महालक्ष्मी व्रत का महत्व
महालक्ष्मी व्रत भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ होता है और अश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक किया जाता है. यह व्रत सोलह दिनों तक किया जाता है और इस व्रत में सोलह दिनों तक ही शाम के समय चंद्रमा को अर्ध्य भी दिया जाता है. वैसे तो यह व्रत 16 दिनों तक किया जाता है. लेकिन अगर कोई भी व्यक्ति इस व्रत को सोलह दिनों तक नहीं कर पाता तो वह इस व्रत को अपने सामर्थ्य के अनुसार कम दिनों तक भी कर सकता है. महालक्ष्मी व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता और सोलह दिनों का व्रत पूर्ण होने के बाद इस व्रत का उद्यापन कर दिया जाता है.
मां लक्ष्मी का व्रत करने से मनुष्य को जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है. महालक्ष्मी व्रत करने वाले व्यक्ति के पास धन और धान्य की कभी भी कोई कमीं नही रहती है. यह व्रत मनुष्य को उसके जीवन की सभी परेशानियों से मुक्ति दिलाता है. अगर कोई महिला इस व्रत को करती है तो उसे माता लक्ष्मी के आर्शीवाद से संतान सुख, पारिवारिक सुख, धन और धान्य सभी चीजें प्राप्त होती है और अगर कोई पुरुष इस व्रत को रखता है तो उसे उसकी नौकरी, व्यापार सभी में लाभ प्राप्त होता है.
महालक्ष्मी व्रत पूजन सामग्री
हल्दी,कुमकुम,बैठने के लिये आसऩ,अक्षत,सोना या चाँदी या रुपया,धूप,दीपक,लाल फूल,श्री गज लक्ष्मी का चित्र,लाल कपड़ा,ताँबे का कलश,शुद्ध देसी घी,कटोरी (कलश को ढ़कने के लिये),नैवेद्य,फल,फूल,पूजन सामग्री में चन्दन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल आदि
महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि
1 सबसे पहले प्रात: काल स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें. इसके बाद घर के आंगन में चावल के घोल का अल्पना बनाएं. अल्पना में मां लक्ष्मी के पैर अवश्य बनाएं.
2 इसके बाद करिष्य हं महालक्ष्मि व्रतमें त्वत्परायणा .तदविध्नेन में यातु समप्तिं स्वत्प्रसादत: .. मंत्र का जाप करके व्रत का संकल्प लें.
3इसके बाद हाथ की कलाई पर 16 गांठों वाला धागा बांधना चाहिए. इसके बाद माता लक्ष्मी का आसन आम के पत्तों से सजाएं. इसके लिए आंवले का पत्ता और धान की बालियों भी अवश्य लें.
4 इसके बाद कलश स्थापित करें और भगवान गणेश और गज लक्ष्मी का चित्र स्थापति करें. भगवान गणेश के साथ कलश की भी पूजा करें. भगवान गणेश के बाद कलश की पूजा भी अवश्य करें.
5 इसके बाद मां लक्ष्मी को पुष्प माला, नैवेध, अक्षत,सोना या चाँदी आदि सभी चीजें अर्पित करें और उनकी विधिवत पूजा करें.
6 पूजा के बाद माता लक्ष्मी की कथा पढ़ें और उनके मंत्रों का जाप करें.
7 इसके बाद माता लक्ष्मी की धूप व दीप से आरती उतारें.
8 सुबह पूजा करने के बाद शाम के समय भी मां लक्ष्मी की इसी विधि से पूजा करें और दीप जलाएं.
9 एक दीप मां लक्ष्मी के आगमन के लिए अपने घर के बाहर भी अवश्य जलाएं.
10 इसके बाद चंद्रमा को अर्ध्य भी अवश्य दें और घर की बहु बेटियों और पड़ोस की सुहागन महिलाओं को भी अवश्य भोजन कराएं.
क्षमा प्रार्थना :-
' सबको संपत्ति प्रदान करने वाली माता ! मैं पूजा की विधि नहीं जानता. माँ ! मैं न मंत्र जानता हूँ न यंत्र. अहो! मुझे न स्तुति का ज्ञान है, न आवाहन एवं ध्यान की विधि का पता. मैं स्वभाव से आलसी तुम्हारा बालक हूँ. शिवे ! संसार में कुपुत्र का होना संभव है किंतु कहीं भी कुमाता नहीं होती.
माँ ! नाना प्रकार की पूजन सामग्रियों से कभी विधिपूर्वक तुम्हारी आराधना मुझसे न हो सकी. महादेवी ! मेरे समान कोई पातकी नहीं और तुम्हारे समान कोई पापहारिणी नहीं है. किन्हीं कारणों से तुम्हारी सेवा में जो त्रुटि हो गई हो उसे क्षमा करना. हे माता ! ज्ञान अथवा अज्ञान से जो यथाशक्ति तुम्हारा पूजन किया है उसे परिपूर्ण मानना. सजल नेत्रों से यही मेरी विनती है.'
समर्पण :-
हे देवी ! सुरेश्वरी ! तुम गोपनीय से भी गोपनीय वस्तु की रक्षा करने वाली हो. मेरे निवेदन किए हुए इस पूजन को ग्रहण करो. तुम्हारी कृपा से मुझे अभीष्ट की प्राप्ति हो.
महालक्ष्मी व्रत कथा
हिंदू धर्म में गजलक्ष्मी व्रत यानि महालक्ष्मी व्रत का विशेष महत्व है. भाद्रपद शुक्ल अष्टमी के दिन से यह व्रत शुरू होता है और 16 दिन तक यह व्रत किया जाता है. इस व्रत में मां लक्ष्मी का पूजन किया जाता है. इस व्रत को करने से सुख - समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है. इस व्रत से जुड़ी कई तरह की लोककथाएं हैं लेकिन कुछ कथाएं काफी प्रचलित हैं.
महाभारत काल के दौरान एक बार महर्षि वेदव्यास जी ने हस्तिनापुर का भ्रमण किया. महाराज धृतराष्ट्र ने उन्हें अपने राजमहल में पधारने का आमंत्रण दिया. रानी गांधारी और रानी कुंती ने मुनि वेद व्यास से पूछा कि हे मुनि आप बताएं कि हमारे राज्य में धन की देवी मां लक्ष्मी और सुख-समृद्धि कैसे बनी रहे. यह सुनकर वेदव्यास जी ने कहा कि यदि आप अपने राज्य में सुख-समृद्धि चाहते हैं तो प्रतिवर्ष अश्विनी कृष्ण अष्टमी को विधिवत श्री महालक्ष्मी का व्रत करें.
मुनि की बात सुनकर कुंती और गांधारी दोनों ने महालक्ष्मी व्रत करने का संकल्प लिया. रानी गांधारी ने अपने राजमहल के आंगन में 100 पुत्रों की मदद से विशालकाय गज का निर्माण करवाया और नगर की सभी स्त्रियों को पूजन के लिए आमंत्रित किया, परंतु रानी कुंती को निमंत्रण नहीं भेजा. जब सभी महिलाएं गांधारी के राजमहल पूजन के लिए जाने लगी तो, कुंती उदास हो गई. माता को दुखी देखकर पांचों पांडवों ने पूछा कि माता आप उदास क्यों हैं? तब कुंती ने सारी बात बता दी. इस पर अर्जुन ने कहा कि माता आप महालक्ष्मी पूजन की तैयारी कीजिए, मैं आपके लिए हाथी लेकर आता हूं. ऐसा कहकर अर्जुन इंद्र के पास गए और इंद्रलोक से अपनी माता के लिए ऐरावत हाथी लेकर आए. जब नगर की महिलाओं को पता चला कि रानी कुंती के महल में स्वर्ग से ऐरावत हाथी आया है तो सारे नगर में शोर मच गया. हाथी को देखने के लिए पूरा नगर एकत्र हो गया और सभी विवाहित महिलाओं ने विधि विधान से महालक्ष्मी का पूजन किया. पौराणिक मान्यता है कि इस व्रत की कहानी को 16 बार कहा जाता है और हर चीज या पूजन सामग्री 16 बार चढ़ाई जाती है.
महालक्ष्मी दूसरी पौराणिक कथा
पौराणिक कथानुसार, प्राचीन काल में एक बार एक गांव में गरीब ब्राह्मण रहता था. वह भगवान विष्णु का परमभक्त था. एक दिन उसकी भक्ति से खुश होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिए और मनचाहा वरदान मांगने को कहा. ब्राह्मण ने कहा कि उसके घर में हमेशा लक्ष्मी का वास हो. इस इच्छा को जानने के बाद विष्णुजी ने कहा कि उसे लक्ष्मी तो प्राप्त हो सकती है लेकिन उसके लिए उसे थोड़ा प्रयत्न करना होगा. भगवान विष्णु ने कहा कि मंदिर के सामने एक स्त्री रोज आती है और यहां आकर उपले पाथती है, तुम बस अपने घर उन्हें आने का निमंत्रण देना. वह स्त्री ही देवी मां लक्ष्मी हैं. अगर वह स्त्री तुम्हारे घर आती है तो तुम्हारा घर धन-धान्य से भर जाएगा. इतना कहकर भगवान विष्णु अदृश्य हो गए.
अगले दिन सुबह 4 बजे ब्राह्मण मंदिर के सामने बैठ गया और जब धन की देवी मां लक्ष्मी उपले पाथने आईं तो ब्राह्मण ने उन्हें अपने घर में आने का निवेदन किया. ब्राह्मण के व्यक्तव को सुनकर लक्ष्मी जी समझ गईं कि ये सब विष्णु जी का किया धराया है. माता लक्ष्मी (Mahalaxmi) ने कहा कि तुम 16 दिन तक महालक्ष्मी व्रत को विधि पूर्वक करों और रात-दिन चंद्रमा को अर्घ्य दो तो मैं तुम्हारे घर आऊंगी. देवी के कहे अनुसार ब्राह्मण ने देवी का व्रत एवं पूजन किया और उत्तर की दिशा की ओर मुख करके लक्ष्मीजी को पुकारा. अपने वचन को पूरा करने के लिए धन की देवी प्रकट हुईं और उन्होंने गरीब ब्राह्मण के हर कष्ट को दूर किया और उसके घर को सुख-संपत्ति से भर दिया.
महालक्ष्मी तीसरी पौराणिक कथा
पौराणिक कथानुसार, एक बार भगवान विष्णु मृत्युलोक यानि भूलोक में गमन करने के लिये निकल पड़े. माता लक्ष्मी ने भी निवेदन किया कि वह भी उनके साथ आना चाहती हैं. भगवान विष्णु उनके स्वभाव से परिचित थे इसलिये पहले ही उन्हें आगाह किया कि मैं आपको एक ही शर्त पर साथ लेकर चल सकता हूं. माता लक्ष्मी मन ही मन बहुत खुश हुई कि चलो सशर्त ही सही भगवन साथ ले जाने के लिये तो माने.
माता फटाक से बोली मुझे सारी शर्तें मंजूर हैं. भगवान विष्णु ने कहा जो मैं कहूं जैसा मैं कहूं आपको वैसा ही करना होगा. माता बोली ठीक है आप जैसा कहेंगें मैं वैसा ही करूंगी. दोनों भू लोक पर आकर विचरण करने लगे. एक जगह रुककर श्री हरि ने माता से कहा कि मैं दक्षिण दिशा की तरफ जा रहा हूं. आपको यहीं पर मेरा इंतजार करना होगा. यह कहकर भगवान विष्णु दक्षिण दिशा की तरफ बढ़ गये. अब माता को जिज्ञासा हुई कि दक्षिण दिशा में ऐसा क्या है जो भगवान मुझे वहां नहीं ले जाना चाहते. माता का स्वभाव तो वैसे भी चंचल ही माना जाता है. उनसे वहां पर ज्यादा देर नहीं रुका गया और वे भगवान विष्णु की तरफ ही बढ़ने लगी. आगे जाकर माता को सरसों का खेत दिखाई दिया. उसकी सुंदरता ने माता का मन मोह लिया. वे फूलों को तोड़कर अपना श्रृंगार करने लगीं.
इसके बाद वे कुछ ही दूर आगे बढ़ी थी कि गन्ने के खेत उन्हें दिखाई दिये. उन्हें गन्ना चूसने की इच्छा हुई तो गन्ने तोड़कर उन्हें चूसने लगी कि भगवान विष्णु वापस आ गए. सरसों के फूलों से सजी माता लक्ष्मी को गन्ना चूसते हुए देखकर भगवान विष्णु उन पर क्रोधित हो गये. भगवान ने कहा कि आपने शर्त का उल्लंघन किया है. मैनें आपको वहां रूकने के लिये कहा था लेकिन आप नहीं रूकी और यहां किसान के खेतों से फूल व गन्ने तोड़कर आपने अपराध किया है. इसकी आपको सजा मिलेगी. भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को 12 वर्ष तक किसान की सेवा करने का शाप दे दिया और स्वंय क्षीरसागर गमन कर गये.
अब विवश माता लक्ष्मी को किसान के घर रहना पड़ा. एक दिन माता लक्ष्मी ने किसान की पत्नी को देवी लक्ष्मी की प्रतिमा की पूजा करने को कहा और बोला कि इससे तुम जो भी मांगोगी तुम्हें मिलेगा. कृषक की पत्नी ने वैसा ही किया. कुछ ही दिनों में उनका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया. हंसी खुशी समृद्धि में 12 साल का समय बीत गया. जब भगवान विष्णु माता लक्ष्मी को लेने के लिये आये तो किसान ने माता को न जाने देने का हठ किया. इस पर माता लक्ष्मी ने कहा कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की तेरस की दिन यदि वह विधिपूर्वक मेरी पूजा करे तो वह उसके घर से नहीं जाएंगी. लेकिन वह इस दौरान उन्हें दिखाई नहीं देंगी. वह एक कलश की स्थापना करे और उसमें कुछ धन रखे यानि धन ही लक्ष्मी का रूप होगा. इस प्रकार तेरस के दिन किसान ने माता के बताये अनुसार ही पूजा कर कलश स्थापना की और किसान का घर धन-धान्य से पूर्ण रहने लगा. तब से लेकर आज तक धनतेरस पर माता लक्ष्मी की पूजा करने की परंपरा भी चली आ रही है.
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-