बलराम जंयती के दिन भगवान गणेश और माता गौरा कि पूजा की जाती

बलराम जंयती के दिन भगवान गणेश और माता गौरा कि पूजा की जाती

प्रेषित समय :21:02:17 PM / Mon, Sep 4th, 2023
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बलराम (बलभद्र) बलराम जयन्ती मंगलवार ,05, सितम्बर  2023 को  है.  
बल्देव छठ का सम्बन्ध श्री बलराम जी से है. भाद्रपदशुक्ल पक्ष की षष्ठी को ब्रज के राजा और भगवान श्रीकृष्ण के अग्रज बल्देव जी का जन्मदिन ब्रज में बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता है. देवछठ' के दिन दाऊजी में विशाल मेला आयोजित होता है और दाऊजी के मन्दिर में विशेष पूजा एवं दर्शन होते हैं.
पौराणिक संदर्भ = ब्रज के राजा दाऊजी महाराज के जन्म के विषय में 'गर्ग पुराण' के अनुसार देवकी के सप्तम गर्भ को योगमाया ने संकर्षण कर रोहिणी के गर्भ में पहुँचाया. भाद्रपद शुक्ल षष्ठी के स्वाति नक्षत्र में वसुदेव की पत्नी रोहिणी जो कि नन्दबाबा के यहाँ रहती थी, के गर्भ से अनन्तदेव 'शेषावतार' प्रकट हुए. इस कारण श्री दाऊजी महाराज का दूसरा नाम 'संकर्षण' हुआ. भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि बुधवार के दिन मध्याह्न 12 बजे तुला लग्न तथा स्वाति नक्षत्र में बल्देव जी का जन्म हुआ. उस समय पाँच ग्रह उच्च के थे. इस समय आकाश से छोटी-छोटी वर्षा की बूँदें और देवता पुष्पों की वर्षा कर रहे थे.
दाऊजी महाराज का नामकरण = नन्दबाबा ने विधिविधान से कुलगुरु गर्गाचार्य जी से दाऊजी महाराज का नामकरण कराया. पालने में विराजमान शेषजी के दर्शन करने के लिए अनेक ऋषि, मुनि आये. 'कृष्ण द्वैपायन व्यास' महाराज ने नन्दबाबा को बताया कि यह बालक सबका मनोरथ पूर्ण करने वाला होगा. प्रथम रोहिणी सुत होने के कारण रोहिणेय द्वितीय सगे सम्बन्धियों और मित्रों को अपने गुणों से आनन्दित करेंगे.
बल्देव जी कृष्ण के बड़े भाई थे, दोनों भाइयों ने छठे वर्ष में प्रवेश करने के साथ ही समाज सेवा एवं दैत्य संहार का कार्य प्रारम्भ किया दिया था. उन्होंने श्रीकृष्ण के साथ मिलकर मथुरा के राजा कंस का वध किया. 
एक दिन किसी बात को लेकर दाऊजी महाराज जी कृष्ण से रुष्ट हो गये. इस बात को लेकर दाऊजी महाराज ने कालिन्दी की धारा को अपने हल की नोंक से विपरीत दिशा में मोड़ दिया. जिसका प्रमाण आज भी ब्रज में मौजूद है. ठाकुर श्री दाऊजी महाराज मल्ल विद्या के गुरु थे. साथ ही हल-मूसल होने के साथ वे 'कृषक देव' भी थे. आज भी किसान अपने कृषि कार्य प्रारम्भ करने से पहले दाऊजी महाराज को नमन करते हैं.
पौराणिक आख्यान ब्रज के राजा पालक और संरक्षक कहे जाते हैं. भगवान श्रीकृष्ण के अग्रज बलराम पुराणों के अनुसार बलराम जी के रूप में शेषनाग के शेषयायी विष्णु भगवान के निर्देश पर अवतार लिया था. शेषनाग के जन्म की भी कथा है. कद्रू क गर्भ से कश्यप के पुत्र के रूप में शेषनाग का जन्म हुआ. भगवान विष्णु की आज्ञा से शेषनाग ने भूमण्डल को अपने सिर पर धारण कर लिया और सबसे नीचे के लोक में स्थित हो गये. तब अतिबल चाक्षप मनु पृथ्वी के सम्राट हुए. मनु ने यज्ञ किया और यज्ञ कुण्ड से ज्योतिस्मती नामक कन्या उत्पन्न हुई. 
नागराज शेषनाग ने अपनी पत्नी 'नागलक्ष्मी' को आदेश दिया कि तुम मनु की कन्या के रूप में यज्ञ कुण्ड से उत्पन्न होना. एक दिन मनु ने स्नेह वश पुत्री से पूछा तुम कैसा वर चाहती हो  कन्या ने कहा कि जो सबसे अधिक बलवान हो, वही मेरा स्वामी हो. राजा ने सभी देवों को बुलाकर उनकी शक्ति को जाना तो उन्होंने भगवान संकर्षण को श्रेष्ठ बलवान बताते हुए उनके गुणों का बखान किया. संकर्षण को प्राप्त करने के लिए ज्योतिस्मती ने लाखों वर्षों तक विन्ध्याचल पर्वत पर तप किया. सबने अपने-अपने बल की प्रशंसा की लेकिन ज्योतिस्मती ने भगवान संकर्षण का स्मरण कर क्रोधित कर शनि को पंगु, शुक्र को काना, बृहस्पति को स्त्रीभाव, बुध को निष्फल, मंगल को वानरमुखी, चन्द्रमा को राज्य यक्ष्मा रोगी, सूर्य को दन्तविहीन, वरुण को जलन्धर रोग, यमराज को मानभंग का श्राप दे दिया.
 इन्द्र का श्राप ज्योतिषाल हो गया. तब ब्रह्मा जी की दृष्टि उस तेजस्विनी पर पड़ी, उन्होंने भगवान संकर्षण को प्राप्त करने का वरदान दिया, लेकिन तब तक 27 चतुर्युगी बीत गये. दाऊजी मन्दिर, बलदेव अवतार तब ज्योतिस्मती आनर्त देश के राजा रैवत कन्या रेवती की देह में विलीन हो गई. 
जब दैत्य सेनाओं ने राजाओं के रूप में उत्पन्न होकर पृथ्वी को भयानक भार से दबा दिया, तब पृथ्वी ने गौ का रूप धारण कर ब्रह्मा जी की शरण ली. देव श्रेष्ठ ब्रह्माजी ने शंकरजी को विरजा नदी के तट पर 'भगवान संकर्षण' के दर्शन किये. देवताओं ने उन्हें पृथ्वी के भार वृत्तांत सुनाया तब शेषशोभी भगवान शेषनाग से कहने लगे, तुम पहले रोहिणी के उदर से प्रकट हो, मैं देवकी के पुत्र के रूप में अभिभूर्त होऊँगा. इस प्रकार मल्ल विद्या के गुरु कृष्णाग्रज बलरामजी ने भाद्रपद मास षष्ठी तिथि बुधवार के दिन मध्याह्न के समय तुला लग्न में पाँच ग्रह उच्च के थे, रोहिणी आनन्द और सुख से तृत्प किया.
भगवान वासुदेव के ब्यूह या स्वरूप हैं. उनका कृष्ण के अग्रज और शेष का अवतार होना ब्राह्मण धर्म को अभिमत है.  
बलराम या संकर्षण का पूजन बहुत पहले से चला आ रहा था, पर इनकी सर्वप्राचीन मूर्तियाँ मथुरा और ग्वालियर के क्षेत्र से प्राप्त हुई हैं. ये शुंगकालीन हैं. 
कुषाणकालीन बलराम की मूर्तियों में कुछ व्यूह मूर्तियाँ अर्थात् विष्णु के समान चतुर्भुज प्रतिमाए हैं और कुछ उनके शेष से संबंधित होने की पृष्ठभूमि पर बनाई गई हैं. ऐसी मूर्तियों में वे द्विभुज हैं और उनका मस्तक मंगलचिह्नों से शोभित सर्पफणों से अलंकृत है. 
बलराम का दाहिना हाथ अभयमुद्रा में उठा हुआ है और बाएँ में मदिरा का चषक है. बहुधा मूर्तियों के पीछे की ओर सर्प का आभोग दिखलाया गया है. कुषाण काल के मध्य में ही व्यूहमूर्तियों का और अवतारमूर्तियों का भेद समाप्तप्राय हो गया था, परिणामत: बलराम की ऐसी मूर्तियाँ भी बनने लगीं जिनमें नागफणाओं के साथ ही उन्हें हल मूसल से युक्त दिखलाया जाने लगा. गुप्तकाल में बलराम की मूर्तियों में विशेष परिवर्तन नहीं हुआ. उनके द्विभुज और चतुर्भुज दोनों रूप चलते थे. कभी-कभी उनका एक ही कुंडल पहने रहना "बृहत्संहिता" से अनुमोदित था. स्वतंत्र रूप के अतिरिक्त बलराम तीर्थंकर नेमिनाथ के साथ, देवी एकानंशा के साथ, कभी दशावतारों की पंक्ति में दिखलाई पड़ते हैं.
कुषाण और गुप्तकाल की कुछ मूर्तियों में बलराम को सिंहशीर्ष से युक्त हल पकड़े हुए अथवा सिंहकुंडल पहिने हुए दिखलाया गया है. इनका सिंह से संबंध कदाचित् जैन परंपरा पर आधारित है.
मध्यकाल में पहुँचते-पहुँचते ब्रज क्षेत्र के अतिरिक्त - जहाँ कुषाणकालीन मदिरा पीने वाले द्विभुज बलराम मूर्तियों की परंपरा ही चलती रही - बलराम की प्रतिमा का स्वरूप बहुत कुछ स्थिर हो गया. हल, मूसल तथा मद्यपात्र धारण करनेवाले सर्पफणाओं से सुशोभित बलदेव बहुधा समपद स्थिति में अथवा कभी एक घुटने को किंचित झुकाकर खड़े दिखलाई पड़ते हैं. कभी-कभी रेवती भी साथ में रहती हैं.
जन्म
बलराम का जन्म यदूकुल में हुआ. कंस ने अपनी प्रिय बहन देवकी का विवाह यदुवंशी वसुदेव से विधिपुर्वक कराया.
जब कंस अपनी बहन को रथ में बिठा कर वसुदेव के घर ले जा रहा था तभी आकाशवाणी हुई और उसे पता चला कि उसकी बहन का आठवाँ संतान ही उसे मारेगा.
कंस ने अपनी बहन को कारागार  में बंद कर दिया और क्रमश: 6 पुत्रों को मार दिया, 7वें पुत्र के रूप में नाग के अवतार बलराम जी थे जिसे श्री हरि ने योगमाया से रोहिणी के गर्भ में स्थापित कर दिया.
आठवें गर्भ में कृष्ण थे.
परिचय
बलभद्र या बलराम श्री कृष्ण के सौतेले बड़े भाई थे जो रोहिणी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे. बलराम, हलधर, हलायुध, संकर्षण आदि इनके अनेक नाम हैं. बलभद्र के सगे सात भाई और एक बहन सुभद्रा थी जिन्हें चित्रा भी कहते हैं. इनका ब्याह रेवत की कन्या रेवती से हुआ था. कहते हैं, रेवती 21 हाथ लंबी थीं और बलभद्र जी ने अपने हल से खींचकर इन्हें छोटी किया था.
इन्हें नागराज अनंत का अंश कहा जाता है और इनके पराक्रम की अनेक कथाएँ पुराणों में वर्णित हैं. ये गदायुद्ध में विशेष प्रवीण थे. दुर्योधन इनका ही शिष्य था. इसी से कई बार इन्होंने जरासंध को पराजित किया था. श्रीकृष्ण के पुत्र शांब जब दुर्योधन की कन्या लक्ष्मणा का हरण करते समय कौरव सेना द्वारा बंदी कर लिए गए तो बलभद्र ने ही उन्हें दुड़ाया था. स्यमंतक मणि लाने के समय भी ये श्रीकृष्ण के साथ गए थे. मृत्यु के समय इनके मुँह से एक बड़ा साँप निकला और प्रभास के समुद्र में प्रवेश कर गया था.
बलराम जंयती का महत्व
बलराम जंयती का पर्व भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन मनाया जाता है. शास्त्रों के अनुसार द्वापर युग में शेषनाग ने भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में जन्म लिया था. बलराम का अस्त्र हल है इसलिए बलराम को हलधर भी कहा जाता है. इसके अलावा बलराम ने मूसल को भी धारण किया है. बलराम जंयती के अन्य नाम भी है. इस जंयती को हलषष्ठी और हरछठ भी कहा जाता है. बलराम जंयती के दिन धरती से पैदा होने वाले अन्न को ग्रहण किया जाता है. इस जयंती को दूध और दही का सेवन नहीं किया जाता. यह दिन संतान संबंधी परेशानियों के लिए भी उत्तम माना जाता है. जिन महिलाओं को संतान की प्राप्ति नहीं होती वह इस व्रत को पूरे विधि विधान से करती हैं. संतान संबंधी परेशानियों के निवारण के लिए बलराम जंयती काफी शुभ मानी जाती है.
बलराम कौन थे
पुराणों के अनुसार बलराम को भगवान श्री कृष्म का बड़ा भाई माना जाता है. बलराम शेषनाग के ही अवतार थे. बलराम को अत्याधिक शक्तिशाली भी माना जाता था. बलराम ने ही दुर्योधन और भीम को गदा युद्ध सीखाया था. बलराम भी श्री कृष्ण की तरह ही देवकी की संतान थे. बलराम देवकी की संतान थे. कंस देवकी के सभी बच्चों की हत्या कर देता था. देवकी और वासुदेव के तप के बल पर यह सांतवा गर्भ वासुदेव की पहली पत्नी के गर्भ में स्थापित हो गया. लेकिन वासुदेव की पहली पत्नी के आगे यह समस्या थी कि वह इस बच्चे को कैसे पाले. क्योंकि उस समय वासुदेव कंस की करागार में बंद थे. इसलिए बलराम के जन्म लेते ही उन्हें नंद बाबा के यहां पलने के लिए भेज दिया.
बलराम जंयती पूजा विधि
1.बलराम जंयती के दिन महिलाओं को महूआ की दातुन से दांत साफ करने चाहिए.
2.इस दिन पूरे घर को भैंस गोबर से लिपा जाता है.
3.बलराम जंयती के दिन भगवान गणेश और माता गौरा कि पूजा की जाती है.
4.बलराम जंयती पर महिलाएं तालाब के किनारे या घर में ही तालाब बनाकर, उसमें झरबेरी, पलाश और कांसी के पेड़ लगाती हैं.
5.अतं मे महिलाएं बलराम जंयती की कथा सुनती हैं.
बलराम की कथा 
पौराणिक कथा के अनुसार एक गांव एक ग्वालिन स्त्री गर्भवती थी. उसके प्रसव में कुछ समय ही बाकी था. लेकिन वह अपनी स्थिति की परवाह न करते हुए भी दूध दही को बेचने के लिए निकल पड़ी.
घर से कुछ दूर जाने पर पर ही उसे प्रसव पीड़ा शुरु हो गई और उसने झरबेरी की ओट में एक बच्चे को जन्म दे दिया. उसी दिन हल षष्ठी भी थी. वह ग्वालिन थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर से अपने काम पर चली गई. इससे हल षष्ठी का व्रत करने वाले लोगो का व्रत खंडित हो गया.
ग्वालिन की इस गलती के कारण झरबेरी के नीचे लेटे उसके बच्चे को किसान का हल लग गया. किसान ने जब उस बच्चे का रोना सुना तो वह अत्यंत ही दुखी हुआ और बच्चे को झरबेरी के कांटों से टांके लगाकर भाग गया.जब ग्वालिन वापस लौटी तो उसे अपने बच्चे मृत पाया .
अपने बच्चे को देखकर अपना किया हुआ पाप याद आया. उसने तुरंत ही लोगों को जाकर पूरी बात बताई और अपने बच्चे की दशा के बारे में भी बताया. उसके इस प्रकार से क्षमा मांगने पर सभी गांव वालों ने उसे क्षमा कर दिया. जब ग्वालिन वापस उसी स्थान पर आई तो उसका बच्चा जिंदा था और वह खेल रहा था.

Koti Devi Devta 

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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