का प्रयोग बिल्कुल भी ना करें अगर आपने व्रत नहीं रखा है तो भी
मोहिनी एकादशी माहात्म्य 
वैशाख शुक्ल एकादशी यानी मोहिनी एकादशी पर भगवान विष्णु की आराधना करने से  सुख-समृद्धि तो बढ़ती ही है वहीं शाश्वत शांति भी प्राप्त होती है.
 इस दिन व्रत-उपवास रखकर मोह-माया के बंधन से मु‍क्त होने के लिए यह एकादशी बहुत लाभदायी है. 
 *स्कंद पुराण के अनुसार मोहिनी एकादशी के दिन समुद्र मंथन से निकले अमृत का प्रभु श्री विष्णु ने मोहिनी स्त्री रूप अवतार लेकर देवताओं को अमृतपान करवाया था
 स्कंद पुराण के अवंतिका खंड में शिप्रा को अमृतदायिनी, पुण्यदायिनी कहा गया है अत: मोहिनी एकादशी पर शिप्रा में अमृत महोत्सव का आयोजन किया जाता है.
 *इसलिए कहते हैं -तत सोमवती शिप्रा विख्याता यति पुण्यदा पवित्राय 
अवंतिका खंड के अनुसार मोहिनी रूपधारी भगवान विष्णु ने अवंतिका नगरी में अमृत वितरण किया था. देवासुर संग्राम के दौरान मोहिनी रूप रखकर राक्षकों को चकमा दिया और देवताओं को अमृत पान करवाया. यह दिन देवासुर संग्राम का समापन दिन भी माना जाता है.
विष्णु पुराण के अनुसार मोहिनी एकादशी का विधिवत व्रत करने से मनुष्य मोह-माया के बंधनों से मुक्त हो जाता है. साथ ही व्रती के समस्त पापों का नाश हो जाता है.
वैशाख मास के अंतिम 3  दिन दिलायेंगे महापुण्य पुंज
*स्कंद पुराण’ के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में अंतिम ३ दिन, त्रयोदशी से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियाँ बड़ी ही पवित्र और शुभकारक हैं |
*इनका नाम ‘ पुष्करिणी ’ हैं, ये सब पापों का क्षय करनेवाली हैं . जो सम्पूर्ण वैशाख मास में ब्राम्हमुहूर्त में पुण्यस्नान, व्रत, नियम आदि करने में असमर्थ हो, वह यदि इन ३ तिथियों में भी उसे करे तो वैशाख मास का पूरा फल पा लेता है | 
 वैशाख मास में लौकिक कामनाओं का नियमन करने पर मनुष्य निश्चय ही भगवान विष्णु का सायुज्य प्राप्त कर लेता है | 
जो वैशाख मास में अंतिम ३ दिन ‘गीता’ का पाठ करता है, उसे प्रतिदिन अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है | जो इन तीनों दिन ‘श्रीविष्णुसहस्रनाम’  का पाठ करता है, उसके पुण्यफल का वर्णन करने में तो इस भूलोक व स्वर्गलोक में कौन समर्थ है | अर्थात् वह महापुण्यवान हो जाता है |
जो वैशाख के अंतिम 3 दिनों में ‘भागवत’ शास्त्र का श्रवण करता है, वह जल में कमल के पत्तों की भांति कभी पापों में लिप्त नहीं होता | इन अंतिम ३ दिनों में शास्त्र-पठन व पुण्यकर्मों से कितने ही मनुष्यों ने देवत्व प्राप्त कर लिया और कितने ही सिद्ध हो गये | अत: वैशाख के अंतिम दिनों में स्नान, दान, पूजन अवश्य करना चाहिए |

मोहिनी एकादशी व्रत कथा
मोहिनी एकादशी व्रत विधि इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान श्रीराम की पूजा की जाती है| व्रत का संकल्प लेने के बाद ही इस व्रत को शुरु किया जाता है| संकल्प लेने के लिये इन दोनों देवों के समक्ष संकल्प लिया जाता है| देवों का पूजन करने के लिये कुम्भ स्थापना कर, उसके ऊपर लाल रंग का वस्त्र बांध कर पहले कुम्भ का पूजन किया जाता है, इसके बाद इसके ऊपर भगवान की तस्वीर या प्रतिमा रखी जाती है| प्रतिमा रखने के बाद भगवान का धूप, दीप और फूलों से पूजन किया जाता है| तत्पश्चात व्रत की कथा सुनी जाती है|
मोहिनी एकादशी व्रत का महत्व मोहिनी एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप और दु:ख नष्ट होते है| इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य़ मोह जाल से छूट जाता है, अत: इस व्रत को सभी दु:खी मनुष्यों को अवश्य करना चाहिए| मोहिनी एकादशी के व्रत के दिन इस व्रत की कथा अवश्य सुननी चाहिए|

मोहिनी एकादशी व्रत कथा युधिष्ठिर ने पूछा  जनार्दन  वैशाख मास के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? उसका क्या फल होता है? उसके लिए कौन सी विधि है?
भगवान श्रीकृष्ण बोले धर्मराज  पूर्वकाल में परम बुद्धिमान श्रीरामचन्द्रजी ने महर्षि वशिष्ठजी से यही बात पूछी थी, जिसे आज तुम मुझसे पूछ रहे हो.
श्रीराम ने कहा : भगवन्! जो समस्त पापों का क्षय तथा सब प्रकार के दु:खों का निवारण करनेवाला, व्रतों में उत्तम व्रत हो, उसे मैं सुनना चाहता हूँ.
वशिष्ठजी बोले : श्रीराम! तुमने बहुत उत्तम बात पूछी है. मनुष्य तुम्हारा नाम लेने से ही सब पापों से शुद्ध हो जाता है. तथापि लोगों के हित की इच्छा से मैं पवित्रों में पवित्र उत्तम व्रत का वर्णन करुँगा. वैशाख मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका नाम ‘मोहिनी’ है. वह सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है. उसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल तथा पातक समूह से छुटकारा पा जाते हैं.

सरस्वती नदी के रमणीय तट पर भद्रावती नाम की सुन्दर नगरी है. वहाँ धृतिमान नामक राजा, जो चन्द्रवंश में उत्पन्न और सत्यप्रतिज्ञ थे, राज्य करते थे. उसी नगर में एक वैश्य रहता था, जो धन धान्य से परिपूर्ण और समृद्धशाली था. उसका नाम था धनपाल. वह सदा पुण्यकर्म में ही लगा रहता था. दूसरों के लिए पौसला (प्याऊ), कुआँ, मठ, बगीचा, पोखरा और घर बनवाया करता था. भगवान विष्णु की भक्ति में उसका हार्दिक अनुराग था. वह सदा शान्त रहता था. उसके पाँच पुत्र थे : सुमना, धुतिमान, मेघावी, सुकृत तथा धृष्टबुद्धि. धृष्टबुद्धि पाँचवाँ था. वह सदा बड़े बड़े पापों में ही संलग्न रहता था. जुए आदि दुर्व्यसनों में उसकी बड़ी आसक्ति थी. वह वेश्याओं से मिलने के लिए लालायित रहता था. उसकी बुद्धि न तो देवताओं के पूजन में लगती थी और न पितरों तथा ब्राह्मणों के सत्कार में. वह दुष्टात्मा अन्याय के मार्ग पर चलकर पिता का धन बरबाद किया करता था. एक दिन वह वेश्या के गले में बाँह डाले चौराहे पर घूमता देखा गया. तब पिता ने उसे घर से निकाल दिया तथा बन्धु बान्धवों ने भी उसका परित्याग कर दिया. 

वैशाख का महीना था. तपोधन कौण्डिन्य गंगाजी में स्नान करके आये थे. धृष्टबुद्धि शोक के भार से पीड़ित हो मुनिवर कौण्डिन्य के पास गया और हाथ जोड़ सामने खड़ा होकर बोला : ब्रह्मन्! द्विजश्रेष्ठ! मुझ पर दया करके कोई ऐसा व्रत बताइये, जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो.
कौण्डिन्य बोले : वैशाख के शुक्लपक्ष में ‘मोहिनी  नाम से प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो. ‘मोहिनी  को उपवास करने पर प्राणियों के अनेक जन्मों के किये हुए मेरु पर्वत जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं 

वशिष्ठजी कहते है  श्री रामचन्द्रजी! मुनि का यह वचन सुनकर धृष्टबुद्धि का चित्त प्रसन्न हो गया. उसने कौण्डिन्य के उपदेश से विधिपूर्वक  मोहिनी एकादशी का व्रत किया. नृपश्रेष्ठ! इस व्रत के करने से वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर गरुड़ पर आरुढ़ हो सब प्रकार के उपद्रवों से रहित श्रीविष्णुधाम को चला गया. इस प्रकार यह  मोहिनी का व्रत बहुत उत्तम है. इसके पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है.
एकादशी की आरती
ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता .
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता ।। 
तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी .
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी ।।
मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी.
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई।। 
पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है,
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै ।। 
नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै.
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै ।। .
विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी,
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की ।। 
चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली,
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली ।। 
शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी,
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी।। 
योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी.
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी ।। 
कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए.
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए।। 
अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला.
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला।। 
पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी.
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी ।। 
देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया.
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया ।।

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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