रांची. झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य विधानसभा में अवैध नियुक्तियों की जांच के लिए गठित जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद कमीशन की रिपोर्ट अदालत में पेश न किए जाने पर सख्त नाराजगी जताई है. चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा और जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ ने कहा कि कोर्ट के तीन बार के आदेश के बाद भी रिपोर्ट पेश नहीं किया जाना कानूनी प्रक्रिया में व्यवधान का मामला बनता है.
अदालत ने सात दिनों के अंदर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश देते हुए कहा कि ऐसा न होने पर विधानसभा के सचिव पर आपराधिक अवमानना की कार्यवाही शुरू की जाएगी. मामले की अगली सुनवाई के लिए कोर्ट ने 12 अक्टूबर की तारीख मुकर्रर की है.
बता दें कि झारखंड विधानसभा में 150 से भी अधिक अवैध नियुक्तियों की जांच होने के बाद भी कार्रवाई न होने पर शिव शंकर शर्मा ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी. याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2005 से 2007 के बीच विधानसभा में हुई नियुक्तियों में भारी गड़बड़ी हुई है. इस मामले की जांच के लिए जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद कमीशन (वन मेंबर कमीशन) बना था.
कमीशन ने जांच कर वर्ष 2018 में राज्यपाल को रिपोर्ट भी सौंपी थी, जिसके बाद राज्यपाल ने विधानसभा अध्यक्ष को कार्रवाई करने का निर्देश दिया था, लेकिन अभी तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है. इस कमीशन की रिपोर्ट को जांचने के लिए एक दूसरा कमीशन बना दिया गया है.
बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान प्रार्थी के अधिवक्ता राजीव कुमार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि राज्यपाल के निर्देश के बावजूद विधानसभा अध्यक्ष द्वारा इस मामले में कार्रवाई लगातार लटकायी जा रही है. लगातार विलंब होता रहा तो अवैध तरीके से नियुक्त हुए अफसर और कर्मी रिटायर हो जाएंगे.
इस मामले में विगत सुनवाई के दौरान विधानसभा सचिव की ओर से स्टेटस रिपोर्ट दाखिल की गई थी. इसमें बताया गया था कि जस्टिस एसजे मुखोपाध्याय की अध्यक्षता वाला वन मेंबर कमीशन अभी जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद कमीशन की रिपोर्ट की स्टडी कर रहा है.
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