वायव्य में चंद्र का वास माना गया है और साथ ही यहां वायु देवता का वास भी होता है, इसलिये इसके कटने से दोनों के मिले-जुले प्रभावों का सामना करना पड़ता है.
चंद्र मन का कारक होने के कारण इसके कटने से यहां रहने वालों की मानसिक शक्ति क्षीण हो सकती है. चंद्र स्त्री या माता का कारक भी माना जाता है, इसलिये स्त्रियों के मानसिक स्वास्थ्य पर इसका दुष्प्रभाव देखने को मिल सकता है, मानसिक तनाव व गर्भाशय, मासिक धर्म व मूत्राशय सम्बंधित रोग भी हो सकते हैं. वायु प्रधान क्षेत्र होने और इस कोण के कटे होने से वात सम्बन्धित रोग नहीं होते परन्तु कफ वृद्धि हो सकती है, जिसके कारण ये व्यक्ति क्रोधी व आलसी हो सकते हैं.
नैऋत्य कोण पर राहु और केतु दोनो कारक होते और यदि नैऋत्य कोण कट जाए तो उस घर में स्थिरता मान सम्मान और समाज में उस घर का वर्चस्व प्रभावित होगा
और साथ ही उसे घर में वास करने वाले को अन्य भयावह रोग भी बार-बार होता रहेगा या फिर ऐसा कह सकते हैं कि एक जाएगा एक आएगा.
एक बात समझने योग्य यह कोई कोण बड़ा हो या घटा उसकी स्थिति और उसी तरह से अधिकता और न्यूनता होता है यह जनरल सा नियाम है
यदि नैऋत्य कोण काटा हो तो वित्तीय घाटा स्वास्थ्य समस्या अस्थिरता, अत्यधिक प्रयास पर भी प्रयासों के लिए समाज से मान्यता नहीं मिल सकता नकारात्मक ऊर्जा और विचार आप पर हावी हो सकते हैं. आपको हृदय रोग हो सकता है या आपके शरीर का निचला हिस्सा प्रभावित हो सकता है,
और यदि उधर का कोण बढ़ा हुआ हो तो परिवार में असमय मौत की भय, दादा से परेशानी, मन में अहंकार की भावना की उत्पत्ति, त्वचा रोग, कुष्ठ रोग, मस्तिष्क रोग आदि की सम्भावनाएं मन में प्रबलता से पनपत्ति रहती हैं आदि आदि.
मैं जो कुछ कह रहा हूं, उसपर कुछ लोग कहेंगे कि आप ग्रहों की बात कर रहे हैं, वास्तु से अलग हट कर बात कर रहे हैं, परन्तु हमको यह तो सिद्ध करना होगा न कि ईशान कटा होने पर परिवार में इतनी मुसीबतों का पहाड़ आखिर क्यों टूटता है ? उसका लॉजिकल कारण यह है कि ईशान कोण में छेद रह जाने के कारण ईश या देव गुरू बृहस्पति, जिनको प्रार्थना या भक्ति का स्वामी माना जाता है, भूखंड के बाहर रह जाते हैं, जिसके फलस्वरूप बृहस्पति की वस्तुओं की कमी हो जाती है. ऐसे भूखंड के चित्रानुसार 4 के बजाय 6 कोण बन जाते हैं, जिसको निषिद्ध माना गया है.
चूंकि ईशान में ईश्वर का वास होता है, हमारे वास्तु संरक्षक वास्तु पुरुष का शीर्ष भी यहीं पर है, तो जब ईश्वर एवं वास्तु पुरुष का शीर्ष ही नहीं रहा, वहां उपस्थित देवता गण ही भूखंड के बाहर रह गये तो जाहिर है कि वहां के रहवासियों को सुख, शांति, ऐश्वर्य और वैभव आदि की प्राप्ति नहीं हो पायेगी. अत: ऐसे मकान में कष्टों से बचाव एवं शुभ फलों की आशा कैसे की जा सकती है.
Astro nirmal
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