नवीन कुमार, मुंबई. वर्ष 2024 में होने वाला लोकसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ देश के लोकतंत्र के भविष्य को भी तय करेगा. विपक्ष का एक ही मकसद है कि इस चुनाव में किसी भी तरह से भाजपा को हराना है ताकि मोदी फिर से प्रधानमंत्री की कुर्सी पर न बैठ सकें और लोकतंत्र बचा रहे. विपक्ष मान रहा है कि मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भाजपानीत सरकार जिस तरह से काम कर रही है उससे देश का लोकतंत्र खतरे में है. विपक्ष कुछ भी सोचे लेकिन भाजपा का एक सूत्री कार्यक्रम है कि हर हाल में मोदी को प्रधानमंत्री बनाना है. इसके लिए महाराष्ट्र के साथ उत्तर प्रदेश और बिहार में भाजपा अपनी रणनीति पर गंभीरता से काम कर रही है. इन तीन राज्यों में लोकसभा की सीटें ज्यादा हैं और चुनाव में भाजपा जितनी ज्यादा सीटों पर कब्जा करेगी उससे मोदी के लिए प्रधानमंत्री बनने की संभावना ज्यादा अटल होगी. महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 23, शिवसेना को 18, एनसीपी को 4, कांग्रेस को 1, निर्दलीय को 1 और एआईएमआईएम को 1 सीट मिली थी. आने वाले लोकसभा चुनाव में समीकरण बदल जाएंगे. क्योंकि, भाजपा ने शिवसेना और एनसीपी में तोड़फोड़ कर दी है जिससे शिवसेना और एनसीपी के सांसदों की संख्या कम हो गई है. इससे भाजपा को लगता है कि अगले लोकसभा चुनाव में 48 नहीं तो 45 सीटों पर कब्जा कर लिया जाएगा और इससे मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाना आसान हो जाएगा. भाजपा जितनी आसानी से यह सब सोच रही है दरअसल उतना आसान है नहीं. क्योंकि, जमीनी हकीकत उससे थोड़ा अलग है. भाजपा को असलियत पता है तभी तो उसने शिवसेना और एनसीपी को तोड़ने का काम किया. राज्य की जनता और पार्टियों के कार्यकर्ता भी जब सब कुछ अपनी आंखों से देख रहे हैं तो चुनाव में उसका असर भी देखने को मिल सकता है. चुनाव से पहले ओपिनियन पोल जो आ रहे हैं उसमें जनता की राय शेअर मार्केट की तरह उतार-चढ़ाव में दिख रही है. इससे सभी राजनीतिक दल भंवर जाल में फंसे हुए हैं और उनकी बेचैनी भी बढ़ी हुई है. हर राजनीतिक दल अपनी जमीन मजबूत करने के लिए अलग ही रणनीति पर काम कर रहा है जिससे प्रतिद्वंद्वी दल भी समझ रहा है जो कुछ ऊपर से दिख रहा है, हकीकत कुछ और है.
अब ओपिनियन पोल को समझने की जरूरत है. कुछ एजंसियां इस तरह से ओपिनियन पोल परोस रही हैं मानो यह गणित वाला सीधा सादा सवाल जवाब हो. हर एक दो दिन में ओपिनियन पोल आएंगे तो जनता की राय भी भ्रम पैदा कर सकती है. देखिए, एक दिन ओपिनियन पोल में भाजपा ऊपर होती है तो दूसरे दिन वह धड़ाम से गिरी हुई दिखती है. यानी कि भाजपा और विपक्ष के बीच कभी खुशी कभी गम का खेल चल रहा है. फिर इस तरह के ओपिनियन पोल पर भरोसा कम होना लाजिमी है. समझने का मतलब है कि यह प्रायोजित हो सकता है. जिस पार्टी ने ओपिनियन पोल कराया है उसके पक्ष में जनता की राय जाहिर करा दो और उसके प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ नकारात्क राय फैला दो. यह खेल बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है. क्योंकि, जनता सब जानती है. आज की राजनीति में धार्मिक तुष्टीकरण का भी खेल चल रहा है और हिंदू कार्ड भी खेला जा रहा है. हिंदू कार्ड इतना ज्यादा उग्र हो गया है कि इसके सामने अब मुस्लिम तुष्टिकरण की बात नहीं हो रही है. ऐसे में ओपिनियन पोल का भी चेहरा बदला हुआ दिखता है. महाराष्ट्र में भी हिंदू कार्ड का ही असर है कि एकनाथ शिंदे गुट के बगावत के सहारे उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना को हिंदुत्व के नाम पर बांट दिया गया. इससे भी बड़ी घटना शरद पवार की एनसीपी के साथ हुई. प्रगतिशील विचारों वाली एनसीपी से अजित पवार गुट भाजपा से जा मिला और यह गुट अपने राजनीतिक लाभ के लिए हिंदुत्व का माला जप रहा है. इस धार्मिक ध्रुवीकरण का फायदा भाजपा को कितना होगा यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा.
उद्धव के नेतृत्व वाली महा विकास आघाड़ी सरकार को गिराकर शिंदे के नेतृत्व में नई सरकार बनाने के बाद भाजपा को अश्वमेघ यज्ञ वाली विजय यात्रा दिख रही है. स्वाभाविक है कि राजनैतिक युद्ध में शिवसेना जैसी मजबूत पार्टी के किले की दीवार को तोड़ने का आनंद तो किसी को भी हो सकता है. लेकिन जब बाहरी लोग अपनी ताकत का एहसास कराने लगता है तो उसके प्रभाव से बेचैनी बढ़ने लगती है. भाजपा गठबंधन में इस तरह का एक धुंधला चित्र उभरने लगा है और यह सब लोकप्रियता वाले एक विज्ञापन के जरिए भी स्पष्ट हुआ है. शिंदे गुट की शिवसेना और भाजपा के बीच खटास तो है. शिंदे गुट की शिवसेना ने अपने विज्ञापन में स्पष्ट बताया कि मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से ज्यादा लोकप्रिय हैं. भाजपा अपने नेता फडणवीस को कमजोर कैसे स्वीकार करती तो इसके जवाब में भाजपा के विज्ञापन में भी फडणवीस को ज्यादा लोकप्रिय बता दिया गया और राज्य के नेता खुलकर कहने लगे कि शिंदे फडणवीस से ज्यादा लोकप्रिय नहीं हैं. यह वही फडणवीस हैं जिन्होंने शिंदे को मुख्यमंत्री बनाया है, ऐसा स्वयं फडणवीस भी बोलते हैं. अब यहां यह समझने वाली बात है कि शिंदे गुट ने भाजपा को जता दिया कि राज्य में भाजपा से ज्यादा मजबूत शिवसेना है. भाजपा और शिवसेना का गठबंधन 30 साल पुराना है और शिवसेना के साथ रहकर ही भाजपा ने अपनी जमीन मजबूत की है. आज स्थिति ऐसी तैयार हो चुकी है कि वह अपने दम पर सरकार बना सकती है, ऐसा भाजपा भी मानती है. लेकिन शिंदे गुट ने विज्ञापन से हमला करके स्पष्ट कर दिया कि अगले चुनाव में खंडित शिवसेना और खंडित एनसीपी से भाजपा को लड़ना आसान नहीं है. क्योंकि, उद्धव ठाकरे और शरद पवार के पास समर्पित कार्यकर्ता और सहानुभूति का बहुत बड़ा बल है.
लोकप्रियता वाले विज्ञापन से ओपिनियन पोल ने जो रफ्तार पकड़ी वह अब तक जारी है. लेकिन बात वही है कि इस तरह के ओपिनियन पोल पर कितना भरोसा किया जाए. क्योंकि, हर ओपिनियन पोल में जनता की राय बदल जा रही है. इससे कार्यकर्ता भी भ्रम में हैं और उनके लिए अपने नेताओँ की बात पर भी भरोसा करना मुश्किल हो रहा है. इतना ही नहीं, कार्यकर्ताओँ का खुद पर से भी विश्वास कम हो सकता है. उसे यही समझ में आ रहा है कि जनता अपनी राय से उन्हें बेवकूफ बना रही है. ओपिनियन पोल में यह भी चित्र दिखाया जा रहा है कि भाजपा, शिवसेना (शिंदे गुट) और एनसीपी (अजित पवार गुट) की महायुति लोकसभा की 24 सीट ही जीत रही है. इसमें भाजपा को 20, शिवसेना (शिंदे गुट) को दो और अजित पवार गुट की एनसीपी को दो सीटें मिलेगी. विपक्ष में शिवसेना (उद्धव गुट) को 11, कांग्रेस को 9 और एनसीपी (शरद पवार गुट) को 4 सीटें मिलने वाली है. लेकिन दूसरे और भी ओपिनियन पोल हैं जिसमें भाजपा को खुश किया गया है तो विपक्ष को जमीन में ही धंसा दिया गया है. ओपिनियन पोल में शिवसेना के बागी नेता शिंदे और एनसीपी के बागी नेता अजित के राज्य में प्रभावहीन भी बताया जा रहा है. शिंदे ठाणे क्षेत्र तक प्रभावी हैं तो अजित को भी कमजोर हैं. इससे भाजपा की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है. इसे कम करने के लिए शिंदे और अजित लगातार प्रधानमंत्री मोदी का गुनगान कर रहे हैं और बता रहे हैं कि मोदी जैसा देश में दूसरा नेता नहीं है. मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे. इसका मतलब यह है कि महाराष्ट्र में मोदी के नाम पर ही वोट मांगे जाएंगे. दूसरी ओर, एक ओपिनियन पोल में महाराष्ट्र की जनता ने मोदी के लिए संकट पैदा करने की कोशिश की है. मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में फिर से देखना चाहते हैं के सवाल पर 42.1 फीसदी लोगों ने हां में जवाब दिया है जबकि 41.5 फीसदी लोगों ने ना कहा है. पसंद और नापसंद के बीच इतना कम अंतर है कि मोदी के लिए भाजपा को काफी मशक्कत करनी पड़ेगी. वैसे, भाजपा के लिए शिंदे और अजित दो मजबूत कंधे भी माने जा रहे हैं. बावजूद इसके महा विकास आघाड़ी से मुकाबला करने के लिए भाजपा अपनी जमीन मजबूत करने में जुटी है. लेकिन ओपिनियन पोल से समर्पित मतदाता के भ्रम में होने से वोटों के बिखरने की संभावना है और इससे किसे नुकसान होगा या किसे फायदा होगा, इस बारे में अभी से कुछ अनुमान नहीं लगाया जा सकता है.
(लेखक मुंबई के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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