भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली का विश्लेषण जितना सरल दिखता हैं, उतना ही कठिन भी हैं!

भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली का विश्लेषण जितना सरल दिखता हैं, उतना ही कठिन भी हैं!

प्रेषित समय :22:22:49 PM / Mon, Aug 26th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

*प्रदीप द्विवेदी
देश के प्रमुख शिक्षाविद् दिवंगत डॉ. शंकरलाल त्रिवेदी के सुपुत्र देवेंद्र त्रिवेदी ने जन्माष्टमी के अवसर पर श्रीकृष्ण की जन्म कुंडली शेयर की है, देखते हैं- क्या कहती है श्रीकृष्ण की जन्म कुंडली.... 
श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी (श्रीकृष्ण की जन्म-कुंडली) :  भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली का विश्लेषण जितना सरल दिखता हैं, उतना ही कठिन भी हैं ! 
श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था.
महानिशीथ काल में जन्में भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय चंद्रमा रोहिणी नक्षत्र में थे.
भगवान का जन्म वृष-लग्न में हुआ, इस समय लग्न में केतु और चंद्रमा दोनों ही स्थित थे, भगवान के चौथे भाव में सूर्य उच्च राशि के थे, पंचम भाव में बुध कन्या राशि के हैं, जो उनकी स्वग्रही राशि हैं, छठे भाव में शुक्र और शनि के साथ शत्रुहंता योग बनते हैं, शुक्र खुद की राशि तुला में हैं और शनि तुला में उच्च राशि के थे.
ख़ुद सूरदासजी ने भगवान के जन्म-समय के दौरान आकाशीय ग्रहों की स्थिति का वर्णन अपने दोहे में किया हैं.... नंदजू मेरे मन आनंद भयो, मैं सुनि मथुराते आयो, लगन सोधि ज्योतिष को गिनी करि, चाहत तुम्ह हिं सुनायो, सम्बत्सर ईश्वर को भादों, नाम जुं कृष्ण परयो हैं, रोहिणी, बुध, आठै अंधियारी, हर्षन जो परयो हैं, वृष हैं लग्न, उच्च के उड्डपति, तन को अति सुखकारी, दल चतुरंग चलै संग इनके व्है हैं रसिक-बिहारी, चौथी रासि सिंह के दिनमनि, महिमण्डल को जीतै, करि हैं नास कंस मातुल को, निहचै कुछ दिन बीतै, पंचम बुध कन्या के सोभित, पुत्र बढ़ैगे सोई, छठएं सुक्र तुला के सुनि जुत, सत्रु बचै नहिं कोई, नीच-ऊंच जुवती बहुत भोगै, सप्तम राहु परयो हैं, केतु मुरति में श्याम बरन, चोरी में चित्त धरयो हैं, भाग्य-भवन में मकर महीसुत, अति ऐश्वर्य बढ़ैगो, द्विज, गुरूजन को भक्त होई कै कामिनी चित्त हरैगो, नवनिधि जा के नाभि बसत हैं, मीन बृहस्पति केरी, पृथ्वी भार उतारे निहचै, यह मानो तुम मेरी, तब हीं नंद महर आनंदे, गर्ग पूजि पहरायो, असन, बसन, ग़ज़ बाजि, धेनु, धन, भूरी भण्डार लुटायो, बंदीजन द्वारे जस गावै, जो जांच्यो सो पायो, ब्रज में कृष्ण जन्म को उत्सव, सुर बिमल जस गायो ! 
श्री सूरदासजी ने इस पद में श्रीकृष्ण के जन्म-समय के दौरान सभी तरह की आकाशीय ग्रहों की स्थिति पर विचार किया हैं, पूरा पढ़ें.... 
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Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-

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