हलषष्ठी व्रत की पूजा दोपहर के समय किया जाता है. इस तरह से कुछ लोग हलषष्ठी व्रत 24 तो कुछ 25 अगस्त को मना रहे हैं. हल षष्ठी व्रत का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे रखने से व्रती महिलाओं के संतान की सुरक्षा और दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस व्रत को करने से संतान को रोग, भय और अनिष्ट से मुक्ति मिलती है.
भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी बलराम जन्मोत्सव के रूप में देशभर में मनायी जाती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार मान्यता है कि इस दिन भगवान शेषनाग ने द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई के रुप में अवतरित हुए थे. इस पर्व को हलषष्ठी एवं हरछठ के नाम से भी जाना जाता है. जैसा कि मान्यता है कि बलराम जी का मुख्य शस्त्र हल और मूसल हैं जिस कारण इन्हें हलधर कहा जाता है इन्हीं के नाम पर इस पर्व को हलषष्ठी के भी कहा जाता है. इस दिन बिना हल चले धरती से पैदा होने वाले अन्न, शाक भाजी आदि खाने का विशेष महत्व माना जाता है. गाय के दूध व दही के सेवन को भी इस दिन वर्जित माना जाता है. साथ ही संतान प्राप्ति के लिये विवाहिताएं व्रत भी रखती हैं.
शक्ति के प्रतीक बलराम भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई थे, इन्हें आज्ञाकारी पुत्र, आदर्श भाई और एक आदर्श पति भी माना जाता है. श्री कृष्ण की लीलाएं इतनी महान हैं कि बलराम की ओर ध्यान बहुत कम जाता है. लेकिन श्री कृष्ण भी इन्हें बहुत मानते थे. इनका जन्म की कथा भी काफी रोमांचक है. मान्यता है कि ये मां देवकी के सातवें गर्भ थे, चूंकि देवकी की हर संतान पर कंस की कड़ी नजर थी इसलिये इनका बचना बहुत ही मुश्किल था ऐसें में देवकी के सातवें गर्भ गिरने की खबर फैल गई लेकिन असल में देवकी और वासुदेव के तप से देवकी का यह सत्व गर्भ वासुदेव की पहली पत्नी के गर्भ में प्रत्यापित हो चुका था. लेकिन उनके लिये संकट यह था कि पति तो कैद में हैं फिर ये गर्भवती कैसे हुई लोग तो सवाल पूछेंगें लोक निंदा से बचने के लिये जन्म के तुरंत बाद ही बलराम को नंद बाबा के यहां पालने के लिये भेज दिया गया था.
बलराम जी का विवाह
यह मान्यता है कि भगवान विष्णु ने जब-जब अवतार लिया उनके साथ शेषनाग ने भी अवतार लेकर उनकी सेवा की. इस तरह बलराम को भी शेषनाग का अवतार माना जाता है. लेकिन बलराम के विवाह का शेषनाग से क्या नाता है यह भी आपको बताते हैं. दरअसल गर्ग संहिता के अनुसार एक इनकी पत्नी रेवती की एक कहानी मिलती है जिसके अनुसार पूर्व जन्म में रेवती पृथ्वी के राजा मनु की पुत्री थी जिनका नाम था ज्योतिष्मती. एक दिन मनु ने अपनी बेटी से वर के बारे में पूछा कि उसे कैसा वर चाहिये इस पर ज्योतिष्मती बोली जो पूरी पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली हो. अब मनु ने बेटी की इच्छा इंद्र के सामने प्रकट करते हुए पूछा कि सबसे शक्तिशाली कौन है तो इंद्र का जवाब था कि वायु ही सबसे ताकतवर हो सकते हैं लेकिन वायु ने अपने को कमजोर बताते हुए पर्वत को खुद से बलशाली बताया फिर वे पर्वत के पास पंहुचे तो पर्वत ने पृथ्वी का नाम लिया और धरती से फिर बात शेषनाग तक पंहुची. फिर शेषनाग को पति के रुप में पाने के लिये ज्योतिष्मती ब्रह्मा जी के तप में लीन हो गईं. तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने द्वापर में बलराम से शादी होने का वर दिया. द्वापर में ज्योतिष्मती ने राजा कुशस्थली के राजा (जिनका राज पाताल लोक में चलता था) कुडुम्बी के यहां जन्म लिया. बेटी के बड़ा होने पर कुडुम्बी ने ब्रह्मा जी से वर के लिये पूछा तो ब्रह्मा जी ने पूर्व जन्म का स्मरण कराया तब बलराम और रेवती का विवाह तय हुआ. लेकिन एक दिक्कत अब भी थी वह यह कि पाताल लोक की होने के कारण रेवती कद-काठी में बहुत लंबी-चौड़ी दिखती थी पृथ्वी लोक के सामान्य मनुष्यों के सामने तो वह दानव नजर आती. लेकिन हलधर ने अपने हल से रेवती के आकार को सामान्य कर दिया. जिसके बाद उन्होंनें सुख-पूर्वक जीवन व्यतीत किया.
बलराम और रेवती के दो पुत्र हुए जिनके नाम निश्त्थ और उल्मुक थे. एक पुत्री ने भी इनके यहां जन्म लिया जिसका नाम वत्सला रखा गया. माना जाता है कि श्राप के कारण दोनों भाई आपस में लड़कर ही मर गये. वत्सला का विवाह दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण के साथ तय हुआ था, लेकिन वत्सला अभिमन्यु से विवाह करना चाहती थी. तब घटोत्कच ने अपनी माया से वत्सला का विवाह अभिमन्यु से करवाया था.
बलराम के हल के प्रयोग के संबंध में किवदंती के आधार पर दो कथाएं मिलती है. कहते हैं कि एक बार कौरव और बलराम के बीच किसी प्रकार का कोई खेल हुआ. इस खेल में बलरामजी जीत गए थे लेकिन कौरव यह मानने को ही नहीं तैयार थे. ऐसे में क्रोधित होकर बलरामजी ने अपने हल से हस्तिनापुर की संपूर्ण भूमि को खींचकर गंगा में डुबोने का प्रयास किया. तभी आकाशवाणी हुई की बलराम ही विजेता है. सभी ने सुना और इसे माना. इससे संतुष्ट होकर बलरामजी ने अपना हल रख दिया. तभी से वे हलधर के रूप में प्रसिद्ध हुए.
ऐसे में बलराम का क्रोध जाग्रत हो गया. तब बलराम ने अपना रौद्र रूप प्रकट कर दिया. वे अपने हल से ही हस्तिनापुर की संपूर्ण धरती को खींचकर गंगा में डुबोने चल पड़े. यह देखकर कौरव भयभीत हो गए. संपूर्ण हस्तिनापुर में हाहाकार मच गया. सभी ने बलराम से माफी मांगी और तब साम्ब को लक्ष्मणा के साथ विदा कर दिया. बाद में द्वारिका में साम्ब और लक्ष्मणा का वैदिक रीति से विवाह संपन्न हुआ.
बलदेव (हल चंदन छठ) पूजा विधि
कथा करने से पूर्व प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो जाएं.
पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण कर गोबर लाएं.
इस तालाब में झरबेरी, ताश तथा पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई 'हरछठ' को गाड़ दें.
तपश्चात इसकी पूजा करें.
पूजा में सतनाजा (चना, जौ, गेहूं, धान, अरहर, मक्का तथा मूंग) चढ़ाने के बाद धूल, हरी कजरियां, होली की राख, होली पर भूने हुए चने के होरहा तथा जौ की बालें चढ़ाएं.
हरछठ के समीप ही कोई आभूषण तथा हल्दी से रंगा कपड़ा भी रखें. बलदेव जी को नीला तथा कृष्ण जी को पीला वस्त्र पहनाये.
पूजन करने के बाद भैंस के दूध से बने मक्खन द्वारा हवन करें.
पश्चात कथा कहें अथवा सुनें.
ध्यान रखें कि इस दिन व्रती हल से जुते हुए अनाज और सब्जियों को न खाएं और गाय के दूध का सेवन भी न करें, इस दिन तिन्नी का चावल खाकर व्रत रखें
पूजा हो जाने के बाद गरीब बच्चों में पीली मिठाई बांटे.
हलषष्ठी की व्रतकथा निम्नानुसार है
प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी. उसका प्रसवकाल अत्यंत निकट था. एक ओर वह प्रसव से व्याकुल थी तो दूसरी ओर उसका मन गौ-रस (दूध-दही) बेचने में लगा हुआ था. उसने सोचा कि यदि प्रसव हो गया तो गौ-रस यूं ही पड़ा रह जाएगा.
यह सोचकर उसने दूध-दही के घड़े सिर पर रखे और बेचने के लिए चल दी किन्तु कुछ दूर पहुंचने पर उसे असहनीय प्रसव पीड़ा हुई. वह एक झरबेरी की ओट में चली गई और वहां एक बच्चे को जन्म दिया.
वह बच्चे को वहीं छोड़कर पास के गांवों में दूध-दही बेचने चली गई. संयोग से उस दिन हल षष्ठी थी. गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने सीधे-सादे गांव वालों में बेच दिया.
उधर जिस झरबेरी के नीचे उसने बच्चे को छोड़ा था, उसके समीप ही खेत में एक किसान हल जोत रहा था. अचानक उसके बैल भड़क उठे और हल का फल शरीर में घुसने से वह बालक मर गया.
इस घटना से किसान बहुत दुखी हुआ, फिर भी उसने हिम्मत और धैर्य से काम लिया. उसने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और उसे वहीं छोड़कर चला गया.
कुछ देर बाद ग्वालिन दूध बेचकर वहां आ पहुंची. बच्चे की ऐसी दशा देखकर उसे समझते देर नहीं लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है.
वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध न बेचा होता और गांव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट न किया होता तो मेरे बच्चे की यह दशा न होती. अतः मुझे लौटकर सब बातें गांव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिए.
ऐसा निश्चय कर वह उस गांव में पहुंची, जहां उसने दूध-दही बेचा था. वह गली-गली घूमकर अपनी करतूत और उसके फलस्वरूप मिले दंड का बखान करने लगी. तब स्त्रियों ने स्वधर्म रक्षार्थ और उस पर रहम खाकर उसे क्षमा कर दिया और आशीर्वाद दिया.
बहुत-सी स्त्रियों द्वारा आशीर्वाद लेकर जब वह पुनः झरबेरी के नीचे पहुंची तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई कि वहां उसका पुत्र जीवित अवस्था में पड़ा है. तभी उसने स्वार्थ के लिए झूठ बोलने को ब्रह्म हत्या के समान समझा और कभी झूठ न बोलने का प्रण कर लिया.
कथा के अंत में निम्न मंत्र से प्रार्थना करें
गंगाद्वारे कुशावर्ते विल्वके नीलेपर्वते.
स्नात्वा कनखले देवि हरं लब्धवती पतिम्॥
ललिते सुभगे देवि-सुखसौभाग्य दायिनि.
अनन्तं देहि सौभाग्यं मह्यं, तुभ्यं नमो नमः॥
अर्थात् हे देवी! आपने गंगा द्वार, कुशावर्त, विल्वक, नील पर्वत और कनखल तीर्थ में स्नान करके भगवान शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया है. सुख और सौभाग्य देने वाली ललिता देवी आपको बारम्बार नमस्कार है, आप मुझे अचल सुहाग दीजिए.
बलदाऊ की आरती
कृष्ण कन्हैया को दादा भैया, अति प्रिय जाकी रोहिणी मैया
श्री वसुदेव पिता सौं जीजै…… बलदाऊ
नन्द को प्राण, यशोदा प्यारौ , तीन लोक सेवा में न्यारौ
कृष्ण सेवा में तन मन भीजै …..बलदाऊ
हलधर भैया, कृष्ण कन्हैया, दुष्टन के तुम नाश करैया
रेवती, वारुनी ब्याह रचीजे ….बलदाऊ
दाउदयाल बिरज के राजा, भंग पिए नित खाए खाजा
नील वस्त्र नित ही धर लीजे,……बलदाऊ
जो कोई बल की आरती गावे, निश्चित कृष्ण चरण राज पावे
बुद्धि, भक्ति ‘गिरि’ नित-नित लीजे …..बलदाऊ
आरती के बाद श्री बलभद्र स्तोत्र और कवच का पाठ अवश्य करें.
हलषष्ठी शुभ मुहूर्त:
पंचांग के अनुसार षष्ठी तिथि 24 अगस्त 2024 दिन शनिवार को प्रातः 07.51 बजे से आरम्भ होगी और 25 अगस्त को प्रातः 05.30 बजे तक रहेगी.
उद्यापन, मोखद्ध रात्रि 08 बजकर 16 के बाद होगा. चंद्रोदय रात्रि 09 बजकर 47 मिनट पर होगा.
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