उत्तराखंड के जोशीमठ में इसी साल जनवरी में जमीन धंसने का मामला सामने आया था. इसके बाद उत्तराखंड सरकार समेत केंद्र सरकार ने मामले को गंभीरता से लिया. केंद्र और राज्य सरकार की कई एजेंसियों के वैज्ञानिक इस खोज में लगे कि आखिर जोशीमठ में जमीन का धंसाव क्यों हो रहा है?
हालांकि स्थानीय लोगों और पर्यावरणविदों का कहना था कि उत्तराखंड में चल रही परियोजनाओं के कारण जमीन धंस रही है. अब इस मामले में ताजा जानकारी सामने आई है. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने जोशीमठ भूस्खलन पर 8 केंद्रीय वैज्ञानिक और तकनीकी संस्थानों की ओर से तैयार रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करने के राज्य सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है.
जनता के लिए महत्वपूर्ण है ये जानकारी
टीओआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने एक आदेश में कहा, हमें कोई कारण नहीं दिखता कि राज्य की ओर से जोशीमठ में जमीन धंसाव को लेकर तैयार की गई रिपोर्ट का जनता के सामने इसका खुलासा नहीं कर सकते हैं. अदालत ने कहा कि वास्तव में रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से जनता को महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी. जनता को उन पर विश्वास होगा कि राज्य स्थिति से निपटने के लिए गंभीर है.
कोर्ट ने मुख्य सचिव को दी ये राहत
रिपोर्ट में कहा गया है कि न्यायाधीश 22 सितंबर यानी आज मामले में मुख्य सचिव की व्यक्तिगत उपस्थिति पर राज्य सरकार की ओर से दायर एक रिकॉल आवेदन पर सुनवाई कर रहे थे. उन्होंने रिपोर्ट्स के संबंध में संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए मुख्य सचिव को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट की अनुमति दी है. बताया गया है कि सुनवाई के दौरान कोर्ट में जांच रिपोर्ट्स की प्रतियां राज्य सरकार की ओर से एक सीलबंद लिफाफे में रखी गई थीं.
आठों संस्थानों ने एनडीएमए को सौंपी थी अपनी रिपोर्टॉ
याचिकाकर्ता की वकील स्निग्धा तिवारी ने मीडिया को बताया कि अदालत ने इस मामले में पहले कभी कोई आदेश पारित नहीं किया है, जिसमें उसने राज्य को किसी भी विशेषज्ञ या संस्थान की रिपोर्ट सीलबंद कवर में लाने का निर्देश दिया हो. उन्होंने बताया कि इस साल जनवरी में जोशीमठ के आसपास के क्षेत्र में जमीन धंसने के कारणों का पता लगाने के लिए 8 केंद्रीय तकनीकी और वैज्ञानिक संस्थान लगे हुए थे. उन्होंने जनवरी के अंत में अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) को सौंप दी थी.
इन संस्थानों ने की थी जांच
संस्थानों में सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई), जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई), वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनजीआरआई), सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी और आईआईटी रुड़की शामिल हैं.
भूवैज्ञानिक जांच के दौरान जीएसआई ने जोशीमठ में 81 जमीनी दरारों की पहचान की और उनका मानचित्रण किया. इनमें से 42 दरारें 2 जनवरी 2023 को रिपोर्ट की गई, जबकि बाकी 39 पुरानी थीं. जीएसआई ने यह भी देखा कि ढीली संरचना की मोटाई लगभग 40 मीटर से लेकर 100 मीटर से अधिक तक थी.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-उत्तराखंड-हिमाचल में चार जगह बादल फटने से हुई भारी तबाही, मां वैष्णो देवी में भूस्खलन
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