पीताम्बरा नवार्ण मंत्र के कुछ सिध्ध प्रयोग

पीताम्बरा नवार्ण मंत्र के कुछ सिध्ध प्रयोग

प्रेषित समय :21:33:50 PM / Sat, Feb 10th, 2024
Reporter : reporternamegoeshere
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पीताम्बरा बगलामुखी देवी, कलियुग में एक महत्वपूर्ण महाशक्ति है. तांत्रिक कार्य के उपरांत, मोहन, उच्चाटन, विद्वेशण आदि षट्कर्म की सिध्धि दाता के रूप में प्रसिद्ध है.
*बगलामाँ* का मूल मंत्र जो 36 अक्षरों का है, बहुत जलद और कष्टसाध्य होने के कारण, हमारी *गुरुपरंपरा* में सामान्य साधकों को नहीं दिया जाता है. *पीताम्बरा नवार्ण मंत्र* ज्यादा उपयुक और गृहस्थ साधकों के लिए सरल और सिध्धि दाता है.
बगला नवार्ण मंत्र :-
*ह्लीम् श्रीम् पीताम्बरायै नमः*
१) क्रूर से क्रूर ग्रह-शान्ति में, शमी-वृक्ष की लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े कर, गूलर-पाकर-पीपर-बरगद की समिधा के साथ ‘गायत्री-मन्त्र से १०८ आहुतियाँ देने से शान्ति मिलती है.
२) महान प्राण-संकट में कण्ठ-भर या जाँघ-भर जल में खड़े होकर नित्य १०८ बार गायत्री मन्त्र जपने से प्राण-रक्षा होती है.
३) घर के आँगन में चतुस्र यन्त्र बनाकर १ हजार बार गायत्री मन्त्र का जप कर यन्त्र के बीचो-बीच भूमि में शूल गाड़ने से भूत-पिशाच से रक्षा होती है.
४) शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे गायत्री मन्त्र जपने से सभी प्रकार की ग्रह-बाधा से रक्षा होती है.
५) ‘गुरुचि’ के छोटे-छोटे टुकड़े कर गो-दुग्ध में डुबोकर नित्य १०८ बार गायत्री मन्त्र पढ़कर हवन करने से ‘मृत्यु-योग’ का निवारण होता है. यह मृत्युंजय-हवन’ है.
६) आम के पत्तों को गो-दुग्ध में डुबोकर ‘हवन’ करने से सभी प्रकार के ज्वर में लाभ होता है.
७) मीठा वच, गो-दुग्ध में मिलाकर हवन करने से ‘राज-रोग’ नष्ट होता है.
८) शंख-पुष्पी के पुष्पों से हवन करने से कुष्ठ-रोग का निवारण होता है.
९) गूलर की लकड़ी और फल से नित्य १०८ बार हवन करने से ‘उन्माद-रोग’ का निवारण होता है.
१०) ईख के रस में मधु मिलाकर हवन करने से ‘मधुमेह-रोग’ में लाभ होता है.
११) गाय के दही, दूध व घी से हवन करने से ‘बवासीर-रोग’ में लाभ होता है.
१२) बेंत की लकड़ी से हवन करने से विद्युत्पात और राष्ट्र-विप्लव की बाधाएँ दुर होती हैं.
१३) कुछ दिन नित्य १०८ बार गायत्री मन्त्र जपने के बाद जिस तरफ मिट्टी का ढेला फेंका जाएगा, उस तरफ से शत्रु, वायु, अग्नि-दोष दूर हो जाएगा.
१४) दुःखी होकर, आर्त्त भाव से मन्त्र जप कर कुशा पर फूँक मार कर शरीर का स्पर्श करने से सभी प्रकार के रोग, विष, भूत-भय नष्ट हो जाते हैं.
१५) १०८ बार गायत्री मन्त्र का जप कर जल का फूँक लगाने से भूतादि-दोष दूर होता है.
१६) गायत्री जपते हुए फूल का हवन करने से सर्व-सुख-प्राप्ति होती है.
१७) लाल कमल या चमेली फुल एवं शालि चावल से हवन करने से लक्ष्मी-प्राप्ति होती है.
१८) बिल्व -पुष्प, फल, घी, खीर की हवन-सामग्री बनाकर बेल के छोटे-छोटे टुकड़े कर, बिल्व की लकड़ी से हवन करने से भी लक्ष्मी-प्राप्ति होती है.
१९) शमी की लकड़ी में गो-घृत, जौ, गो-दुग्ध मिलाकर १०८ बार एक सप्ताह तक हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है.
२०) दूध-मधु-गाय के घी से ७ दिन तक १०८ बार हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है.
२१) बरगद की समिधा में बरगद की हरी टहनी पर गो-घृत, गो-दुग्ध से बनी खीर रखकर ७ दिन तक १०८ बार हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है.
२२) दिन-रात उपवास करते गुए गायत्री मन्त्र जप से यम पाश से मुक्ति मिलती है.
२३) मदार की लकड़ी में मदार का कोमल पत्र व गो-घृत मिलाकर हवन करने से विजय-प्राप्ति होती है.
२४) अपामार्ग, गाय का घी मिलाकर हवन करने से दमा रोग का निवारण होता है.
विशेषः- प्रयोग करने से पहले पांच दिन नित्य १००८ बार गायत्री मन्त्र का जप व 108 मंत्र का हवन करना चाहिए.
 जहां मंत्र लिखा है वहां... *बगलानवार्ण मंत्र* और गायत्री मंत्र का मतलब *बगलागायत्री मंत्र* अभिप्रेत है.
Astro nirmal

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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