जम्मू. मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी की याद में आगरा में ताजमहल का निर्माण कराया था, जिसे देखने के लिए आज भी दुनिया भर से सैलानी आगरा पहुंचते हैं. ऐसा ही एक दिल को छू लेने वाला काम डोडा में एक रतन नाम के व्यक्ति ने किया है.
उन्होंने अपनी पत्नी कमलेशा देवी की याद में नाले पर एक पुल मात्र छह दिन में तैयार करवा दिया. जबकि सरकार की ओर से 28 साल पहले बनाए गए दो खंभे आज तक आपस में नहीं जुड़ सके. पुल बनने के बाद पूरी पंचायत को इसका लाभ मिलेगा. मामला धंतेली गांव का है, जो डोडा के ब्लॉक खलैनी की पंचायत सर्फी में पड़ता है.
पहाड़ी से घिरा यह इलाका प्राकृतिक सुंदरता से लबरेज है, लेकिन, कई मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. धंतेली गांव में बहता नाला इसकी खूबसूरती को तो बढ़ाता है, लेकिन लोगों को आवाजाही करने में दिक्कतें भी खड़ी करता है.
नाले के किनारों पर पिलर बन गए, आगे नहीं बढ़ा काम
नाले पर जुगाड़ लगाकर एक लकड़ी का पुल है. लेकिन उसे पार करना खतरे से खाली नहीं है. प्रशासन की तरफ से 28 साल पहले नाले पर पुल बनाने का काम शुरू तो हुआ. दोनों तरफ पिलर भी बना दिए गए. लेकिन, इतना लंबा समय बीत जाने के बाद भी उस पर छत नहीं डाली जा सकी. ऐसे में ग्रामीणों जोखिम लेकर ही नाले को पार करना पड़ता है. विद्यार्थियों और रोगियों के लिए समस्या और भी जटिल हो जाती है.
कमलेशा देवी के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच पाए रिश्तेदार
पिछले दिनों 21 मार्च को रतन की पत्नी कमलेशा देवी का हृदय गति रुकने से निधन हो गया. उनके अंतिम संस्कार में कई रिश्तेदार पुल न होने के कारण शामिल नहीं हो पाए. कमलेशा देवी के पति रतन को इस बात का गहरा दुख हुा. सदमे के बीच उन्होंने इसके लिए कुछ करने की ठानी.
छह दिन के भीतर ही पुल बन कर तैयार
रतन ने लोगों के साथ बुलाकर बातचीत की और फैसला लिया कि नाले पर खुद के पैसों से पुल बनाया जाएगा और वो भी तुरंत. फिर क्या था, पैसे इक_े किए गए और काम शुरू कर दिया गया. ग्रामीणों ने बताया कि छह दिन के भीतर ही पुल बन कर तैयार हो चुका है. पुल को अंतिम रूप दिया जा रहा है. ग्रामीणों ने कहा कि पुल को बनाने के लिए पंचायत से अलग-अलग लोगों ने सहयोग किया. बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक पुल बनाने के लिए जोश में दिखे. 80 साल के बुजुर्ग ने भी काम में हाथ बटाया.
नाले को पार करने में अक्सर बना रहता था डर
रतन ने बताया कि उनकी पत्नी कमलेशा देवी जब मायके जाती थीं, तो उसे इस नाले को पार करना पड़ता था. पुल न होने के कारण वह अक्सर डरती रहती थी. इस बात ने उन्हें कई बार परेशान किया. अब वह इस दुनिया में नहीं हैं. इसका दुख है, लेकिन वह चाहते हैं कि अब गांव में किसी और को नाले को पार करने में परेशानी न हो.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-जम्मू-कश्मीर के बांदीपुरा में दम घुटने से धार्मिक शैत्रणिक संस्थान के दो छात्रों की मौत
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