सुप्रीम कोर्ट- मरने से पहले दिया गया मौखिक बयान पुख्ता साक्ष्य नहीं, गंभीरता से जांच की जानी चाहिए!

सुप्रीम कोर्ट- मरने से पहले दिया गया मौखिक बयान पुख्ता साक्ष्य नहीं

प्रेषित समय :20:41:03 PM / Wed, Oct 30th, 2024
Reporter : पलपल रिपोर्टर

अभिमनोज
वर्ष 1996 में तीन आरोपितों ने नसीम खान नामक युवक की हत्या कर दी थी.
खबरों की मानें तो.... मध्यप्रदेश के सेशन कोर्ट ने नसीम खान की हत्या मामले में आरोपितों को उम्रकैद की सजा सुनाई, लेकिन.... जब यह मामला मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में गया तो आरोपितों को बरी कर दिया गया.

इसके बाद इस फैसले के खिलाफ मध्यप्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की, जिसे खारिज करते हुए आरोपितों को वहां भी बरी कर दिया गया.
खबरों पर भरोसा करें तो....  इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि- अगर कोई मरने से पहले अपने नजदीकी रिश्तेदार के साथ मौखिक तौर पर बयान देता है, तो उस बयान की गंभीरता से जांच की जानी चाहिए.

इस मामले में निचली अदालत ने मृतक की मां के बयान के आधार पर आरोपितों को दोषी करार दिया था, मृतक की मां का कहना था कि- मरने से पहले उसके बेटे ने आरोपितों के नाम लिए थे.
इस मामले में हाईकोर्ट का कहना था कि- मृतक की मां के बयान में विरोधाभास था, उसी ने घटना के बारे में सूचना दी थी लेकिन.... पुलिस के सामने मरने से पहले उनके बेटे द्वारा दिए गए बयान के बारे में नहीं कहा था.

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि- मरने से पहले दिया गया बयान पुख्ता साक्ष्य नहीं है और वह भी तब जब बयान मौखिक हो, यह बयान मृतक की करीबी रिश्तेदार मां के सामने दिया गया था और ऐसे में इस तरह के बयान की गंभीरता से जांच जरूरी है, मृतक की मां का बयान विश्वसनीय नहीं है, लिहाजा ऐसे में आरोपितों को संदेह का लाभ दिया जाता है और उन्हें बरी किया जाता है!

Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-