नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि शादी के समय माता-पिता की तरफ से दिए जाने वाले सोने के आभूषण और अन्य सामान, जिन्हें 'स्त्रीधन' कहा जाता है, पर सिर्फ और सिर्फ महिला का ही अधिकार है। कोर्ट ने आगे कहा कि तलाक के बाद, महिला के पिता को उसके पूर्व ससुराल वालों से उन उपहारों को वापस मांगने का कोई अधिकार नहीं है। आगे बढ़ने से पहले ये समझना जरूरी है कि आखिर स्त्रीधन होता क्या है। 'स्त्रीधन' वह संपत्ति है जिस पर किसी महिला को पूर्ण अधिकार होता है। जिसका इस्तेमाल वह बिना किसी रोक-टोक के कर सकती है। महिला की शादी के समय या उससे पहले या फिर शादी के बाद या बच्चे के जन्म के समय उसे जो कुछ भी गिफ्ट के रूप में मिलता है, चाहे वह जूलरी हो, कैश हो, जमीन हो, मकान हो...उसे 'स्त्रीधन' कहा जाता है। 'स्त्रीधन' के दायरे में सिर्फ शादी के समय, बच्चे के जन्म या किसी त्योहार पर महिला को मिले गिफ्ट नहीं आते बल्कि उसके जीवनकाल में उसे जो कुछ भी उपहार के रूप में मिलता है, वो सब इसके दायरे में आते हैं। इस धन पर सिर्फ और सिर्फ महिला का अधिकार होता है।
क्या था सुप्रीम कोर्ट में आया पूरा मामला?
यह मामला पी. वीरभद्र राव नाम के व्यक्ति से जुड़ा है, जिनकी बेटी की शादी दिसंबर 1999 में हुई थी और शादी के बाद दंपती अमेरिका चला गया था। 16 साल बाद, बेटी ने तलाक के लिए अर्जी दी और फरवरी 2016 में अमेरिका के मिजूरी राज्य की एक अदालत ने आपसी सहमति से तलाक दे दिया। तलाक के समय दोनों पक्षों के बीच एक समझौते के तहत सारी संपत्ति का बंटवारा कर दिया गया था। इसके बाद, महिला ने मई 2018 में दोबारा शादी कर ली। तीन साल बाद, पी. वीरभद्र राव ने अपनी बेटी के ससुराल वालों के खिलाफ हैदराबाद में 'स्त्रीधन' वापस मांगने के लिए एक FIR दर्ज कराई। ससुराल पक्ष ने FIR रद्द करवाने के लिए तेलंगाना हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की।
जस्टिस जे. के. माहेश्वरी और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने ससुराल पक्ष के खिलाफ मामला रद्द कर दिया। बेंच ने कहा कि पिता को अपनी बेटी के 'स्त्रीधन' को वापस मांगने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि वह पूरी तरह से बेटी की संपत्ति है। जस्टिस करोल ने अपने फैसले में लिखा, 'आम तौर पर स्वीकृत नियम, जिसे न्यायिक रूप से मान्यता दी गई है, वह यह है कि महिला को संपत्ति पर पूर्ण अधिकार होता है।'
बेंच ने आगे कहा, 'इस अदालत का रुख स्पष्ट रूप से महिला (पत्नी या पूर्व पत्नी, जैसा भी मामला हो) के 'स्त्रीधन' की एकमात्र मालिक होने के अधिकार के संबंध में साफ है। पति का कोई अधिकार नहीं है और इसलिए यह निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए कि पिता को भी कोई अधिकार नहीं है जब बेटी जीवित है, स्वस्थ है और अपने 'स्त्रीधन' की वसूली जैसे निर्णय लेने में पूरी तरह सक्षम है।'
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-दिल्ली शराब घोटाले में सुप्रीम कोर्ट से के. कविता को जमानत, 5 महीने बाद जेल से बाहर आएंगी
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