ॐ आगच्छन्तु मे पितर एवं ग्रहन्तु जलान्जलिम'
हे पितरों! पधारिये तथा जलांजलि ग्रहण कीजिए.
यह अवसर अपने कुल, अपनी परंपरा, पूर्वजों के श्रेष्ठ कार्यों का स्मरण करने और उनके पदचिह्नों पर चलने का संकल्प लेने का है.
श्राद्ध क्या है...???
व्यक्ति का अपने पितरों के प्रति श्रद्धा के साथ अर्पित किया गया तर्पण अर्थात जलदान पिंडदान पिंड के रूप में पितरों को समर्पित किया गया भोजन यही श्राद्ध कहलाता है. देव, ऋषि और पितृ ऋण के निवारण के लिए श्राद्ध कर्म है. अपने पूर्वजों का स्मरण करने और उनके मार्ग पर चलने और सुख-शांति की कामना ही वस्तुत: श्राद्ध कर्म है.
तीन पीढ़ियों तक का ही श्राद्ध
श्राद्ध केवल तीन पीढ़ियों तक का ही होता है. धर्मशास्त्रों के मुताबिक सूर्य के कन्या राशि में आने पर परलोक से पितृ अपने स्वजनों के पास आ जाते हैं. देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ी के पूर्वज गिने जाते हैं. पिता को वसु के समान, रुद्र दादा के समान और परदादा आदित्य के समान माने गए हैं. इसके पीछे एक कारण यह भी है कि मनुष्य की स्मरण शक्ति केवल तीन पीढ़ियों तक ही सीमित रहती है.
कौन कर सकता है तर्पण...???
पुत्र, पौत्र, भतीजा, भांजा कोई भी श्राद्ध कर सकता है. जिनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है लेकिन पुत्री के कुल में हैं तो धेवता और दामाद भी श्राद्ध कर सकते हैं. यह भी कहा गया है कि किसी पंडित द्वारा भी श्राद्ध कराया जा सकता है. महिलाएं भी कर सकती हैं श्राद्ध बशर्ते घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं हो.
कौआ, कुत्ता और गाय...???
इनको यम का प्रतीक माना गया है. गाय को वैतरिणी पार करने वाली कहा गया है. कौआ भविष्यवक्ता और कुत्ते को अनिष्ट का संकेतक कहा गया है.इसलिए, श्राद्ध में इनको भी भोजन दिया जाता है. हमको पता नहीं होता कि मृत्यु के बाद हमारे पितृ किस योनि में गए, इसलिए प्रतीकात्मक रूप से गाय, कुत्ते और कौआ को भोजन कराया जाता है.
कैसे करें श्राद्ध....???
पहले यम के प्रतीक कौआ, कुत्ते और गाय का अंश निकालें-फिर किसी पात्र में दूध, जल, तिल और पुष्प लें. कुश और काले तिलों के साथ तीन बार तर्पण करें. ऊं पितृदेवताभ्यो नम: पढ़ते रहें.
-वस्त्रादि जो भी आप चाहें पितरों के निमित निकाल कर दान कर सकते हैं.
यदि ये सब न कर सकें तो
-दूरदराज में रहने वाले, सामग्री उपलब्ध नहीं होने, तर्पण की व्यवस्था नहीं हो पाने पर एक सरल उपाय के माध्यम से पितरों को तृप्त किया जा सकता है. दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके खड़े हो जाइए. अपने दाएं हाथ के अंगूठे को पृथ्वी की ओर करिए. 11 बार पढ़ें..ऊं पितृदेवताभ्यो नम:. लेकिन इनको पितृ अमावस्या के दिन अवश्य तर्पण करना चाहिए.
किस दिन किसका श्राद्ध...???
प्रतिपदा: को नाना-नानी
पंचमी: जिनकी मृत्यु अविवाहित हो गई हो.
नवमी: माता व अन्य महिलाओं का.
एकादशी व द्वादशी: पिता, पितामह
चतुर्दशी: अकाल मृत्यु हुई हो.
अमावस्या: ज्ञात-अज्ञात सभी पितरों का.
श्राद्ध अपने संसाधनों से करना चाहिए. इसको बोझ नहीं बनाना चाहिए. न ही उधार लेकर श्राद्ध करना चाहिए.
आपके घर आएंगे पितर देवता बड़ी श्रद्धा से करें श्राद्ध
प्रेषित समय :21:01:31 PM / Fri, Sep 13th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर