*भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी जिसे हम गणेश चतुर्थी भी कहते हैं दिनांक 07 सितंबर , 2024 को मनाई जाएगी
सभी सनातन धर्मावलंबी प्रति वर्ष गणपति की स्थापना तो करते है लेकिन हममे से बहुत ही कम लोग जानते है कि आखिर हम गणपति क्यों बिठाते हैं ?
हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार, महर्षि वेद व्यास ने महाभारत की रचना की है.
लेकिन लिखना उनके वश का नहीं था.
अतः उन्होंने श्री गणेश जी की आराधना की और गणपति जी से महाभारत लिखने की प्रार्थना की.
गणपती जी ने सहमति दी और दिन-रात लेखन कार्य प्रारम्भ हुआ और इस कारण गणेश जी को थकान तो होनी ही थी, लेकिन उन्हें पानी पीना भी वर्जित था. अतः गणपती जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया और भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी की पूजा की. मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई, इसी कारण गणेश जी का एक नाम पर्थिव गणेश भी पड़ा. महाभारत का लेखन कार्य 10 दिनों तक चला. अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य संपन्न हुआ.
वेदव्यास ने देखा कि, गणपती का शारीरिक तापमान फिर भी बहुत बढ़ा हुआ है और उनके शरीर पर लेप की गई मिट्टी सूखकर झड़ रही है, तो वेदव्यास ने उन्हें पानी में डाल दिया. इन दस दिनों में वेदव्यास ने गणेश जी को खाने के लिए विभिन्न पदार्थ दिए. तभी से गणपती बैठाने की प्रथा चल पड़ी. इन दस दिनों में इसीलिए गणेश जी को पसंद विभिन्न भोजन अर्पित किए जाते हैं.
गणेश चतुर्थी को कुछ स्थानों पर डंडा चौथ के नाम से भी जाना जाता है. मान्यता है कि गुरु शिष्य परंपरा के तहत इसी दिन से विद्याध्ययन का शुभारंभ होता था. इस दिन बच्चे डण्डे बजाकर खेलते भी हैं. गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि का दाता भी माना जाता है. इसी कारण कुछ क्षेत्रों में इसे डण्डा चौथ भी कहते हैं.
पार्थिव श्रीगणेश पूजन का महत्त्व
अलग अलग कामनाओ की पूर्ति के लिए अलग अलग द्रव्यों से बने हुए गणपति की स्थापना की जाती हैं.
(1) श्री गणेश: मिट्टी के पार्थिव श्री गणेश बनाकर पूजन करने से सर्व कार्य सिद्धि होती हे!
(2) हेरम्ब: गुड़ के गणेश जी बनाकर पूजन करने से लक्ष्मी प्राप्ति होती हे.
(3) वाक्पति: भोजपत्र पर केसर से पर श्री गणेश प्रतिमा चित्र बनाकर. पूजन करने से विद्या प्राप्ति होती हे.
(4) उच्चिष्ठ गणेश: लाख के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से स्त्री. सुख और स्त्री को पतिसुख प्राप्त होता हे घर में ग्रह क्लेश निवारण होता हे.
(5) कलहप्रिय: नमक की डली या. नमक के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से शत्रुओ में क्षोभ उतपन्न होता हे वह आपस ने ही झगड़ने लगते हे.
(6) गोबरगणेश: गोबर के श्री गणेश बनाकर पूजन करने से पशुधन में व्रद्धि होती हे और पशुओ की बीमारिया नष्ट होती है (गोबर केवल गौ माता का ही हो).
(7) श्वेतार्क श्री गणेश: सफेद आक मन्दार की जड़ के श्री गणेश जी बनाकर पूजन करने से भूमि लाभ भवन लाभ होता हे.
( शत्रुंजय: कडूए नीम की की लकड़ी से गणेश जी बनाकर पूजन करने से शत्रुनाश होता हे और युद्ध में विजय होती हे.
(9) हरिद्रा गणेश: हल्दी की जड़ से या आटे में हल्दी मिलाकर श्री गणेश प्रतिमा बनाकर पूजन करने से विवाह में आने वाली हर बाधा नष्ठ होती हे और स्तम्भन होता हे.
(10) सन्तान गणेश: मक्खन के श्री गणेश जी बनाकर पूजन से सन्तान प्राप्ति के योग निर्मित होते हैं.
(11) धान्यगणेश: सप्तधान्य को पीसकर उनके श्रीगणेश जी बनाकर आराधना करने से धान्य व्रद्धि होती हे अन्नपूर्णा माँ प्रसन्न होती हैं.
(12) महागणेश: लाल चन्दन की लकड़ी से दशभुजा वाले श्री गणेश जी प्रतिमा निर्माण कर के पूजन से राज राजेश्वरी श्री आद्याकालीका की शरणागति प्राप्त होती हैं.
पूजन मुहूर्त
गणपति स्वयं ही मुहूर्त है. सभी प्रकार के विघ्नहर्ता है इसलिए गणेशोत्सव गणपति स्थापना के दिन दिनभर कभी भी स्थापना कर सकते है. सकाम भाव से पूजा के लिए नियम की आवश्यकता पड़ती है इसमें प्रथम नियम मुहूर्त अनुसार कार्य करना है.
मुहूर्त अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की पूजा दोपहर के समय करना अधिक शुभ माना जाता है, क्योंकि मान्यता है कि भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेश जी का जन्म हुआ था. मध्याह्न यानी दिन का दूसरा प्रहर जो कि सूर्योदय के लगभग 3 घंटे बाद शुरू होता है और लगभग दोपहर 12 से 12:30 तक रहता है. गणेश चतुर्थी पर मध्याह्न काल में अभिजित मुहूर्त के संयोग पर गणेश भगवान की मूर्ति की स्थापना करना अत्यंतशुभ माना जाता है.
गणेश चतुर्थी पूजन
मध्याह्न गणेश पूजा मुहूर्त- 11:01 से दोपहर 01:28 तक.
चतुर्थी तिथि प्रारम्भ - सितम्बर 06 को दोपहर 03:01 बजे से.
चतुर्थी तिथि समाप्त - सितम्बर 07 को शाम 05:37 बजे तक.
एक दिन पूर्व, वर्जित चन्द्रदर्शन का समय - 06 सितम्बर - दोपहर 12:01 से रात्रि 08:10 तक
चन्द्रदर्शन निशेध अवधि - 07 घण्टे 32 मिनट्स
पूजा की सामग्री
गणेश जी की पूजा करने के लिए चौकी या पाटा, जल कलश, लाल कपड़ा, पंचामृत, रोली, मोली, लाल चन्दन, जनेऊ गंगाजल, सिन्दूर चांदी का वर्क लाल फूल या माला इत्र मोदक या लडडू धानी सुपारी लौंग, इलायची नारियल फल दूर्वा, दूब पंचमेवा घी का दीपक धूप, अगरबत्ती और कपूर की आवस्यकता होती है.
सामान्य पूजा विधि
सकाम पूजा के लिये स्थापना से पहले संकल्प भी अत्यंत जरूरी है. यहाँ हम संक्षिप्त विधि बता रहे है गणेश पूजन की विस्तृत विधि हमारी अगली पोस्ट ने देख सकते है.
संकल्प विधि
हाथ में पान के पत्ते पर पुष्प, चावल और सिक्का रखकर सभी भगवान को याद करें. अपना नाम, पिता का नाम, पता और गोत्र आदि बोलकर गणपति भगवान को घर पर पधारने का निवेदन करें और उनका सेवाभाव से स्वागत सत्कार करने का संकल्प लें.
भगवान गणेश की पूजा करने लिए सबसे पहले सुबह नहा धोकर शुद्ध लाल रंग के कपड़े पहने. क्योकि गणेश जी को लाल रंग प्रिय है. पूजा करते समय आपका मुंह पूर्व दिशा में या उत्तर दिशा में होना चाहिए. सबसे पहले गणेश जी को पंचामृत से स्नान कराएं. उसके बाद गंगा जल से स्नान कराएं. गणेश जी को चौकी पर लाल कपड़े पर बिठाएं. ऋद्धि-सिद्धि के रूप में दो सुपारी रखें. गणेश जी को सिन्दूर लगाकर चांदी का वर्क लगाएं. लाल चन्दन का टीका लगाएं. अक्षत (चावल) लगाएं. मौली और जनेऊ अर्पित करें. लाल रंग के पुष्प या माला आदि अर्पित करें. इत्र अर्पित करें. दूर्वा अर्पित करें. नारियल चढ़ाएं. पंचमेवा चढ़ाएं. फल अर्पित करें. मोदक और लडडू आदि का भोग लगाएं. लौंग इलायची अर्पित करें. दीपक, अगरबत्ती, धूप आदि जलाएं इससे गणेश जी प्रसन्न होते हैं. गणेश जी की प्रतिमा के सामने प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष व संकट नाशन गणेश आदि स्तोत्रों का पाठ करे.
यह मंत्र उच्चारित करें
ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभः.
निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा..
कपूर जलाकर आरती करें
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा. माता जाकी पार्वती पिता महादेवा.. जय गणेश जय गणेश…
एक दन्त दयावंत चार भुजाधारी. माथे सिन्दूर सोहे मूष की सवारी.. जय गणेश जय गणेश…
अंधन को आँख देत कोढ़िन को काया. बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया.. जय गणेश जय गणेश…
हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा. लडूवन का भोग लगे संत करे सेवा.. जय गणेश जय गणेश…
दीनन की लाज राखी शम्भु सुतवारी. कामना को पूरा करो जग बलिहारी.. जय गणेश जय गणेश…
चतुर्थी,चंद्रदर्शन और कलंक पौराणिक मान्यता
06 तारीख को रात्रि मे चतुर्थी तिथि रहे गी एवं 07 तारीख को उदय कालीन चतुर्थी होने के कारण भूलकर भी चंद्र दर्शन न करें वर्ना आपके उपर बड़ा कलंक लग सकता है. इसके पीछे एक पौराणिक कथा का दृष्टांत है.
एक दिन गणपति चूहे की सवारी करते हुए गिर पड़े तो चंद्र ने उन्हें देख लिया और हंसने लगे. चंद्रमा को हंसी उड़ाते देख गणपति को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने चंद्र को श्राप दिया कि अब से तुम्हें कोई देखना पसंद नहीं करेगा. जो तुम्हे देखेगा वह कलंकित हो जाएगा. इस श्राप से चंद्र बहुुत दुखी हो गए. तब सभी देवताओं ने गणपति की साथ मिलकर पूजा अर्चना कर उनका आवाह्न किया तो गणपति ने प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने को कहा. तब देवताओं ने विनती की कि आप गणेश को श्राप मुक्त कर दो. तब गणपति ने कहा कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता लेकिन इसमें कुछ बदलाव जरूर कर सकता हूं. भगवान गणेश ने कहा कि चंद्र का ये श्राप सिर्फ एक ही दिन मान्य रहेगा. इसलिए चतुर्थी के दिन यदि अनजाने में चंद्र के दर्शन हो भी जाएं तो इससे बचने के लिए छोटा सा कंकर या पत्थर का टुकड़ा लेकर किसी की छत पर फेंके. ऐसा करने से चंद्र दर्शन से लगने वाले कलंक से बचाव हो सकता है. इसलिए इस चतुर्थी को पत्थर चौथ भी कहते है.
यदि भादव के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी का चंद्रमा दिख जाय तो कलंक से कैसे छूटें ?
1 यदि उसके पहले द्वितीया का चंद्र्मा आपने देख लिया है तो चतुर्थी का चन्द्र आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता.
2 या भागवत की स्यमन्तक मणि की कथा सुन लीजिए .
3 अथवा निम्नलिखित मन्त्र का 21 बार जप करलें –
सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः.
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः ..
4 यदि आप इन उपायों में कोई भी नहीं कर सकते हैं तो एक सरल उपाय बता रहा हूँ उसे सब लोग कर सकते हैं . एक लड्डू किसी भी पड़ोसी के घर पर फेंक दे .
चंद्र दर्शन से बचने का समय
सितम्बर 06 वर्जित चन्द्रदर्शन का समय -12:39 से 08:10 तक.
सितम्बर 07 वर्जित चन्द्रदर्शन का समय _ प्रातः 09:45 से रात्रि 08:44 तक.
राशि के अनुसार करें गणेश जी का पूजन
गणेशचतुर्थी के दिन सभी लोग को अपने सामर्थ्य एवं श्रद्धा से गणेश जी की पूजा अर्चना करते है. फिर भी राशि स्वामी के अनुसार यदि विशेष पूजन किया जाए तो विशेष लाभ भी प्राप्त होगा.
यदि आपकी राशि मेष एवं बृश्चिक हो तो आप अपने राशि स्वामी का ध्यान करते हुए लड्डु का विशेष भोग लगावें आपके सामथ्र्य का विकास हो सकता है.
आपकी राशि बृष एवं तुला है तो आप भगवान गणेश को लड्डुओं का भोग विशेष रूप से लगावें आपको ऐश्वर्य की प्राप्ति हो सकती है.
मिथुन एवं कन्या राशि वालो को गणेश जी को पान अवश्य अर्पित करना चाहिए इससे आपको विद्या एवं बुद्धि की प्राप्ति होगी.
धनु एवं सिंह राशि वालों को फल का भोग अवश्य लगाना चाहिए ताकि आपको जीवन में सुख, सुविधा एवं आनन्द की प्राप्ति हो सके.
यदि आपकी राशि मकर एवं कुंभ है तो आप सुखे मेवे का भोग लगाये. जिससे आप अपने कर्म के क्षेत्र में तरक्की कर सकें.
सिंह राशि वालों को केले का विशेष भोग लगाना चाहिए जिससे जीवन में तीव्र गति से आगे बढ़ सकें.
यदि आपकी राशि कर्क है तो आप
खील एवं धान के लावा और बताशे का भोग लगाए जिससे आपका जीवन सुख-शांति से भरपूर हो
गणेश महोत्सव की तिथियां
1 गणेश चतुर्थी व्रत- 07 सितम्बर .
2 ऋषि पंचमी 08 सितम्बर -.
3मोरछठ-चम्पा सूर्य, बलदेव षष्ठी,महालक्ष्मी व्रत आरम्भ, 09 सितम्बर -.
4 10 सितम्बर - मुक्तभरण संतान सप्तमी, ज्येष्ठा गौरी पूजन.
5 11 सितम्बर - ऋषिदधीचि जन्म, राधाष्टमी, स्वामी हरिदास जयन्ती, महालक्ष्मी व्रत पूर्ण.
6 12 सितम्बर - चंद्रनवमी (अदुख) नवमी, दशावतार जयन्ती.
7 13 सितम्बर - तेजा दशमी, रामदेव जयंती.
8 14 सितम्बर -पद्मा एकादशी जलझूलनी एकादशी
श्रीवामन अवतार भुवनेश्वरी जयन्ती.
9 15 सितम्बर - द्वादशी भुवनेश्वरी जयन्ती
16 सितंबर त्रयोदशी, प्रदोष
10 17सितम्बर -अनन्त चतुर्दशी, श्रीसत्यनारायण व्रत, गणपति विसर्जन.