आग्नेय से लेकर नैर्ऋत्य तक दक्षिण दिशा होती है.
दक्षिण दिशा के द्वार हैं:- अनिल , पूषा, वितथ, गृहत्क्षत , यम , गन्धर्व , भृंगराज और मृग.
सुविधा की दृष्टि से आधुनिक विद्वानों ने इन्हें S1, S2,S3,S4,S5,S6,S7,S8 नाम दे दिया है.
इस दिशा में SE का एक द्वार (अनिल ) SSE के दोनों द्वार ( पूषा व् वितथ ) SOUTH के दोनों द्वार ( गृहत्क्षत व् यम) , SSW के दोनों द्वार ( गन्धर्व व् भृंगराज ) तथा SW का एक द्वार(मृग) आता है.
इस दिशा में गृहत्क्षत (S4) व् विथत (S3) द्वार उचित व् श्रेष्ठ हैं. पूषा (S2) का द्वार नौकरी वालों के लिए उचित है.
भगवान् विश्वकर्मा के अनुसार,
यदि दक्षिण दिशा के प्रारम्भ स्थान जहाँ पर अनिल का पद होता है , वहां पर द्वार बनाया जाए तो उसका फल अल्पपुत्रता बताया गया है.
(S1)
यदि पूषा के स्थान में द्वार बने तो उसका फल शूद्रकर्म,दासत्व बताया गया है.
(S2)
वितथ के पद में किया गया द्वार नीचता की वृद्धि करता है परन्तु संतति बढती है.
(S3)
गृहत्क्षत के स्थान पर द्वार होने का फल भोजन, पान और पुत्रों की वृद्धि बताया गया है.
(S4)
यम के पद में द्वार बनने का फल रौद्रता है.
(S5)
गन्धर्व के पद में द्वार बना द्वार कृतघन्ता देता है.
(S6)
भृंगराज के स्थान में निर्मित द्वार से निर्धनता आती है.
(S7)
मृग के पद में बना पुत्र विनाशक/ पुत्र बल का नाश होता है. (S8)
मृग के पद में बने द्वार से पुत्र विनाशक/ पुत्र बल का नाश होता है.
Astro nirmal
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-वास्तु शास्त्र के अनुसार एक आदर्श फैक्ट्री के लिए दिशा निर्देश
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