दिल्ली. बिहार सरकार ने आरक्षण कोटा के संबंध में पटना उच्च न्यायालय के हालिया फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके एक महत्वपूर्ण कानूनी कदम उठाया है.
अधिवक्ता मनीष कुमार के जरिए दायर याचिका में बिहार के 2023 के संशोधन अधिनियमों को अमान्य करने के उच्च न्यायालय के फैसले का विरोध किया गया है. जिसका उद्देश्य अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) अन्य के लिए आरक्षण कोटा 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत करना था. ण्पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आर्थिक रूप से पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) इस समायोजन में एससी के लिए 20 प्रतिशतए एसटी के लिए 2 प्रतिशतए ईबीसी के लिए 25 प्रतिशत और ओबीसी के लिए 18 प्रतिशत का आवंटन शामिल था.
इन संशोधनों का उद्देश्य इन हाशिए पर रहने वाले समुदायों को सरकारी नौकरियों व शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ा हुआ आरक्षण प्रदान करना था. बिहार में कुल कोटा 65 प्रतिशत तक लाने के नीतीश कुमार सरकार के फैसले को गौरव कुमार नामक व्यक्ति ने पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. याचिकाकर्ता ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक आरक्षण 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकताण् उच्च न्यायालय ने 20 जून को 87 पन्नों के आदेश में इन संशोधनों को असंवैधानिक घोषित करते हुए कहा कि ये समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन हैं. अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि इंदिरा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थापित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को पार करने का राज्य का निर्णय उचित नहीं था. यह संशोधन बिहार सरकार द्वारा एक जाति सर्वेक्षण के बाद किया गयाए जो केंद्र द्वारा एससी और एसटी से परे एक व्यापक जाति जनगणना करने में असमर्थता व्यक्त करने के बाद शुरू किया गया था.
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