एक नई रिपोर्ट में यह सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन भारत में गंभीर स्वास्थ्य और आर्थिक संकट का रूप लेता जा रहा है. द लैंसेट काउंटडाउन 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की विशाल आबादी गर्मी, सूखा, बाढ़, और वायु प्रदूषण जैसी जलवायु से उत्पन्न चुनौतियों का सामना कर रही है.
1. बढ़ती गर्मी का प्रभाव
रिपोर्ट के अनुसार, 2023 में भारत के हर व्यक्ति ने औसतन 2,400 घंटे ऐसे तापमान में बिताए, जो हल्की बाहरी गतिविधियों के दौरान भी मध्यम या अधिक गर्मी का खतरा पैदा कर सकता है. इसका सबसे ज्यादा असर उन मजदूरों पर पड़ा जो खेतों, निर्माण स्थलों और अन्य बाहरी कार्यस्थलों पर काम करते हैं. अनुमान है कि 2023 में ही गर्मी के कारण 181 बिलियन कामकाजी घंटे बर्बाद हुए, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग 141 अरब डॉलर का संभावित नुकसान हुआ. गरीब तबके और बुजुर्गों पर इस संकट का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है, जो स्वास्थ्य संबंधी जोखिमों का सामना करने में अधिक असमर्थ हैं.
2. संक्रामक रोगों का बढ़ता प्रसार
जलवायु परिवर्तन के कारण मलेरिया और डेंगू जैसी संक्रामक बीमारियों के फैलने की संभावना बढ़ गई है. तापमान और नमी में बदलाव के कारण मलेरिया, जो पहले मैदानी क्षेत्रों तक सीमित था, अब हिमालयी क्षेत्रों में भी फैलने लगा है. डेंगू, जो एडीज मच्छरों से फैलता है, तटीय इलाकों में तेजी से बढ़ रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, 1950 के दशक से डेंगू फैलाने वाले मच्छरों की प्रजनन क्षमता में 85% की वृद्धि हुई है, जिससे यह बीमारी अब लगभग पूरे वर्ष फैल रही है. इन बीमारियों में बढ़ोतरी भारत के स्वास्थ्य ढांचे के लिए एक बड़ी चुनौती है, जो पहले से ही संसाधनों की कमी का सामना कर रहा है.
3. तटीय क्षेत्रों पर बढ़ता खतरा
भारत का लगभग 7,500 किलोमीटर लंबा तटीय इलाका समुद्र स्तर में वृद्धि और बाढ़ के जोखिम में है. समुद्र स्तर के बढ़ने से मुम्बई, तमिलनाडु, ओडिशा, और गुजरात जैसे तटीय क्षेत्रों में कटाव, भूमि के नीचे जल का खारापन और बाढ़ जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं. इस कारण न केवल लोगों के घर और संपत्ति खतरे में हैं, बल्कि जल-जनित बीमारियों और मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लगभग 1.81 करोड़ लोग समुद्र तल से केवल एक मीटर ऊँचाई वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जो उन्हें इस खतरे के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है.
4. वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में कोयला और अन्य जीवाश्म ईंधनों के बढ़ते उपयोग से वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक रूप से बढ़ा है. 2022 में, देश की बिजली का 71% हिस्सा कोयला-आधारित संयंत्रों से आया, जबकि स्वच्छ ऊर्जा का हिस्सा केवल 11% था. इस प्रदूषण का सीधा प्रभाव फेफड़ों और हृदय रोगों जैसी गंभीर बीमारियों पर पड़ता है. यदि भारत जीवाश्म ईंधनों पर अपनी निर्भरता कम कर स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़े तो यह प्रदूषण में कमी और स्वास्थ्य सुधार की दिशा में मददगार साबित हो सकता है.
5. आर्थिक नुकसान और भविष्य की योजनाएं
जलवायु संकट से निपटने के लिए भारत को अपनी नीतियों में बदलाव की आवश्यकता है. रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि स्वास्थ्य और जलवायु नीतियों में सुधार की जरूरत है ताकि जनसंख्या को इस संकट से बचाया जा सके. इसके अंतर्गत सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्थाओं को मजबूत करना, ताप लहरों के लिए विशेष योजनाएं बनाना, कार्य के घंटों में बदलाव और तटीय क्षेत्रों में बाढ़ से सुरक्षा के लिए अनुकूलन योजनाएं तैयार करना शामिल हैं.
रिपोर्ट में सरकार से आग्रह किया गया है कि वह जीवाश्म ईंधनों पर होने वाले निवेश को स्वास्थ्य और स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्रों में पुनर्निवेश करे. विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु अनुकूलन के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र में अधिक धनराशि उपलब्ध करानी चाहिए. उदाहरण के लिए, तटीय क्षेत्रों के लिए एक मजबूत बाढ़ प्रबंधन योजना और कमजोर समूहों के लिए स्वास्थ्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिए संरचनात्मक सुधार आवश्यक हैं.
निष्कर्ष
इस रिपोर्ट के आंकड़े साफ तौर पर दिखाते हैं कि जलवायु परिवर्तन भारत के लाखों लोगों के स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति पर गंभीर प्रभाव डाल रहा है. ऐसे में, भारत को वैश्विक सहयोग के साथ अपनी नीतियों में व्यापक परिवर्तन कर, स्वास्थ्य और जलवायु अनुकूलन प्रयासों को प्राथमिकता देनी होगी.