लुप्त होती एक भाषा
सुनीता जोशी
कपकोट, उत्तराखंड
जरा तो दो तुम ध्यान,
रखो एक भाषा का मान,
क्यों छोड़ा तुमने इस्तेमाल करना,
सब करते है इस भाषा का अपमान,
बाक़ी भाषाओं की तरह महत्व दो इसको,
क्यों भूलते हो अपनी इस भाषा को?
यह भाषा है जो याद दिलाती संस्कृति की,
जब पहुंचते हो शहरों को,
छोड़ देते हो कुमाऊनी बोलना,
हिचकिचाते हो अपनी ही भाषा बोलने में,
लेकिन बुरा नहीं लगता किसी को,
अपनी ही भाषा को भुलाने में,
अभी भी है हमको एक आशा,
चाहो तो वापस आ सकती है,
अपनी लुप्त हुई कुमाऊनी भाषा
एक लड़की का सपना
तानिया
चोरसौ, उत्तराखंड
मिली जो एक संस्था से,
एक दिशा मिली जीवन में,
देख पाई फिर से मैं,
अपने सपने नई उम्मीद के,
था कविता लिखने का शौंक मुझे,
पर न जाने रह गई क्यों पन्नों में,
छिपकर वो लिखने के शौक मेरे,
मिली है फिर एक नई उम्मीद मुझे,
अपने सपनों को पूरा करने का,
अपने नाम से गांव का नाम रौशन करने का,
जिसे करके दिखाना है मुझे, कुछ बताना है मुझे,
लड़की भी हो सकती है अपने पैरों पर खड़ी,
अपने मां बाप का सहारा वह भी बन सकती,
कुछ बनकर समाज को देना है सब जवाब,
चरखा से मिला है आगे बढ़ने का रास्ता,
अब रुकना नहीं है किसी के डर से,
बनानी है हर लड़की को खुद में एक पहचान,
हासिल करनी है हर मंज़िल और मुकाम..
चरखा फीचर
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-दो कविताएं: पुकार / तोड़ दूंगी ज़ंजीरें
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