प्रदीप द्विवेदी. मोदी-शाह ने बोनसाई पॉलिटिक्स के तहत भाजपा मूल के कई प्रमुख नेताओं को सियासी संन्यास आश्रम में भेज दिया है, अब कुछ बचे हैं, वे भी संभवतया विधानसभा चुनाव के बाद भेज दिए जाएंगे?
बोनसाई पॉलिटिक्स के अगले सियासी शिकार सीएम शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे होंगे?
सियासी सयानों की मानें, तो इसकी पूरी तैयारी हो चुकी है, मोदी-शाह अपनी पसंद के हारे हुए उम्मीदवारों को भी मंत्री-मुख्यमंत्री बना सकते हैं, लेकिन अपने ही प्रदेश में सर्वाधिक लोकप्रिय- शिवराज, वसुंधरा को सीएम फेस नहीं बनाएंगे, काहे?
क्योंकि..... उन्हें अपने सियासी कद की बराबरी करनेवाला कोई नेता नहीं चाहिए!
देश के प्रमुख पत्रकार शकील अख्तर Shakeel Akhtar @shakeelNBT ने इसी पर लिखा है....
अच्छे दिन किसके लिए हैं? यह तो पता नहीं, मगर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के लिए तो बिल्कुल नहीं हैं!
सक्रिय राजनीति में अब केवल चार ही बचे हैं और चारों के लिए सम्मानजनक एक्जिट भी मुश्किल दिख रहा है?
राजस्थान में वसुंधरा को खत्म कर दिया है, MP में शिवराज को चुनाव की घोषणा के समय गंगा तट पर बैठा हुआ देखा गया!
दोनों अपने-अपने राज्यों में अभी भी भाजपा के सबसे लोकप्रिय नेता हैं, मगर लगता है दोनों की विदाई की तैयारी हो गई और वह भी सम्मानजनक तरीके से होने की कोई संभावना नहीं है?
केंद्र में राजनाथ सिंह सबसे वरिष्ठ नेता हैं, मगर प्रभावहीन! 2014 में जब भाजपा जीती थी और मोदी प्रधानमंत्री बने थे तो राजनाथ सिंह ही पार्टी अध्यक्ष और सबसे बड़े नेताओं में शामिल थे, थे तो आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी भी, मगर उन्हें तो उसी टाइम निपटा दिया गया था, राजनाथ ने अपनी सहनशीलता से इतना समय निकाल लिया.
मगर लगता है अब समय खत्म हो रहा है और यह उनकी आखिरी पारी है?
राजनाथ से पहले अध्यक्ष रहे गडकरी जाहिर हैं वरिष्ठ तो है मगर चारों में सबसे कम उम्र भी, चारों में सबसे ज्यादा अपना एक अलग प्रभा मंडल बनाकर रखने वाले नेता, महाराष्ट्रीय और नागपुरी होने से आरएसएस में भी मजबूत जड़ें, मोदी और शाह के लिए लिए सबसे मुश्किल विकेट?
मगर दोनों सिर्फ बाउंसर ही नहीं, बीमर डालने पर भी यकीन रखते हैं, इसलिए विकेट बचाना मुश्किल?
इन चारों के बाद भाजपा में कोई नेता नहीं बचेगा!
जबकि वाजपेयी और आडवाणी का समय व्यक्तित्व वाले नेताओं के लिए ही जाना जाता था, जसवंत सिंह, यशवंत सिन्हा, शौरी, प्रमोद महाजन, गोपीनाथ मुंडे, बृजेश मिश्रा, शत्रुघ्न सिन्हा, जेटली, सुषमा स्वराज कहां तक लिखेंगे?
नेताओं की खान थी, एक से बढ़कर एक, सबका सम्मान था और सबको योग्यता अनुसार काम!
मगर यह नया प्रयोग हुआ और अब भाजपा में सिर्फ दो ही नेता हैं?
अब आने वाले चुनाव ही बताएंगे कि भाजपा का यह प्रयोग सफल रहता है या नहीं!
Pradeep Laxminarayan Dwivedi @Pradeep80032145
काश! मूल भाजपाई नेताओं ने- किसान और लकड़ी का गट्ठर, कहानी पढ़ी होती?
जब बीजेपी के सबसे बड़े नेता आडवाणी, स्टार प्रचारक रहे शत्रुघ्न सिन्हा आदि पीएम मोदी की 'बोनसाई पॉलिटिक्स' का शिकार हो रहे थे, तब शिवराज, वसुंधरा ने उनका साथ दिया था?
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