बद्रीनाथ और बौद्ध गया ये दोनों भारत में एसे तीर्थ हैं, जहां पर पूर्वजों का पिंडदान अथवा तर्पण करने वाले व्यक्ति को दुबारा पिंडदान और तर्पण पितरों के लिए नहीं करना पड़ता --
जिस व्यक्ति के माता-पिता का देहांत हो चुका हो और जिस व्यक्ति की आयु ७५ वर्ष से ऊपर हो गयी हो अथवा वानप्रस्थाश्रम आयु प्रारम्भ हो गयी हो उसे इन जगहों पर तर्पण और पिंडदान करने पर दुबारा तर्पण और पिंडदान नहीं करना पड़ता ---
बद्रीनाथ और बौद्ध गया में एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है, कि बौद्ध गया में तर्पण या पिंडदान करने वाला यदि फिर तर्पण या पिंडदान करना चाहे तो वह बद्रीनाथ में कर सकता है, किंतु जिस व्यक्ति ने बद्रीनाथ में तर्पण या पिंडदान कर दिया उसे कहीं पर भी दुबारा पिंडदान और तर्पण नहीं करना , किंतु श्राद्ध कर्म में पशु - पक्षियों को वह पूड़ी आदि बनाकर खिला सकता है ;
बद्रीनाथ का क्षेत्र एक पवित्र क्षेत्र है और बद्रीनाथ का क्षेत्र में ब्रह्मा - विष्णु - महेश तीनों देवों का क्षेत्र है --
बद्रीनाथ श्री विष्णु की तपस्थली
ब्रह्मा जी के पांचवें सिर का क्षेत्र और भगवान शंकर का निवास क्षेत्र है, हिमालय का क्षेत्र होने के कारण इसे ब्रह्मवैवर्त क्षेत्र भी कहा जाता है, सभी देवता और सभी पित्रों का यहां निवास है और पवित्र अलकनंदा में किया गया पिंडदान और तर्पण सूक्ष्म रूप से नदी के सभी जलीय पित्रों और पंक्षियों के रूप में सभी पूर्वजों को मिल जाता है ---
बद्रीनाथ में तर्पण और पिंडदान केवल वही व्यक्ति करे जिसकी आयु ७५ वर्ष पूरी हो गयी हो या जो सांसारिक जीवन से संन्यास लेना चाहता हो, जिसके दादा दादी और माता तथा पिता चारों का देहांत हो गया हो वही व्यक्ति बौद्ध गया अथवा बद्रीनाथ में पिंडदान अथवा तर्पण करें ---
क्यूंकि यहां कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों को अपना अन्तिम पिंडदान और तर्पण देता है --
इसके अलावा -- हरिद्वार - प्रयाग, गंगा सागर -- काशी - पुरी पुष्कर आदि पवित्र तीर्थों पर भी आप अपने पित्रों को तर्पण पिंडदान कर सकते हैं , क्योंकि इन पवित्र स्थलों पर किया जाने वाला पितरों का यह कार्य 10 यज्ञ के बराबर फल प्रदान करता है.
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दो ऐसे तीर्थ जहां पिंडदान अथवा तर्पण करने वाले व्यक्ति को दुबारा पितरों के लिए कुछ नहीं करना पड़ता
प्रेषित समय :19:35:06 PM / Thu, Sep 26th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर