नई दिल्ली. जल जीवन के लिए बेहद आवश्यक है, और इसका प्रबंधन अमन या संघर्ष का निर्धारण कर सकता है, जैसा कि विश्व जल दिवस के मौके पर जारी संयुक्त ने अपनी नई रिपोर्ट वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2024 में बताया है.
रिपोर्ट इस बात पर भी जोर देती है कि एक तरफ इस अमूल्य संसाधन का सतत और निष्पक्ष प्रबंधन शांति और समृद्धि को बढ़ावा दे सकता है. वहीं दूसरी ओर गहराते जलवायु संकट की वजह से जल संसाधनों पर बढ़ता दबाव संघर्ष की वजह बन सकता है. इस रिपोर्ट का शीर्षक भी जल प्रबंधन, समृद्धि और शांति के बीच के इस महत्वपूर्ण संबंध को उजागर करता है.
रिपोर्ट बुनियादी मानवीय जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ स्वास्थ्य, जीविका, आर्थिक विकास, खाद्य, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण का समर्थन करके समृद्धि को बढ़ावा देने में पानी की भूमिका पर प्रकाश डालती है.
ऐसे में रिपोर्ट के मुताबिक सबकी समृद्धि और शांति की गारंटी के लिए एक सुरक्षित और निष्पक्ष जल भविष्य का विकास और उसे कायम रखना आवश्यक है. हालांकि इसके विपरीत, गरीबी, असमानता और विभिन्न प्रकार के संघर्ष जल असुरक्षा को बढ़ा सकते हैं, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा है.
पानी के लिए सतत विकास के छठे लक्ष्य (एसडीजी 6) और गरीबी, भूख, स्वास्थ्य, शिक्षा, ऊर्जा और जलवायु जैसे अन्य एसडीजी के बीच संबंध पूरी तरह से स्पष्ट हैं. हालांकि जल और शांति (एसडीजी 16) और सम्माननीय कार्य/आर्थिक विकास (एसडीजी 8) के बीच संबंधों में अस्पष्टता बनी हुई है.
संयुक्त राष्ट्र वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट (यूएन डब्ल्यूडब्ल्यूडीआर) का यह नवीनतम संस्करण इसका विस्तृत विश्लेषण प्रदान करते हुए इन जटिल और कभी-कभी अप्रत्यक्ष संबंधों की गहराई से पड़ताल करता है.
पानी को लेकर बढ़ता तनाव
रिपोर्ट दुनिया में आज पानी की स्थिति को लेकर बेहद चिंताजनक आंकड़े पेश करती है. यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे पानी तक पहुंच को लेकर विवाद आवश्यक संसाधनों की कमी और तनाव को जन्म दे रहा है, जिससे दुनिया भर में संघर्ष बढ़ रहे हैं. मानवता का जल पदचिह्न बढ़ रहा है. ताजे पानी की मांग देखें तो वो सालाना करीब एक फीसदी की दर से बढ़ रही है. इतना ही नहीं आज सबसे कमजोर देशों में, 80 फीसदी जीविका पानी पर निर्भर हैं, जबकि अमीर देशों में यह आंकड़ा 50 फीसदी है. जो पानी पर बढ़ती निर्भरता को दर्शाता है. रिपोर्ट का कहना है कि जहां आज 220 करोड़ लोग स्वच्छ और सुरक्षित तौर पर प्रबंधित पानी की पहुंच से दूर हैं. वहीं 350 करोड़ से ज्यादा लोगों के पास उचित स्वच्छता सुविधाओं का अभाव है.
इसी तरह विश्लेषण में इस तथ्य को भी उजागर किया गया है कि पानी की कमी वैश्विक स्तर पर प्रवासन में 10 फीसदी की वृद्धि से जुड़ी हो सकती है. देखा जाए तो यह विस्थापन अक्सर स्थानीय जल प्रणालियों और संसाधनों पर दबाव डालता है, जिससे प्रवासियों और मेजबान समुदायों के बीच तनाव की स्थिति पैदा हो सकती है.
यूएन-वाटर और कृषि विकास के लिए बनाए अंतर्राष्ट्रीय कोष (आईएफएडी) के अध्यक्ष अल्वारो लारियो ने रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया है कि इस अनिश्चित दुनिया में सुरक्षा को लेकर बढ़ते खतरों के बीच, सभी के लिए यह स्वीकार करना महत्वपूर्ण है कि सतत विकास के छठे लक्ष्य को वैश्विक समृद्धि और शांति के लिए हासिल करना बेहद जरूरी है.
क्या सीमापार सहयोग है कुंजी
वैश्विक स्तर पर 300 करोड़ से ज्यादा लोग सीमाओं के परे बहने वाले जल पर निर्भर हैं. वहीं जनसंख्या वृद्धि, पानी की बढ़ती मांग, पारिस्थितिकी तंत्र को होता नुकसान और जलवायु परिवर्तन के कारण इस जल पर दबाव बढ़ रहा है. रिपोर्ट कहती है कि सीमा पार बहती इन नदियों, झीलों और जलभरों पर सहयोग से कई आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय और राजनीतिक फायदे हो सकते हैं, जो बदले में स्थानीय, राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर समृद्धि और शांति को बढ़ावा देंगे.
हालांकि इसके बावजूद सीमा पार नदियों, झीलों और जलभृतों को साझा करने वाले 153 देशों में से महज 32 के पास 90 फीसदी या अधिक साझा जल को कवर करने के लिए परिचालन व्यवस्था है. अफ्रीका में अन्य महाद्वीपों की तुलना में सीमा पार बेसिनों का प्रतिशत सबसे अधिक है, जो महाद्वीप के करीब 64 फीसदी हिस्से को कवर करता है. इसके बावजूद, अफ्रीका में मैप किए गए 72 ट्रांसबाउंड्री जलभृतों में से केवल सात पर सहयोग समझौतों को औपचारिक रूप दिया है.
पिछले 60 वर्षों में, पश्चिम-मध्य अफ्रीका में स्थित चाड झील का आकार 90 फीसदी घट गया है, जिससे कैमरून, चाड, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, लीबिया, नाइजर और नाइजीरिया जैसे आस-पास के देशों के लिए आर्थिक और सुरक्षा संबंधी चुनौतियां पैदा हो गई हैं.
हालांकि, रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि लेक चाड बेसिन आयोग ने कुशल जल उपयोग को सुनिश्चित करने के प्रयास किए हैं. इन प्रयासों का उद्देश्य स्थानीय विकास का समन्वय और सम्बंधित देशों और स्थानीय समुदायों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों रोकना है.
इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट में एक सकारात्मक उदाहरण के रूप में दक्षिणपूर्वी यूरोप में सावा नदी बेसिन (एफएएसआरबी) पर हुए फ्रेमवर्क समझौते पर भी प्रकाश डाला गया है. इस समझौते पर बोस्निया और हर्जेगोविना, क्रोएशिया, सर्बिया और स्लोवेनिया ने 2002 में हस्ताक्षर किए थे. यह 1990 के दशक में बोस्नियाई युद्ध से अलग हुए क्षेत्र में भू-राजनीतिक समन्वय, संघर्ष प्रबंधन और स्थिरता को बढ़ावा देने के उदाहरण के रूप में कार्य करता है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-दिल्ली के CM अरविंद केजरीवाल गिरफ्तार, शराब नीति मामले में ED की कार्रवाई..!
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