अभिमनोज
जिन राज्यों में शराबबंदी है, वहां केवल सैद्धांतिक शराबबंदी है, प्रायोगिक हालात तो बेहद खराब हैं, इस पर अनेक बार सवालिया निशान लगे, लेकिन इस बार पटना हाईकोर्ट ने इस मामले में असली आईना भी दिखा दिया है.
खबर है कि.... मुकेश कुमार पासवान पटना बाईपास पुलिस स्टेशन में तैनात थे, उनके थाना क्षेत्र से एक्साइज विभाग ने छापा मारकर विदेशी शराब पकड़ी थी, जिसके बाद 24 नवंबर 2020 को जारी एक सरकारी आदेश- जिस भी पुलिस अधिकारी के इलाके में शराब पकड़ी जाएगी, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, के अनुसार मुकेश कुमार पासवान का डिमोशन कर दिया गया.
इस मामले में मुकेश कुमार पासवान ने विभागीय जांच में अपना पक्ष रखा और खुद को निर्दोष बताया, उन्होंने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई, इस मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि विभागीय जांच केवल औपचारिकता भर थी, इस मामले में सजा तो पहले से ही तय कर ली गई थी.
खबरों की मानें तो.... इसके बाद पटना हाईकोर्ट ने न सिर्फ डिमोशन की सजा रद्द कर दी, बल्कि याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की गई पूरी विभागीय कार्रवाई को भी रद्द कर दिया.
यही नहीं, बिहार में शराबबंदी को लेकर कई सवाल भी उठाए, हाईकोर्ट ने कहा कि- यह कानून शराब और दूसरी गैरकानूनी चीजों की तस्करी को बढ़ावा दे रहा है और गरीबों के लिए परेशानी का कारण बन गया है.
खबरों पर भरोसा करें तो.... हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि- बिहार सरकार ने 2016 में शराबबंदी कानून लोगों के जीवन और सेहत को बेहतर बनाने के लिए लागू किया था, परन्तु यह कानून अपने उद्देश्य में सफल नहीं रहा, पुलिस, एक्साइज, वाणिज्यकर और परिवहन विभाग के अधिकारी इस कानून का फायदा उठा रहे हैं, शराब तस्करी में शामिल बड़े लोगों पर कम मामले दर्ज होते हैं, जबकि गरीब लोग जो शराब पीते हैं या नकली शराब पीने से बीमार पड़ते हैं, उनके खिलाफ ज्यादा मामले दर्ज होते हैं.
इतना ही नहीं, यह भी कहा गया कि- यह कानून पुलिस के लिए एक हथियार बन गया है, पुलिस अक्सर तस्करों के साथ मिलीभगत करती है, कानून से बचने के नए-नए तरीके तलाशे जा रहे हैं, लिहाजा यह कानून प्रदेश की गरीब जनता के लिए ही मुसीबत का सबब बन गया है!
गांधीजी को जहरीला सम्मान! या तो पूरे देश में शराबबंदी हो या फिर गुजरात शराबबंदी की समीक्षा हो?
Source : palpalindia ये भी पढ़ें :-