- गिरीश बिल्लोरे"मुकुल"
//चतुष्पदियां//
फ़ागुन के गुन प्रेमी जाने,
बेसुध तन अरु मन बौराना।
या जोगी पहचाने फ़ागुन,
गोपिन संग दिखते कान्हा।।
रात गये नजदीक जुनहैया,
दूर प्रिया इत मन अकुलाए।
प्रिय की आहट पाके जोगी,
भक्तिन मद में, नाचत गाए।।
प्रेम रसीला भक्ति अमिय सी,
लख टेसू न फ़ूला समाना।
डाल झुकीं तरुणी के तन सी,
आम का बाग गया बौराना ।।
जीवन के दो पंथ निराले,
हरि भक्ति,अरु प्रिय को पाना ।
दौनों ही मस्ती के पथ हैं,
नित हो इनपर आना जाना..!!
अंत जो सबका लिखा उसने,
कब है जाना, विधि ने जाना।
हेरि सखी अब काशी जै हों-
खेलन होरी जाय मसाना ।।
जीवन में माया गनिका है
कब भटकाए कौनों जाना ?
असली फागुन आवेगा जब
ताना-बाना तोड़ न पाना।।
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