गुप्त नवरात्री मे छठा, षष्ठ एवं दस महाविद्याओ मे एक माँ त्रिपुर भैरवी साधना

गुप्त नवरात्री मे छठा, षष्ठ एवं दस महाविद्याओ मे एक माँ त्रिपुर भैरवी साधना

प्रेषित समय :21:11:41 PM / Fri, Jun 23rd, 2023

गुप्त नवरात्रि मे छठा, षष्ठ एवं दस महाविद्याओ  मे एक माँ त्रिपुर भैरवी साधना
महाविद्याओ में छठवें स्थान पर विद्यमान त्रिपुर-भैरवी, संहार तथा विध्वंस की पूर्ण शक्ति है. त्रिपुर शब्द का अर्थ है, तीनो लोक "स्वर्ग, विश्व और पाताल" और भैरवी विनाश के एक सिद्धांत के रूप में अवस्थित हें, तात्पर्य है तीन लोको में सर्व नष्ट या विध्वंस कि जो शक्ति है, वह भैरवी है.
देवी त्रिपुर भैरवी का घनिष्ठ सम्बन्ध 'काल भैरव' से है, जो जीवित तथा मृत मानवो को अपने दुष्कर्मो के अनुसार दंड देते है तथा अत्यंत भयानक स्वरूप वाले तथा उग्र स्वाभाव वाले हैं. काल भैरव, स्वयं भगवान शिव के ऐसे अवतार है, जिन का घनिष्ठ सम्बन्ध विनाश से है तथा ये याम राज के भी अत्यंत निकट हैं, जीवात्मा को अपने दुष्कर्मो का दंड इन्हीं के द्वारा दी जाती हैं. 
इनके ध्यान का उल्लेख दुर्गासप्तशती के तीसरे अध्याय में महिषासुर वध के प्रसंग में हुआ है. इनका रंग लाल है. ये लाल वस्त्र पहनती हैं, गले में मुंडमाला धारण करती हैं और शरीर पर रक्त चंदन का लेप करती हैं. ये अपने हाथों में जपमाला, पुस्तक तथा वर और अभय मुद्रा धारण करती हैं. ये कमलासन पर विराजमान हैं. भगवती त्रिपुरभैरवी ने ही मधुपान करके महिषका हृदय विदीर्ण किया था. रुद्रयामल एवं भैरवी कुल सर्वस्व में इनकी उपासना करने का विधान है.
इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या करने का दृढ़ निर्णय लिया था. बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी इनकी तपस्या को देखकर दंग रह गए. इससे सिद्ध होता है कि भगवान शंकर की उपासना में निरत उमा का दृ़ढ़निश्चयी स्वरूप ही त्रिपुरभैरवी का परिचालक है. त्रिपुरभैरवी की स्तुति में कहा गया है कि भैरवी सूक्ष्म वाक् तथा जगत में मूल कारण की अधिष्ठात्री हैं.
त्रिपुर भैरवी की उपासना से सभी बंधन दूर हो जाते हैं. यह बंदीछोड़ माता है. भैरवी के नाना प्रकार के भेद बताए गए हैं जो इस प्रकार हैं त्रिपुरा भैरवी, चैतन्य भैरवी, सिद्ध भैरवी, भुवनेश्वर भैरवी, संपदाप्रद भैरवी, कमलेश्वरी भैरवी, कौलेश्वर भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, नित्याभैरवी, रुद्रभैरवी, भद्र भैरवी तथा षटकुटा भैरवी आदि. त्रिपुरा भैरवी ऊर्ध्वान्वय की देवता हैं.
माता की चार भुजाएं और तीन नेत्र हैं. इन्हें षोडशी भी कहा जाता है. षोडशी को श्रीविद्या भी माना जाता है. यह साधक को युक्ति और मुक्ति दोनों ही प्रदान करती है. इसकी साधना से षोडश कला निपुण सन्तान की प्राप्ति होती है. जल, थल और नभ में उसका वर्चस्व कायम होता है. आजीविका और व्यापार में इतनी वृद्धि होती है कि व्यक्ति संसार भर में धन श्रेष्ठ यानि सर्वाधिक धनी बनकर सुख भोग करता है.
जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य सिद्धि के लिए इस देवी की आराधना की जाती है. इसकी साधना से धन सम्पदा की प्राप्ति होती है, मनोवांछित वर या कन्या से विवाह होता है. षोडशी का भक्त कभी दुखी नहीं रहता है.
प्रवृति के अनुसार दस महाविद्या के तीन समूह हैं. पहला:- सौम्य कोटि (त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, मातंगी, कमला), दूसरा:- उग्र कोटि (काली, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी), तीसरा:- सौम्य-उग्र कोटि (तारा और त्रिपुर भैरवी).
माँ त्रिपुर भैरवी के अन्य तेरह स्वरुप हैं इनका हर रुप अपने आप अन्यतम है. माता के किसी भी स्वरुप की साधना साधक को सार्थक कर देती है. माँ त्रिपुर भैरवी कंठ में मुंड माला धारण किये हुए हैं. माँ ने अपने हाथों में माला धारण कर रखी है. माँ स्वयं साधनामय हैं उन्होंने अभय और वर मुद्रा धारण कर रखी है जो सदैव अपने भक्तों को सौभाग्य प्रदान करती है. माँ ने लाल वस्त्र धारण कियए है, माँ के हाथ में विद्या तत्व है. माँ त्रिपुर भैरवी की पूजा में लाल रंग का उपयोग करने से माता अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाती है.माँ त्रिपुर भैरवी बीज मंत्र
माँ त्रिपुर भैरवी के बीज मंत्रों का जप करने से एक साथ अनेक संकटों से मुक्ति मिल जाती है. इन मंत्रों का जप करने वाला अत्यधिक धन का स्वामी बनकर जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य का अधिकारी बन जाता है.
भैरवी काम उत्पीड़न से बचने का सांसारिक व प्रायोगिक है. वह है शिव एवं शक्ति को अपने जीवन में समान महत्व देना, उनकी उपासना एवं त्रिपुर भैरवी की अराधना. इस भैरवी उत्पीड़न से मुक्ति का एकमात्र रास्ता है श्री त्रिपुर भैरवी की तांत्रोक्त अराधना एवं भैरव्यास्त्र.
साधक व त्रिपुरा सुंन्दरी के बीच उनकी रथवाहिका के रूप में रास्ता रोके खड़ीं होती हैं – श्री त्रिपुर भैरवी. जिस की सन्तुष्टि पूजन साधना से ही रास्ता सुगम है जाता है.
माँ त्रिपुर भैरवी के स्वरूप
शास्त्रों में माँ भैरवी के विभिन्न स्वरूप होते हैं जो इस प्रकार हैं-
त्रिपुरा भैरवी,
चैतन्य भैरवी,
सिद्ध भैरवी,
भुवनेश्वर भैरवी,
संपदाप्रद भैरवी,
कमलेश्वरी भैरवी,
कौलेश्वर भैरवी,
कामेश्वरी भैरवी,
नित्याभैरवी,
रुद्रभैरवी,
भद्र भैरवी एवं
षटकुटा भैरवी आदि.
देवी भागवत के अनुसार महाकाली के उग्र और सौम्य दो रुपों में अनेक रुप धारण करने वाली दस महा-विद्याएं है. माँ का स्वरूप सृष्टि के निर्माण और संहार क्रम को जारी रखे हुए है. माँ त्रिपुर भैरवी तमोगुण एवं रजोगुण से परिपूर्ण हैं.
महाविद्या त्रिपुरा भैरवी की साधना  नवरात्रि या शुक्ल पक्ष के बुधवार या शुक्रवार के दिन से शुरू कर सकते हैं !
समय रात्रि नौ बजे के बाद कर सकते हैं !
माँ त्रिपुर भैरवी साधना पूजा विधि
साधक को स्नान करके शुद्ध लाल वस्त्र धारण करके अपने घर में किसी एकान्त स्थान या पूजा कक्ष में पूर्व दिशा की तरफ़ मुख करके लाल ऊनी आसन पर बैठ जाए !
उसके बाद अपने सामने चौकी रखकर उस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर भगवान शिव यंत्र स्थापित करें !
फिर प्लेट रखकर रोली से त्रिकोण बनाये उस त्रिकोण में पर के ऊपर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त “त्रिपुरा भैरवी यंत्र” को स्थापित करें !
उसके बाद यन्त्र के सामने शुद्ध घी का दीपक जलाकर यंत्र का पूजन करें .
तुम्हारे एवं  त्रिपूरा सुन्दरी  के बीच उनकी रथवाहिका के रूप में रास्ता रोके खड़ीं हैं.
त्रिपुर भैरवी यंत्र पर मंत्र पढ़ते हुए कुछ लाल पुष्प विषेशकर गुलाब के फूल चढ़ाये.
भैरवी  से मुक्ति का रास्ता मिल जाएगा. सुगन्धित इत्र बेला, गुलाब या चमेली का भी साथ में चढ़ाये.
और मन्त्र विधान अनुसार संकल्प आदि कर सीधे हाथ में जल लेकर
विनियोग पढ़े :
ॐ अस्य श्री त्रिपुर भैरवी मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति ऋषि: पंक्तिश्छ्न्द: त्रिपुर भैरवी देवता वाग्भवो बीजं शक्ति बीजं शक्ति: कामराज कीलकं श्रीत्रिपुरभैरवी प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:
ऋष्यादि न्यास :
बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रो का उच्चारण करते हुए अपने भिन्न भिन्न अंगों को स्पर्श करें.
मंत्र :
दक्षिणामूर्तये ऋषये नम: शिरसि ( सर को स्पर्श करें )
पंक्तिच्छ्न्दे नम: मुखे ( मुख को स्पर्श करें )
श्रीत्रिपुरभैरवीदेवतायै नम: ह्रदये ( ह्रदय को स्पर्श करें )
वाग्भवबीजाय नम: गुहे ( गुप्तांग को स्पर्श करें )
शक्तिबीजशक्तये नम: पादयो: ( दोनों पैरों को स्पर्श करें )
कामराजकीलकाय नम: नाभौ ( नाभि को स्पर्श करें )
विनियोगाय नम: सर्वांगे ( पूरे शरीर को स्पर्श करें )
कर न्यास :
अपने दोनों हाथों के अंगूठे से अपने हाथ की विभिन्न उंगलियों को स्पर्श करें, ऐसा करने से उंगलियों में चेतना प्राप्त होती है.
हस्त्रां अंगुष्ठाभ्यां नम: .
ह्स्त्रीं तर्जनीभ्यां नम: .
ह्स्त्रूं मध्यमाभ्यां नम: .
हस्त्रैं अनामिकाभ्यां नम: .
ह्स्त्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नम: .
हस्त्र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नम: .
ह्र्दयादि न्यास : 
पुन: बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की समूहबद्ध, पांचों उंगलियों से नीचे दिए गये निम्न मंत्रों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों को स्पर्श करते हुए ऐसी भावना मन में रखें कि वे सभी अंग तेजस्वी और पवित्र होते जा रहे हैं ! ऐसा करने से आपके अंग शक्तिशाली बनेंगे और आपमें चेतना प्राप्त होती है !
न्यास करें :
हस्त्रां ह्रदयाय नम: .
हस्त्रां शिरसे स्वाहा .
ह्स्त्रूं शिखायै वषट् .
हस्त्रां कवचाय हुम् .
ह्स्त्रौं नेत्रत्रयाय वौषट् .
हस्त्र: अस्त्राय फट् .
त्रिपुर भैरवी ध्यान
इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती त्रिपुर भैरवी का ध्यान करके पूजन करें. धुप, दीप, चावल, पुष्प से .
इसके बाद दोनों हाथ जोड़कर माँ भगवती त्रिपुर भैरवी का ध्यान करके, त्रिपुर भैरवी माँ का पूजन करे धुप, दीप, चावल, पुष्प से तदनन्तर त्रिपुर भैरवी महाविद्या का पूजा करें !
माँ त्रिपुर भैरवी साधना सिद्धि मन्त्र
॥ ह सें ह स क रीं ह सें ॥
या
॥ ॐ हसरीं त्रिपुर भैरव्यै नम: ॥
त्रिपुर भैरवी का मंत्र
मुंगे की माला से पंद्रह माला
‘ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:’
मंत्र का जाप कर सकते हैं.
माँ त्रिपुर भैरवी बीज मंत्र
माँ त्रिपुर भैरवी के बीज मंत्रों का जप करने से एक साथ अनेक संकटों से मुक्ति मिल जाती है. इन मंत्रों का जप करने वाला अत्यधिक धन का स्वामी बनकर जीवन में काम, सौभाग्य और शारीरिक सुख के साथ आरोग्य का अधिकारी बन जाता है. साथ ही मनोवांछित वर या कन्या को जीवनसाथी के रूप में प्राप्त करता है.
1- .. ह्नीं भैरवी क्लौं ह्नीं स्वाहा:..
2- .. ॐ ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नमः..
3- .. ॐ ह्रीं सर्वैश्वर्याकारिणी देव्यै नमो नम:..
साधना विधान:
गणेश,गुरु,शिव पुजन भी नित्य किया करें. यह साधना 9 दिन की है और मंत्र जाप रुद्राक्ष माला से करें. यह साधना किसी भी नवरात्रि मे कर सकते है. आसन-वस्त्र लाल रंग के हो और उत्तर दिशा के तरफ मुख करके मंत्र जाप करें. मंत्र जाप से पुर्व अपनी कोई भी 3 इच्छाएं पुर्ण होने हेतु देवि से प्रार्थना करें. नित्य कम से कम 15 माला मंत्र जाप करें. साधक अपने गुरु से त्रिपुर भैरवी दीक्षा प्राप्त कर सकता है तो अवश्य ही येसा करने पर उसे पुर्ण सफलता प्राप्त हो सकती है. इस साधना से सभी मनोकामनाए पुर्ण होती है.
9 दिन के बाद जब साधना पुर्ण हो जाये तब हवन के समय एक अनार का बलि देना जरुरी है.
साधना पूरी होने के बाद मन्त्रों का जाप करने के बाद दिए गये मन्त्र जिसका आपने जाप किया हैं उस मन्त्र का दशांश ( 10% भाग ) हवन अवश्य करें ! हवन में कमल गट्टे, कलम पुष्प, शुद्ध घी व् हवन सामग्री को मिलाकर आहुति दें ! हवन के बाद त्रिपुर भैरवी यंत्र को अपने घर के मंदिर या तिजोरी में लाल वस्त्र से बांधकर एक साल के लिए रख दें . और बाकि बची हुई पूजा सामग्री को नदी या किसी पीपल के नीचे विसर्जन कर आयें ! ऐसा करने से साधक की साधना पूर्ण हो जाती हैं ! और साधक के ऊपर माँ त्रिपुर भैरवी देवी की कृपा सदैव बनी रही हैं ! त्रिपुरा भैरवी मंत्र हवन यज्ञ तर्पण मार्जन साधना करने से साधक के जीवन में धन, धान्य और यश प्रदान करती है ! और साधक के जीवन की दरिद्रता समाप्त हो जाती है!
मां त्रिपुरा भैरवी कवच
फल-श्रुति
इदं कवचमित्युक्तो, मन्त्रोद्धारश्च पार्वति . य पठेत् प्रयतो भूत्वा, त्रि-सन्ध्यं नियतः शुचिः .
तस्य सर्वार्थ-सिद्धिः स्याद्, यद्यन्मनसि वर्तते . गोरोचना-कुंकुमेन, रक्त-चन्दनेन वा .
स्वयम्भू-कुसुमैः शुक्लैर्भूमि-पुत्रे शनौ सुरै . श्मशाने प्रान्तरे वाऽपि, शून्यागारे शिवालये .
स्व-शक्त्या गुरुणा मन्त्रं, पूजयित्वा कुमारिकाः . तन्मनुं पूजयित्वा च, गुरु-पंक्तिं तथैव च .
देव्यै बलिं निवेद्याथ, नर-मार्जार-शूकरैः . नकुलैर्महिषैर्मेषैः, पूजयित्वा विधानतः .
धृत्वा सुवर्ण-मध्यस्थं, कण्ठे वा दक्षिणे भुजे . सु-तिथौ शुभ-नक्षत्रे, सूर्यस्योदयने तथा .
धारयित्वा च कवचं, सर्व-सिद्धिं लभेन्नरः .
कवचस्य च माहात्म्यं, नाहं वर्ष-शतैरपि . शक्नोमि तु महेशानि ! वक्तुं तस्य फलं तु यत् .
न दुर्भिक्ष-फलं तत्र, न चापि पीडनं तथा . सर्व-विघ्न-प्रशमनं, सर्व-व्याधि-विनाशनम् .
सर्व-रक्षा-करं जन्तोः, चतुर्वर्ग-फल-प्रदम्, मन्त्रं प्राप्य विधानेन, पूजयेत् सततः सुधीः .
तत्रापि दुर्लभं मन्ये, कवचं देव-रुपिणम् .
गुरोः प्रसादमासाद्य, विद्यां प्राप्य सुगोपिताम् . तत्रापि कवचं दिव्यं, दुर्लभं भुवन-त्रयेऽपि .
श्लोकं वास्तवमेकं वा, यः पठेत् प्रयतः शुचिः . तस्य सर्वार्थ-सिद्धिः, स्याच्छङ्करेण प्रभाषितम् .
गुरुर्देवो हरः साक्षात्, पत्नी तस्य च पार्वती . अभेदेन यजेद् यस्तु, तस्य सिद्धिरदूरतः .
इति श्री रुद्र-यामले भैरव-भैरवी-सम्वादे-श्रीत्रिपुर-भैरवी-कवचं सम्पूर्णम्
Koti Devi Devta  

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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