पौरिणीक कथा
एक बार देवी पार्वती हिमालय भ्रमण कर रही थी उनके साथ उनकी दो सहचरियां जया और विजया भी थीं, हिमालय पर भ्रमण करते हुये वे हिमालय से दूर आ निकली, मार्ग में सुनदर मन्दाकिनी नदी कल कल करती हुई बह रही थी, जिसका साफ स्वच्छ जल दिखने पर देवी पार्वती के मन में स्नान की इच्छा हुई, उनहोंने जया विजया को अपनी मनशा बताती व उनको भी सनान करने को कहा, किन्तु वे दोनों भूखी थी, बोली देवी हमें भूख लगी है, हम स्नान नहीं कर सकती, तो देवी नें कहा ठीक है मैं स्नान करती हूँ तुम विश्राम कर लो, किन्तु सनान में देवी को अधिक समय लग गया, जया विजया नें पुनः देवी से कहा कि उनको कुछ खाने को चाहिए, देवी स्नान करती हुयी बोली कुच्छ देर में बाहर आ कर तुम्हें कुछ खाने को दूंगी, लेकिन थोड़ी ही देर में जया विजया नें फिर से खाने को कुछ माँगा, इस पर देवी नदी से बाहर आ गयी और अपने हाथों में उनहोंने एक दिव्य खडग प्रकट किया व उस खडग से उनहोंने अपना सर काट लिया, देवी के कटे गले से रुधिर की धारा बहने लगी तीन प्रमुख धाराएँ ऊपर उठती हुयी भूमि की और आई तो देवी नें कहा जया विजया तुम दोनों मेरे रक्त से अपनी भूख मिटा लो, ऐसा कहते ही दोनों देवियाँ पार्वती जी का रुधिर पान करने लगी व एक रक्त की धारा देवी नें स्वयं अपने ही मुख में ड़ाल दी और रुधिर पान करने लगी, देवी के ऐसे रूप को देख कर देवताओं में त्राहि त्राहि मच गयी, देवताओं नें देवी को प्रचंड चंड चंडिका कह कर संबोधित किया, ऋषियों नें कटे हुये सर के कारण देवी को नाम दिया छिन्नमस्ता, तब शिव नें कबंध शिव का रूप बना कर देवी को शांत किया, शिव के आग्रह पर पुनह: देवी ने सौम्य रूप बनाया, नाथ पंथ सहित बौद्ध मतावलम्बी भी देवी की उपासना करते हैं, भक्त को इनकी उपासना से भौतिक सुख संपदा वैभव की प्राप्ति, वाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएँ प्राप्त होती है, इनकी सिद्धि हो जाने ओपर कुछ पाना शेष नहीं रह जाता,
दस महाविद्यायों में प्रचंड चंड नायिका के नाम से व बीररात्रि कह कर देवी को पूजा जाता है.
देवी के शिव को कबंध शिव के नाम से पूजा जाता है. छिन्नमस्ता देवी शत्रु नाश की सबसे बड़ी देवी हैं,भगवान् परशुराम नें इसी विद्या के प्रभाव से अपार बल अर्जित किया था.
शास्त्रों में देवी को ही प्राणतोषिनी कहा गया है. देवी की स्तुति से देवी की अमोघ कृपा प्राप्त होती है.
माँ का स्तुति मंत्र
छिन्न्मस्ता करे वामे धार्यन्तीं स्व्मास्ताकम,
प्रसारितमुखिम भीमां लेलिहानाग्रजिव्हिकाम,
पिवंतीं रौधिरीं धारां निजकंठविनिर्गाताम,
विकीर्णकेशपाशान्श्च नाना पुष्प समन्विताम,
दक्षिणे च करे कर्त्री मुण्डमालाविभूषिताम,
दिगम्बरीं महाघोरां प्रत्यालीढ़पदे स्थिताम,
अस्थिमालाधरां देवीं नागयज्ञो पवीतिनिम,
डाकिनीवर्णिनीयुक्तां वामदक्षिणयोगत:.
गृहस्थ साधक को सदा ही देवी की सौम्य रूप में साधना पूजा करनी चाहिए. देवी योगमयी हैं ध्यान समाधी द्वारा भी इनको प्रसन्न किया जा सकता है. इडा पिंगला सहित स्वयं देवी सुषुम्ना नाड़ी हैं जो कुण्डलिनी का स्थान हैं. देवी के भक्त को मृत्यु भय नहीं रहता वो इच्छानुसार जन्म ले सकता है. देवी की मूर्ती पर रुद्राक्षनाग केसर व रक्त चन्दन चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है
महाविद्या छिन्मस्ता के इन मन्त्रों से आधी व्यादी सहित बड़े से बड़े दुखों का नाश संभव है.
देवी माँ का स्वत: सिद्ध महामंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा.
इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं व देवी को पुष्प अत्यंत प्रिय हैं इसलिए केवल पुष्पों के होम से ही देवी कृपा कर देती है,आप भी मनोकामना के लिए यज्ञ कर सकते हैं,जैसे-
1. मालती के फूलों से होम करने पर बाक सिद्धि होती है व चंपा के फूलों से होम करने पर सुखों में बढ़ोतरी होती है
2. बेलपत्र के फूलों से होम करने पर लक्ष्मी प्राप्त होती है व बेल के फलों से हवन करने पर अभीष्ट सिद्धि होती है
3. सफेद कनेर के फूलों से होम करने पर रोगमुक्ति मिलती है तथा अल्पायु दोष नष्ट हो 100 साल आयु होती है
4. लाल कनेर के पुष्पों से होम करने पर बहुत से लोगों का आकर्षण होता है व बंधूक पुष्पों से होम करने पर भाग्य बृद्धि होती है
5. कमल के पुष्पों का गी के साथ होम करने से बड़ी से बड़ी बाधा भी रुक जाती है
6 .मल्लिका नाम के फूलों के होम से भीड़ को भी बश में किया जा सकता है व अशोक के पुष्पों से होम करने पर पुत्र प्राप्ति होती है
7 .महुए के पुष्पों से होम करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं व देवी प्रसन्न होती है
महाअंक-देवी द्वारा उतपन्न गणित का अंक जिसे स्वयं छिन्नमस्ता ही कहा जाता है वो देवी का महाअंक है -“4”
विशेष पूजा सामग्रियां एवं पूजा विधि
मालती के फूल, सफेद कनेर के फूल, पीले पुष्प व पुष्पमालाएं चढ़ाएं केसर, पीले रंग से रंगे हुए अक्षत, देसी घी, सफेद तिल, धतूरा, जौ, सुपारी व पान चढ़ाएं, बादाम व सूखे फल प्रसाद रूप में अर्पित करें, सीपियाँ पूजन स्थान पर रखें, भोजपत्र पर ॐ ह्रीं ॐ लिख करा अर्पण करें, दूर्वा,गंगाजल, शहद, कपूर, रक्त चन्दन चढ़ाएं, संभव हो तो चंडी या ताम्बे के पात्रों का ही पूजन में प्रयोग करें.
पूजा के बाद खेचरी मुद्रा लगा कर ध्यान का अभ्यास करना चाहिए सभी चढ़ावे चढाते हुये देवी का ये मंत्र पढ़ें-
ॐ वीररात्रि स्वरूपिन्ये नम:
देवी के दो प्रमुख रूपों के दो महामंत्र
1)देवी प्रचंड चंडिका मंत्र-ऐं श्रीं क्लीं ह्रीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा
2)देवी रेणुका शाबरी मंत्र-ॐ श्रीं ह्रीं क्रौं ऐं
सभी मन्त्रों के जाप से पहले कबंध शिव का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिए
पूजा विधि (विविध कामनाओ अनुसार)
शाम के समय प्रदोषकाल में पूजा घर में दक्षिण-पश्चिम मुखी होकर नीले रंग के आसन पर बैठ जाएं. अपने सामने लकड़ी के पट्टे पर नीला वस्त्र बिछाकर उस पर छिन्नमस्ता यंत्र स्थापित करें. दाएं हाथ में जल लेकर संकल्प करें तत्पश्चात हाथ जोड़कर छिन्नमस्ता देवी का ध्यान करें.
ध्यान: प्रचण्ड चण्डिकां वक्ष्ये सर्वकाम फलप्रदाम्. यस्या: स्मरण मात्रेण सदाशिवो भवेन्नर:..
देवी छिन्नमस्ता की विभिन्न प्रकार से पूजा करें. सरसों के तेल में नील मिलाकर दीपक करें. हो सके तो देवी पर नीले फूल (मन्दाकिनी अथवा सदाबहार) चढ़ाएं. देवी पर सुरमे से तिलक करें. लोहबान से धूप करें और इत्र अर्पित करें. उड़द से बने मिष्ठान का भोग लगाएं. तत्पश्चात बाएं हाथ में काले नमक की डली लेकर दाएं हाथ से काले हकीक अथवा अष्टमुखी रुद्राक्ष माला अथवा लाजवर्त की माला से देवी के इस अदभूत मंत्र का यथासंभव जाप करें.
मंत्र: श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै हूं हूं फट स्वाहा: ..
जाप पूरा होने के बाद काले नमक की डली को बरगद के नीचे गाड़ दें. बची हुई सामग्री को जल प्रवाह कर दें. इस साधना से शत्रुओं का तुरंत नाश होता है, रोजगार में सफलता मिलती है, नौकरी में प्रमोशन मिलती है तथा कोर्ट कचहरी वाद-विवाद व मुकदमों में निश्चित सफलता मिलती है. महाविद्या छिन्नमस्ता की साधना से जीवन की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.
छिन्नमस्ता मां छिन्नमस्तिका की उपासना से भौतिक वैभव की प्राप्ति, वाद विवाद में विजय, शत्रुओं पर जय, सम्मोहन शक्ति के साथ-साथ अलौकिक सम्पदाएं मिलती हैं. इस पविवर्तन शील जगत का अधिपति कबंध है और उसकी शक्ति छिन्नमस्ता है. इनका सिर कटा हुआ और इनके कबंध से रक्त की तीन धाराएं बह रही है. इनकी तीन आंखें हैं और ये मदन और रति पर आसीन है. देवी के गले में हड्डियों की माला तथा कंधे पर यज्ञोपवीत है. इसलिए शांत भाव से इनकी उपासना करने पर यह अपने शांत स्वरूप को प्रकट करती हैं. उग्र रूप में उपासना करने पर यह उग्र रूप में दर्शन देती हैं जिससे साधक के उच्चाटन होने का भय रहता है.माता का स्वरूप अतयंत गोपनीय है. चतुर्थ संध्याकाल में मां छिन्नमस्ता की उपासना से साधक को सरस्वती की सिद्ध प्राप्त हो जाती है. कृष्ण और रक्त गुणों की देवियां इनकी सहचरी हैं. पलास और बेलपत्रों से छिन्नमस्ता महाविद्या की सिद्धि की जाती है. इससे प्राप्त सिद्धियां मिलने से लेखन बुद्धि ज्ञान बढ़ जाता है. शरीर रोग मुक्त होताते हैं. सभी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष शत्रु परास्त होते हैं. यदि साधक योग, ध्यान और शास्त्रार्थ में साधक पारंगत होकर विख्यात हो जाता है.
भगवती छिन्नमस्ता का स्वरूप अत्यंत ही गोपनीय है. इसे कोई अधिकारी साधक ही जान सकता है.
छिन्नमस्ता का आध्यात्मिक स्वरूप अत्यन्त महत्वपूर्ण है. छिन्न यज्ञशीर्ष की प्रतीक ये देवी श्वेतकमल पीठ पर खड़ी हैं. दिशाएं ही इनके वस्त्र हैं. इनकी नाभि में योनिचक्र है. कृष्ण (तम) और रक्त(रज) गुणों की देवियां इनकी सहचरियां हैं. ये अपना शीश काटकर भी जीवित हैं. यह अपने आप में पूर्ण अन्तर्मुखी साधना का संकेत है.
विद्वानों ने इस कथा में सिद्धि की चरम सीमा का निर्देश माना है. योगशास्त्र में तीन ग्रंथियां बतायी गयी हैं, जिनके भेदन के बाद योगी को पूर्ण सिद्धि प्राप्त होती है. इन्हें ब्रम्हाग्रन्थि, विष्णुग्रन्थि तथा रुद्रग्रन्थि कहा गया है. मूलाधार में ब्रम्हग्रन्थि, मणिपूर में विष्णुग्रन्थि तथा आज्ञाचक्र में रुद्रग्रन्थि का स्थान है. इन ग्रंथियों के भेदन से ही अद्वैतानन्द की प्राप्ति होती है. योगियों का ऐसा अनुभव है कि मणिपूर चक्र के नीचे की नाड़ियों में ही काम और रति का मूल है, उसी पर छिन्ना महाशक्ति आरुढ़ हैं, इसका ऊर्ध्व प्रवाह होने पर रुद्रग्रन्थि का भेदन होता है.छिन्नमस्ता का वज्र वैरोचनी नाम शाक्तों, बौद्धों तथा जैनों में समान रूप से प्रचलित है. देवी की दोनों सहचरियां रजोगुण तथा तमोगुण की प्रतीक हैं, कमल विश्वप्रपंच है और कामरति चिदानन्द की स्थूलवृत्ति है. बृहदारण्यक की अश्वशिर विद्या, शाक्तों की हयग्रीव विद्या तथा गाणपत्यों के छिन्नशीर्ष गणपति का रहस्य भी छिन्नमस्ता से ही संबंधित है. हिरण्यकशिपु, वैरोचन आदि छिन्नमस्ता के ही उपासक थे. इसीलिये इन्हें वज्र वैरोचनीया कहा गया है. वैरोचन अग्नि को कहते हैं. अग्नि के स्थान मणिपूर में छिन्नमस्ता का ध्यान किया जाता है और वज्रानाड़ी में इनका प्रवाह होने से इन्हें वज्र वैरोचनीया कहते हैं. श्रीभैरवतन्त्र में कहा गया है कि इनकी आराधना से साधक जीवभाव से मुक्त होकर शिवभाव को प्राप्त कर लेता है.
श्री महाविद्या छिन्नमस्ता महामंत्र
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचिनिये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा ॥ एक दिन का साधना है. इस मंत्र को दस हजार जाप करे किँतु 21 माला जाप पुरे होते ही देवी अपना माया देखना आरंभ करती है.अगर मंत्र जाप के मध्य मेँ बिजली काड्क ने की आबाज सुनाई दे तो डरे नही,ईसका अर्थ है साधक के सारे कष्ट का नाश हुआ.मंत्र जाप पुरा करना है किसी भी किमत मेँ और आखीर मेँ देवी दर्शन देगी॥
छिन्नमस्ता साधना एक ऐसी साधना है, जिसको सम्पन्न कर सामान्य गृहस्थ भी योगी का पद प्राप्त कर सकता है. वायु वेग से शून्य के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकता है. ज़मीन से उठ कर हवा में स्थिर हो सकता है, एक शरीर को कई शरीरों में बदल सकता है और अनेक ऐसी सिद्धियों का स्वामी बन सकता है, आश्चर्य की गणना में आती है.
इस साधना को गुप्त नवरात्री छिन्नमस्ता जयन्ती अथवा किसी भी मंगलवार से आरम्भ किया जा सकता है. यह साधना रात्रि काल में ही सम्पन्न की जाती है, अतः मन्त्र जाप रात्रि में ही किया जाए अर्थात यह साधना रात्रि को दस बजे आरम्भ करके प्रातः लगभग तीन या चार बजे तक समाप्त करनी चाहिए.
इस साधना को पूरा करने के लिए सवा लाख मन्त्र जाप सम्पन्न करना चाहिए और यह साधना ग्यारह या इक्कीस दिनों में पूरी होनी चाहिए.
रात्रि को लगभग दस बजे स्नान करके काली अथवा नीली धोती धारण कर लें. फिर साधना कक्ष में जाकर दक्षिण दिशा की ओर मुँह करके काले या नीले ऊनी आसन पर बैठ जाएं. अपने सामने किसी बाजोट पर काला अथवा नीला वस्त्र बिछाकर उस पर सद्गुरुदेवजी का चित्र या विग्रह और माँ भगवती छिन्नमस्ता का यन्त्र-चित्र स्थापित कर लें. इसके साथ ही गणपति और भैरव के प्रतीक रूप में दो सुपारी क्रमशः अक्षत एवं काले तिल की ढेरी पर स्थापित कर दें.
अब सबसे पहले साधक शुद्ध घी का दीपक प्रज्ज्वलित कर धूप-अगरबत्ती भी लगा दे. फिर सामान्य गुरुपूजन सम्पन्न करें तथा गुरुमन्त्र की कम से कम चार माला जाप करें. फिर सद्गुरुदेवजी से छिन्नमस्ता साधना सम्पन्न करने की अनुमति लें और उनसे साधना की निर्बाध पूर्णता और सफलता के लिए प्रार्थना करें.
श्री चिंतपूर्णी माता की आरती
चिंतपूर्णी चिंता दूर करनी, जग को तारो भोली माँ
जन को तारो भोली माँ, काली दा पुत्र पवन दा घोड़ा || भोली माँ ||
सिन्हा पर भाई असवार, भोली माँ, चिंतपूर्णी चिंता दूर || भोली माँ ||
एक हाथ खड़ग दूजे में खांडा, तीजे त्रिशूल सम्भालो, || भोली माँ ||
चौथे हाथ चक्कर गदा, पाँचवे-छठे मुण्ड़ो की माला, || भोली माँ ||
सातवे से रुण्ड मुण्ड बिदारे, आठवे से असुर संहारो, || भोली माँ ||
चम्पे का बाग़ लगा अति सुन्दर, बैठी दीवान लगाये, || भोली माँ ||
हरी ब्रम्हा तेरे भवन विराजे, लाल चंदोया बैठी तान, || भोली माँ ||
औखी घाटी विकटा पैंडा, तले बहे दरिया, || भोली माँ ||
सुमन चरण ध्यानु जस गावे, भक्तां दी पज निभाओ || भोली माँ ||
शुभम भवतु
ज्योतिषीय उपाय (ग्रह और आप )
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-गुप्त नवरात्रि के तीसरे दिन जानें भगवती महात्रिपुरत्र सुंदरी सूक्त का महत्व
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गुप्त नवरात्रि पर सिद्ध करें अमोघ राम रक्षा स्तोत्र
जनवरी से गुप्त नवरात्रि प्रांरभ, दस महाविद्याओ की साधना होगी