सिद्धि अर्थात पूर्णता की प्राप्ति होना व सफलता की अनुभूति मिलना. सिद्धि को प्राप्त करने का मार्ग एक कठिन मार्ग हो ओर जो इन सिद्धियों को प्राप्त कर लेता है वह जीवन की पूर्णता को पा लेता है. असामान्य कौशल या क्षमता अर्जित करने को 'सिद्धि' कहा गया है.
चमत्कारिक साधनों द्वारा 'अलौकिक शक्तियों को पाना जैसे - दिव्यदृष्टि, अपना आकार छोटा कर लेना, घटनाओं की स्मृति प्राप्त कर लेना इत्यादि. 'सिद्धि' इसी अर्थ में प्रयुक्त होती है.
शास्त्रों में अनेक सिद्धियों की चर्चा की गई है और इन सिद्धियों को यदि नियमित और अनुशासनबद्ध रहकर किया जाए तो अनेक प्रकार की परा और अपरा सिद्धियाँ प्राप्त कि जा सकती है.
सिद्धियाँ दो प्रकार की होती हैं, एक परा और दूसरी अपरा. यह सिद्धियां इंद्रियों के नियंत्रण और व्यापकता को दर्शाती हैं.
सब प्रकार की उत्तम, मध्यम और अधम सिद्धियाँ अपरा सिद्धियांकहलाती है.
मुख्य सिद्धियाँ आठ प्रकार की कही गई हैं. इन सिद्धियों को पाने के उपरांत साधक के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं रह जाता.सिद्धियां क्या हैं व इनसे क्या हो सकता है .
इन सभी का उल्लेख मार्कंडेय पुराण तथा ब्रह्मवैवर्तपुराण में प्राप्त होता है जो इस प्रकार है:-
अणिमा लघिमा गरिमा प्राप्ति: प्राकाम्यंमहिमा तथा. ईशित्वं च वशित्वंच सर्वकामावशायिता:..
यह आठ मुख्य सिद्धियाँ इस प्रकार हैं:-
अणिमा सिद्धि -
अपने को सूक्ष्म बना लेने की क्षमता ही अणिमा है. यह सिद्धि यह वह सिद्धि है, जिससे युक्त हो कर व्यक्ति सूक्ष्म रूप धर कर एक प्रकार से दूसरों के लिए अदृश्य हो जाता है. इसके द्वारा आकार में लघु होकर एक अणु रुप में परिवर्तित हो सकता है. अणु एवं परमाणुओं की शक्ति से सम्पन्न हो साधक वीर व बलवान हो जाता है. अणिमा की सिद्धि से सम्पन्न योगी अपनी शक्ति द्वारा अपार बल पाता है.
महिमा सिद्धि
अपने को बड़ा एवं विशाल बना लेने की क्षमता को महिमा कहा जाता है. यह आकार को विस्तार देती है विशालकाय स्वरुप को जन्म देने में सहायक है. इस सिद्धि से सम्पन्न होकर साधक प्रकृति को विस्तारित करने में सक्षम होता है. जिस प्रकार केवल ईश्वर ही अपनी इसी सिद्धि से ब्रह्माण्ड का विस्तार करते हैं उसी प्रकार साधक भी इसे पाकर उन्हें जैसी शक्ति भी पाता है.
गरिमा सिद्धि
इस सिद्धि से मनुष्य अपने शरीर को जितना चाहे, उतना भारी बना सकता है. यह सिद्धि साधक को अनुभव कराती है कि उसका वजन या भार उसके अनुसार बहुत अधिक बढ़ सकता है जिसके द्वारा वह किसी के हटाए या हिलाए जाने पर भी नहीं हिल सकता .
लघिमा सिद्धि
स्वयं को हल्का बना लेने की क्षमता ही लघिमा सिद्धि होती है. लघिमा सिद्धि में साधक स्वयं को अत्यंत हल्का अनुभव करता है. इस दिव्य महासिद्धि के प्रभाव से योगी सुदूर अनन्त तक फैले हुए ब्रह्माण्ड के किसी भी पदार्थ को अपने पास बुलाकर उसकोलघु करके अपने हिसाब से उसमें परिवर्तन कर सकता है.
प्राप्ति सिद्धि
कुछ भी निर्माण कर लेने की क्षमता इस सिद्धि के बल पर जो कुछ भी पाना चाहें उसे प्राप्त किया जा सकता है. इस सिद्धि को प्राप्त करके साधक जिस भी किसी वस्तु की इच्छा करता है, वह असंभव होने पर भी उसे प्राप्त हो जाती है. जैसे रेगिस्तान में प्यासे को पानी प्राप्त हो सकता है या अमृत की चाह को भी पूरा कर पाने में वह सक्षम हो जाता है केवल इसी सिद्धि द्वारा ही वह असंभव को भी संभव कर सकता है.
प्राकाम्य सिद्धि
कोई भी रूप धारण कर लेने की क्षमता प्राकाम्य सिद्धि की प्राप्ति है. इसके सिद्ध हो जाने पर मन के विचार आपके अनुरुप परिवर्तित होने लगते हैं. इस सिद्धि में साधक अत्यंत शक्तिशाली शक्ति का अनुभव करता है. इस सिद्धि को पाने के बाद मनुष्य जिस वस्तु कि इच्छा करता है उसे पाने में कामयाब रहता है. व्यक्ति चाहे तो आसमान में उड़ सकता है और यदि चाहे तो पानी पर चल सकता है.
ईशिता सिद्धि
हर सत्ता को जान लेना और उस पर नियंत्रण करना ही इस सिद्धि का अर्थ है. इस सिद्धि को प्राप्त करके साधक समस्त प्रभुत्व औरअधिकार प्राप्त करने में सक्षम हो जाता है. सिद्धि प्राप्त होने पर अपने आदेश के अनुसार किसी पर भी अधिकार जमाय अजा सकता है. वह चाहे राज्यों से लेकर साम्राज्य ही क्यों न हो.इस सिद्धि को पाने पर साधक ईश रुप में परिवर्तित हो जाता है.
वशिता सिद्धि
जीवन और मृत्यु पर नियंत्रण पा लेने की क्षमता को वशिता या वशिकरण कही जाती है. इस सिद्धि के द्वारा जड़, चेतन, जीव-जन्तु,पदार्थ- प्रकृति, सभी को स्वयं के वश में किया जा सकता है.
जय श्री राम हनुमान जी के मंत्र ॐ ह्रां ह्रीं ह्रैं हनुमते नमः
1- "ॐ नमो हनुमते पाहि पाहि एहि एहि सर्वभूतानां डाकिनी शाकिनीनां सर्वविषयान आकर्षय आकर्षय मर्दय मर्दय छेदय छेदय अपमृत्यु प्रभूतमृत्यु शोषय शोषय ज्वल प्रज्वल भूतमंडलपिशाचमंडल निरसनाय भूतज्वर प्रेतज्वर चातुर्थिकज्वर माहेशऽवरज्वर छिंधि छिंधि भिन्दि भिन्दि अक्षि शूल कक्षि शूल शिरोभ्यंतर शूल गुल्म शूल पित्त शूल ब्रह्मराक्षस शूल प्रबल नागकुलविषंनिर्विषं कुरु कुरु स्वाहा .
2- ॐ ह्रौं हस्फ्रें ख्फ्रें हस्त्रौं हस्ख्फें हसौं हनुमते नमः .
इस मंत्र को 21 दिनों तक बारह हजार जप प्रतिदिन करें फिर दही, दूध और घी मिलाते हुए धान का दशांश आहुति दें . यह मंत्र सिद्ध होकर पूर्ण सफलता देता है .
3 - ॐ दक्षिणमुखाय पञ्चमुखहनुमते कराल वदनाय नरसिंहाय, ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रै ह्रौं ह्रः सकल भूत-प्रेतदमनाय स्वाहा .
(जप संख्या दस हजार, हवन अष्टगंध से)
4 - ॐ हरिमर्कट वामकरे परिमुञ्चति मुञ्चति श्रृंखलिकाम् .
इस मन्त्र को दाँये हाथ पर बाँये हाथ से लिखकर मिटा दे और 108 बार इसका जप करें प्रतिदिन 21 दिन तक . लाभ – बन्धन-मुक्ति .
5 - ॐ यो यो हनुमन्त फलफलित धग्धगिति आयुराष परुडाह ."
प्रत्येक मंगलवार को व्रत रखकर इस मंत्र का 25 माला जप करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है . इस मंत्र के द्वारा पीलिया रोग को झाड़ा जा सकता है .
6 - ॐ ऐं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्स्फ्रें ख्फ्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ्रें ह्सौं .
यह ११ अक्षरों वाला मंत्र अति फलदायी है, इसे 11 हजार की संख्या में प्रतिदिन जपना चाहिए .
7 - ॐ ह्रां ह्रीं फट् देहि ॐ शिवं सिद्धि ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं स्वाहा .
8 - ॐ सर्वदुष्ट ग्रह निवारणाय स्वाहा .
9 - हं पवननन्दाय स्वाहा .
10 - ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा . (18 अक्षर)
11 - ॐ हं हनुमते रुद्रात्मकाय हुं फट् . (12 अक्षर)
12 - ॐ नमो हनुमते मदन क्षोभं संहर संहर आत्मतत्त्वं प्रकाशय प्रकाशय हुं फट् स्वाहा .
13 - ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय अमुकस्य श्रृंखला त्रोटय त्रोटय बन्ध मोक्षं कुरु कुरु स्वाहा .
14 - ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा .
15 - ॐ हनुमते नमः . अंजनी गर्भ-सम्भूतः कपीन्द्र सचिवोत्तम् . राम-प्रिय नमस्तुभ्यं, हनुमन् रक्ष सर्वदा . ॐ हनुमते नमः .
16 - ॐ हनुमते नमः . आपदाममपहर्तारं दातारं सर्व-सम्पदान् . लोकाभिरामः श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् . ॐ हनुमते नमः .
17- ॐ हनुमते नमः . मर्कटेश महोत्साह सर्वशोक विनाशन . शत्रून् संहर मां रक्ष, श्रियं दापय मे प्रभो . ॐ हनुमते नमः .
18- ॐ हं पवननन्दाय स्वाहा .
19 - ॐ पूर्व-कपि-मुखाय पञ्च-मुख-हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु संहरणाय स्वाहा .
20 - ॐ पश्चिम-मुखाय-गरुडासनाय पंचमुखहनुमते नमः मं मं मं मं मं, सकल विषहराय स्वाहा .
इस मन्त्र की जप संख्या 10 हजार है, इसकी साधना दीपावली की अर्द्ध-रात्रि पर करनी चाहिए . यह मन्त्र विष निवारण में अत्यधिक सहायक है .
21 - ॐ उत्तरमुखाय आदि वराहाय लं लं लं लं लं सी हं सी हं नील-कण्ठ-मूर्तये लक्ष्मणप्राणदात्रे वीरहनुमते लंकोपदहनाय सकल सम्पत्ति-कराय पुत्र-पौत्रद्यभीष्ट-कराय ॐ नमः स्वाहा .
इस मन्त्र का उपयोग महामारी, अमंगल एवं ग्रह-दोष निवारण के लिए है .
22 - ॐ नमो पंचवदनाय हनुमते ऊर्ध्वमुखाय हयग्रीवाय रुं रुं रुं रुं रुं रुद्रमूर्तये सकललोक वशकराय वेदविद्या-स्वरुपिणे ॐ नमः स्वाहा .
यह वशीकरण के लिए उपयोगी मन्त्र है .
23 - ॐ ह्रां ह्रीं ह्रैं हनुमते नमः .
24- ॐ श्री महाञ्जनाय पवन-पुत्र-वेशयावेशय ॐ श्रीहनुमते फट् .
यह 25 अक्षरों का मन्त्र है इसके ऋषि ब्रह्मा, छन्द गायत्री, देवता हनुमानजी, बीज श्री और शक्ति फट् बताई गई है . छः दीर्घ स्वरों से युक्त बीज से षडङ्गन्यास करने का विधान है . इस मन्त्र का ध्यान इस प्रकार है -
आञ्जनेयं पाटलास्यं स्वर्णाद्रिसमविग्रहम् .
परिजातद्रुमूलस्थं चिन्तयेत् साधकोत्तम् ..
(नारद पुराण 75 -102 )
Koti Devi Devta
#HanumanChalisa हिंदुत्व हमारे रग रग में है, लेकिन.... इन्हें हनुमान चालीसा नहीं आती?